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UP Election : गोरखपुर मंडल में इस बार आसान नहीं है किसी की राह

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बुधवार, 9 फ़रवरी 2022 (17:52 IST)
गोरखपुर। भारतीय जनता पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से जाने की मान्यता को साबित कर चुकी है लेकिन इस क्षेत्र के गोरखपुर तथा बस्ती मंडल में भाजपा और अन्य दलों के लिए इस बार राह आसान नहीं है।

भाजपा ने 2017 में पूर्वांचल में सीटों का शतक लगाया था, जबकि सपा को यहां शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की पिछले चुनाव का इतिहास दोहराने की पूरी कोशिश है लेकिन सपा और अन्य विपक्षी दलों से मिल रही चुनौतियां पहले के मुक़ाबले अधिक हैं।

विधानसभा चुनाव के छठे चरण में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर तथा बस्ती मंडल की कुल 41 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया चल रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर सदर सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं।

योगी के चुनाव लड़ने के कारण गोरखपुर सदर सीट पर सभी की निगाहें टिकी हैं। भाजपा ने गोरखपुर और बस्ती मंडल में इस चुनाव में तगड़ी चुनौती को देखते हुए ही मुख्यमंत्री योगी को गोरखपुर सदर सीट से उम्मीदवार बनाया है।

उनके अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ाने की चर्चाएं थी लेकिन पार्टी नेतृत्व ने पूर्वांवल में विपक्ष से मिल रही चुनौती को कुंद करने के इरादे से योगी को गोरखपुर से उम्मीदवार बनाया है। विपक्षी दलों में सपा ने सुभासपा से गठबंधन कर पूर्वांचल के राजभर वोटों में सेंधमारी करने की कोशिश कर भाजपा की चुनौती को बढ़ा दिया है।

ओपी राजभर की सुभासपा ने 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों का राजनीतिक उभार भाजपा के लिए बाधक बन सकता है। इसके जवाब में गोरखनाथ मठ का प्रभाव इन दोनों मंडलों में भाजपा को कितनी सफलता दिलाता है, यह देखना होगा।

साथ ही निषाद पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन भी उसे सहायक सिद्ध होता दिख रहा है। मगर राजनीतिक विश्लेषकों की राय में निषाद पार्टी को उसकी अपेक्षा के अनुसार 15 सीटें नहीं मिलने और उसकी पसंद की सीट न दिए जाने से निषाद मतदाता पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है। ऐसे में यह लड़ाई बहुत दिलचस्प हो गई है।

राजनीतिक दलों ने धर्म और जाति को इस चुनावी समर के प्रमुख हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी कर ली है। विकास एवं किसानों की बदहाली और युवाओं को रोजगार जैसे मुद्दे गौण हो गए हैं। ऐसे में विपक्ष जाति को और सत्तापक्ष धर्म को अपनी चुनावी वैतरणी पार करने का जरिया बनाने की कोशिश में है।

सपा जहां जातिगत समीकरणों के आधार पर चुनावी गठजोड़ कर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है, वहीं भाजपा की रणनीति महिला कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर प्रचार करने का जिम्मा सौंप कर मतदाताओं को लुभाने की है। इस मुहिम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी भाजपा और गोरखनाथ मठ के साथ खड़ा हो गया है।

इस चुनाव में भाजपा और संघ भी अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा के आकलन में लगे हुए हैं, जहां भाजपा की नजर में हिन्दुत्व का चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, संघ के नए चेहरे के रूप में योगी आदित्यनाथ को आगे किया गया है। सपा ने सोमवार को ही योगी के सामने भाजपा के दिवंगत नेता उपेन्द्र शुक्ला की पत्नी सभावती शुक्ला को चुनाव मैदान में उतारा है।

बसपा ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए गोरखपुर सदर सीट से ख्वाजा समसुद्दीन को उम्मीदवार बनाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है। पूर्वांचल में योगी, अखिलेश यादव और मायावती के चेहरों के सहारे चुनावी बिसात अब बिछ गई है। देखना होगा कि शह और मात इस खेल में चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से जा पाता है या नहीं।(वार्ता)

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