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कोरोनावायरस काल बना किसानों के लिए प्रलय, पेड़ों पर ही सड़ गए लाखों के फल

कोरोनावायरस काल बना किसानों के लिए प्रलय, पेड़ों पर ही सड़ गए लाखों के फल
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हिमा अग्रवाल

, शुक्रवार, 31 जुलाई 2020 (10:42 IST)
उत्तरप्रदेश का फल काश्तकार कोरोना संक्रमण के चलते बदहाली की कगार पर पहुंच गया है। उसके फल पेड़ों पर ही सड़ गए हैं। सावन के महीने में भोले के भक्त बड़े चाव से नाशपाती शिवलिंग पर चढ़ाते और खाते हैं। इस बार शिवजी का प्रिय फल नाशपाती तो पेड़ों में ही सड़ गया। बाजार में नाशपाती की आवक नहीं है और स्थानीय मंडी में यह फल औने-पौने दामों में पहुंच रहा है जिससे किसानों को उनकी लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है।
कोरोना काल किसानों के लिए यह किसी महाप्रलय से कम नजर नहीं आ रहा है। खासतौर से फल उत्पादन करने वाले किसानों को इस दौर में नुकसान ही हुआ है जिसके चलते किसानों की कमर टूट गई है। जहां फल काश्तकार आम और लीची के नुकसान से परेशान था, तो उसने सोचा कि नाशपाती की बंपर फसल बागों में खड़ी है और वह अपने नुकसान की पूर्ति बाजार अनलॉक होने पर पूरी कर लेगा। लेकिन कोरोना भय के चलते आगरा, मथुरा, बिजनौर, मुरादाबाद और नजीबाबाद और अन्य जगहों से नाशपाती के खरीदार मेरठ स्थित किठौड़ बागों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, लिहाजा पेड़ों पर लगी फसल नष्ट हो गई और सभी किसानों को अच्छा-खासा नुकसान हुआ है।
 
कोरोना संक्रमण में वैसे तो सभी परेशान हैं, लेकिन सबसे ज्यादा आफत देश के अन्नदाता पर बरसी है। विशेषतौर पर फल उत्पादन करने वाले किसानों के लिए यह काल बेहद नुकसान वाला साबित हुआ है। बीते 3-4 महीनों में गुजरात, अहमदाबाद, महाराष्ट्र के कारोबारी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा नहीं सके व फल नहीं खरीद पा रहे हैं जिसके चलते फल पेड़ पर ही सड़ रहे हैं। 
 
नाशपाती की फसल का तो आलम यह है कि ये पेड़ पर टूटने से पहले ही सड़ गई, क्योंकि खरीददार ही नहीं मिल पाए। किसानों का कहना है कि इस बार कावड़ यात्रा रद्द होने से भी उन्हें खासा नुकसान हुआ है, क्योंकि कावड़ यात्रा के दौरान लाखों कावड़िये उत्तराखंड से जल लाते और अपने शिवालयों पर अभिषेक करते थे। पैदल इन शिवभक्तों को जगह-जगह सड़कों पर लगने वाले शिविर में फल वितरण होता था और नाशपाती की भी मांग रहती थी। सावन चल रहा है। भोले-भंडारी को भक्त नाशपाती अर्पित करते हैं, जो मंदिरों में प्रसाद वितरण के काम में आती है। लेकिन इस बार नाशपाती न के बराबर ही खरीदी गई।
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किठौड़ में नाशपाती के बड़े बगान हैं। अपने राज्य से ही नहीं, अपितु दूसरे राज्यों से आने वाले कारोबारी भी यहां से माल खरीदते हैं, लेकिन इस बार वे कोरोना के चक्कर में नहीं आए। किसी तरह से किसान औने-पौने दाम पर अपनी नाशपाती बेच रहे हैं।
 
गत वर्षों में जो नाशपाती का बैग 100-150 रुपए प्रति नग के हिसाब से बिका करता था, वो आज की तारीख में 40-50 रुपए प्रति बैग के हिसाब से ही बिक रहा है। काश्तकार प्रमोद ने बताया कि फलों के एक सीजन में लगभग 10 लाख रुपए की बिक्री होती थी जिसमें से 5 लाख की बचत हो जाती थी। लेकिन इस बार तो बागों में लगे 25 लेबर का खर्च भी नहीं निकल रहा है और उन्हें घर से पेमेंट देना पड़ेगा। ऐसे में किसान सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी मदद की जाए।
 
नाशपाती की फसल के साथ-साथ आम की फसल को भी खासा नुकसान हुआ है। आम का कारोबार भी इस बार चौपट ही रहा। जो आम अमूमन 800 रुपए प्रति कैरेट बिका करता था, आज की तारीख में उसकी कीमत 200 से 250 प्रति कैरेट रह गई है। यही नहीं, पेड़ पर रहते रहते आम में भी कालापन आ गया है। आम में कालापन आने की वजह से भी इसके दाम गिर गए।
 
फलों की बगिया के फलों का लुत्फ तो सभी आम और खास लोग उठाते हैं। अगर कोई फलप्रेमी आम या अन्य फलों की बगिया में आता है तो उसकी प्रसन्नता का कोई मोल नहीं होता। लेकिन फलों से लदी हुई यह बगिया इस बार किसानों को रास नहीं आ रही है।
 
फलों का उत्पादन करने वाले किसान सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी मदद की जाए ताकि उनके घर का भी चूल्हा जल सके तथा वे अपने बच्चों की स्कूल की फीस दे पाएंगे और उनके घरों में शहनाई की गूंज सुनाई पड़ेगी।

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