यह एक मां की रीयल स्टोरी है। जो घर की माली हालत और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कुछ करना चाहती है। पर 9 महीने की बच्ची को अपनी ममता से वंचित कर नहीं। काम मिलता है। साथ यह शर्त भी कि बच्ची को घर छोड़कर आना होगा। मजबूरी दोनों ओर थी। एक ओर घर की बेहतरी। दूसरी ओर ममता। फौरी तौर पर मां की ममता जीती। चंद रोज में काम छोड़ दिया।
लेकिन, घर की बेहतरी के लिए उधेड़बुन जारी रही। उसके बाद बचत के 1500 रुपए से मिठाई का डिब्बा बनाने का काम शुरू किया। काम को आगे बढ़ाने के गहने गिरवी रख दिए। आज उनका काम पूर्वांचल और सटे बिहार के करीब डेढ़ से दो दर्जन जिलों में फैला है। इस इलाके के बड़े शहरों के अधिकांश नामचीन दुकानदार इनके कस्टमर हैं। रेंज भी बढ़ गई है। अब वह बेकरी, ड्राइफ्रूट्स, पिज्जा और गिफ्ट के लिए बास्केट भी बनाती हैं। कच्चा माल दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, गुजरात से आता है। उनके कारखाने में दिल्ली के कारीगर काम करते हैं। साथ ही बाकी काम करने वालों को ट्रेंड भी करते हैं।
ग्रेजुएशन कर चुकीं इन महिला का नाम है संगीता पांडेय। वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर से हैं। इसे वह अपना सौभाग्य मानती हैं। उनके हाथों वह सम्मानित हो चुकी हैं। उस दौरान मुख्यमंत्री द्वारा उनके बाबत बोले गए चंद अल्फाज संगीता के लिए धरोहर हैं। बकौल संगीता वह मुख्यमंत्री द्वारा महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान एवं आत्मनिर्भरता के लिए उठाए गए कदमों की मुरीद हैं। खासकर नारी सशक्तिकरण के लिए 2019 में मातृशक्ति के पावन पर्व नवरात्र के दिन शुरू मिशन शक्ति योजना की। पर संगीता जैसा बनना आसान नहीं है। उनकी कहानी फर्श से अर्श तक पहुंचने का जीवंत प्रमाण है।
बच्ची के साथ कभी काम करने से मना कर दिया गया था : बात करीब एक दशक पुरानी है। घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने वाली संगीता ने सोचा किसी काम के जरिए अतरिक्त आय का जरिया बनाते हैं। पति संजय पांडेय (ट्रैफिक पुलिस) इस पर राजी हो गए। काम की तलाश में वह एक संस्था में गईं। चार हजार रुपए महीने का वेतन तय हुआ। दूसरे दिन वह अपने 9 महीने की बेटी के साथ काम पर गईं तो कुछ लोगों ने आपत्ति की। बोले, बच्ची की देखरेख और काम एक साथ संभव नहीं। बात अच्छी नहीं लगी, पर काम करने की मजबूरी भी थी। दूसरे दिन वह बच्ची को घर छोड़कर काम पर गईं। मन नहीं लगा। सोचती रहीं जिसकी बेहतरी के लिए काम करने के लिए सोचा था, वह तो मां की ममता से ही वंचित हो जाएगी। लिहाजा उन्होंने काम छोड़ दिया।
साइकिल और ठेले से शुरूआत : संगीता के अनुसार, पर मुझे कुछ करना ही था। क्या करना है यह नहीं तय कर पा रही थी। पैसे की दिक्कत अलग। थोड़े से ही शुरुआत करनी थी। कभी कहीं मिठाई का डब्बा बनते हुए देखी थीं। मन में आया यह काम हो सकता है। घर में पड़ी रेंजर साइकिल से कच्चे माल की तलाश हुई। 1500 रुपए का कच्चा माल उसी सायकिल के कैरियर पर लाद कर घर लाई। 8 घंटे में 100 डब्बे तैयार कर बेइतन्हा खुश हुईं। सैंपल लेकर बाजार गईं। मार्केटिंग का कोई तजुर्बा था नहीं। कुछ कारोबारियों से बात की। बात बनीं नहीं तो घर लौट आईं। आकर इनपुट कॉस्ट और प्रति डिब्बा अपना लाभ निकालकर फिर बाजार गईं। रेट बताए तो लोगों ने कहा हमें तो इससे सस्ता मिलता है। किसी तरह से तैयार माल को निकाला।
कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि लखनऊ में कच्चा माल सस्ता मिलेगा। इससे आपकी कॉस्ट घट जाएगी। बचत का 35 हजार लेकर लखनऊ पहुंची। वहां सीख मिली कि अगर एक पिकअप माल ले जाएं तो कुछ परत पड़ेगा। इसके लिए लगभग दो लाख रुपए चाहिए। फिलहाल बस से 15 हजार का माल लाई। डिब्बा तैयार करने के साथ पूंजी एकत्र करने पर ध्यान लगा रहा। डूडा से लोन के लिए बहुत प्रयास किया पर पति की सरकारी सेवा आड़े आ गई।
कारोबार बढ़ाने के गिरवी रख दिए गहने : उन्होंने महिलाओं की सबसे प्रिय चीज अपने गहने को गिरवी रखकर 3 लाख का गोल्ड लोन लिया। लखनऊ से एक गाड़ी कच्चा माल मंगाया। इस माल से तैयार डिब्बे की मार्केटिंग से कुछ लाभ हुआ। साथ ही हौसला भी बढ़ा। एक बार और सस्ते माल के जरिए इनपुट कॉस्ट घटाने के लिए दिल्ली का रुख किया। यहां व्यारियों से उनको अच्छा सपोर्ट मिला। क्रेडिट पर कच्चा माल मिलने लगा।
अब तक अपने छोटे से घर से ही काम करती रहीं। कारोबार बढ़ने के साथ जगह कम पड़ी तो कारखाने के लिए 35 लाख का लोन लिया। कारोबार बढ़ाने के लिए 50 लाख का एक और लोन लिया।
सप्लाई के लिए साइकिल से ठेला फिर टैंपो और बैट्री चालित रिक्शा : जो सप्लाई पहले साइकिल से होती थी फिर दो ठेलों से, आज इसके लिए उनके पास खुद की मैजिक, टैंपू और बैटरी चालित ऑटो रिक्शा भी है। खुद के लिए स्कूटी एवं कार भी। एक बेटा और दो बेटियां अच्छे स्कूलों में तालीम हासिल कर रहे हैं।
पंजाब, बंगाल, गुजरात, राजस्थान तक होती है आपूर्ति : पूर्वांचल के हरे बड़े शहर की नामचीन दुकानें उनकी ग्राहक हैं। मिठाई के डिब्बों के साथ पिज्जा, केक, बेकरी, ड्राइफ्रूट्स एवं बास्केट भी बनाती हैं। उत्पाद बेहतरीन हों इसके लिए दिल्ली के कारीगर भी रखे हैं। वह काम भी करते हैं और बाकियों को ट्रेनिंग भी देते हैं।
100 महिलाओं को मिला है रोजगार : प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 100 महिलाओं एवं एक दर्जन पुरुषों को वह रोजगार मुहैया करा रही हैं। पैकेजिंग के लिए कच्चा माल लेने पंजाब, पश्चिमी बंगाल, गुजरात, राजस्थान तक जाती हैं। जब उनसे बात हुई तो वह लुधियाना में थीं। जहां जाती हैं योगी आदित्यनाथ के शहर की होने की वजह से लोग उनको खासा सम्मान देते हैं। लोग कहते हैं कि मुख्यमंत्री हो तो योगी जैसा। यह सब सुनकर खुशी होती है।
मैं चाहती हूं कि मेरे जैसा संघर्ष औरों को न करना पड़े : संगीता बताती हैं कि उन्हें अपने संघर्ष के दिन नहीं भूलते। इसीलिए काम करने वाली कई महिलाएं निराश्रित हैं। कुछके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। उनको घर ही कच्चा माल भिजवा देती हूं। इससे वह काम भी कर लेतीं और बच्चों की देखभाल भी। कुछ ऐसे भी हैं जो दिव्यांगता के नाते मुश्किल से चल-फिर सकते हैं। कुछ मूक-बधिर भी हैं।