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नज़्म----क़ौमी यकजेहती (एकता)
ये देश के हिन्दू और मुस्लिम तेहज़ीबों का शीराज़ा है सदियों पुरानी बात है ये, पर आज भी कितनी ताज़ा है
नज़्म : इलेक्शन
पर मेरी नब्ज़ छू नहीं सकते
हाथ मुझसे मिला के महफ़िल में तुम कहाँ खो गए ख़ुदा जाने चूमती हूँ मैं इन लबों से कभी और कभी अपनी आँख
नज़्म : 'ज़ख़्म और मरहम'
तुम आखिर मेरी क्या हो = सच हो या एक सपना हो जानी अन्जानी सी हो = या एक कहानी सी हो
दिवाली आई दीप जलाएँ : शेरी भोपाली
मिट्टी में मिला दे के जुदा हो नहीं सकता अब इससे ज़्यादा में तेरा हो नहीं सकता
जंग : नज़्म
हर गली कूंचे में घुस कर बन्द दरवाज़ों की सांकल खोलती है,
नज़ीर फ़तहपुरी (पूने) के माहिये
साया हैं न दीवारें = ज़ीस्त के जंगल में = हैं धूप की बौछारें
नज़्म : माहौल
कमरे में एक बंगले के बैठे थे मर्द-ओ-ज़न फ़ैशन परस्त लोग थे उरयाँ थे पैरहन
नज़्म : मैं ईद क्या मनाऊँ!
सोहागन बेवा : भाग-2
ऎ मुबारक मौत! ऎ राज़े कमाले ज़िन्दगी ऎ जहाने ख़्वाब नोशीं! ऎ मआले ज़िन्दगी ऎ पयामे रोशनी! सर्रे बक़ा ता
'सोहागन बेवा' : भाग-1
नेक तुलसीदास गंगा के किनारे वक़्ते शाम जा रहा था इक तरफ़ बश्शाश जपता हर का नाम
नज़्म : कैफ़ी आज़मी
तुम परेशाँ न हो, बाब-ए-करम वा न करो और कुछ देर पुकारूँगा, चला जाऊँगा
नज़्म : झूट
झूट अपनी ज़िन्दगी में जब से शामिल हो गया ज़िन्दगी मुश्किल ही थी मरना भी मुश्किल हो गया
हज़ल : दिलावर फ़िगार
मुशाएरे के लिए क़ैद तरहा की क्या है ये इक तरह की मशक़्क़त है शायरी क्या है
ग़ज़ल इन इंग्लिश
दि नेशन टाक्स इन उर्दू, दि पीपुल फ़ाइट इन उर्दू डियर रीडर देट इज़ व्हाइ, आइ राइट इन उर्दू
नात शरीफ़
यारब तसव्वुरात को इतनी रसाई दे, हर शै में मुझको गुम्बदे-ख़ैज़रा दिखाई दे
मज़ाहिया और तंज़िया क़तआत
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
गधे करने लगे हैं 'चाय नोशी'------चाय पीना मगर इंसान भूखों मर रहे हैं 'तनज़्ज़ुल' की तरफ़ माइल ह...
रेहबर जोनपुरी के क़तआत
शनिवार, 23 अगस्त 2008
'हमारा भारत है'
जाँनिसार अख्तर की रुबाइयाँ
अब्र में छुप गया है आधा चाँद चाँदनी छ्न रही है शाखों से
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