राजनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया?
नई दिल्ली , शुक्रवार, 27 जनवरी 2017 (15:24 IST)
नई दिल्ली। यूपी में सभी प्रमुख दलों के पास एक ऐसा चेहरा है लेकिन भाजपा चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकी, क्योंकि राजनाथ केंद्रीय गृहमंत्री का पद छोड़कर राज्य के फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार नहीं थे इसलिए पार्टी एक ऐसा नेता नहीं खोज सकी, जो कि अखिलेश यादव और मायावती की तुलना में मुख्यमंत्री का सशक्त उम्मीदवार दिख सके।
उत्तरप्रदेश से भाजपा के एक सांसद का कहना है कि पार्टी ने एक आंतरिक सर्वे करवाया था। इस सर्वे के अनुसार भाजपा में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ही अखिलेश यादव और मायावती को प्रदेश में टक्कर दे सकते हैं। अगर भाजपा राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बताकर चुनाव लड़ती है तो उसे बहुमत मिल सकता है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस सिलसिले में राजनाथ सिंह का मन टटोलने की कोशिश की तो उन्होंने मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनने में कोई रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने अपने करीबी नेताओं से कहा कि वे केंद्र सरकार में गृहमंत्री बनकर ही खुश हैं। उत्तरप्रदेश में वे 14 साल पहले मुख्यमंत्री थे और अब प्रदेश के किसी और नेता को यह मौका दिया जाना चाहिए।
राजनाथ का मानना है कि 14 वर्ष बाद फिर से उसी पद के लिए अखिलेश यादव से मुकाबला करना समझदारी नहीं है। भाजपा को पता हो गया कि राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री के उम्मीदवार बनेंगे नहीं और किसी दूसरे नेता में वह कूबत नहीं है। यह सर्वे पिछले साल दिसंबर में करवाया गया था, लेकिन राजनाथ के अलावा प्रदेश का कोई भी नेता अखिलेश और मायावती के सामने ठहर नहीं पाया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य संघ की पसंद हैं, लेकिन सर्वे में वे काफी पीछे रहे। राजनाथ के बाद दूसरा नाम महंत आदित्यनाथ का आया। पूर्वांचल और खासकर गोरखपुर के लोगों ने उन्हें अपनी पसंद बताया लेकिन योगी को न तो अमित शाह और न ही राजनाथ खेमे का समझा जाता है। सर्वे में केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र का नाम योगी आदित्यनाथ के बाद आया।
कलराज मिश्र ब्राह्मण समाज के मतदाताओं की पसंद हैं, लेकिन लोकप्रियता में अखिलेश यादव से बहुत पीछे हैं। भाजपा ने अपने सर्वे में भी अखिलेश को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर सबसे लोकप्रिय बताया। सर्वे के अनुसार राजनाथ सिंह को छोड़ दें तो भाजपा का कोई दूसरा नेता अखिलेश और मायावती की तरह मतदाताओं की पसंद नहीं था। राजनाथ सिंह के इंकार करने के बाद ही भाजपा ने फैसला किया कि वह बिना चेहरे के चुनाव मैदान में उतरेगी।
एक पेशेवर एजेंसी द्वारा किए गए भाजपा के इस सर्वे में जातियों और विभिन्न समुदायों के रुझानों का भी आकलन किया गया। इसके मुताबिक उत्तरप्रदेश में मुसलमान बंटे हुए हैं और इसे करने के समय तक मुस्लिम मतदाताओं ने अखिलेश और मायावती में से किसी एक को चुनने पर मन नहीं बनाया था। एक भाजपा नेता के मुताबिक अगर मुस्लिम वोटर मायावती के दलित वोट के साथ जा मिले तो भाजपा का चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा जबकि अखिलेश यादव से सीधे भिड़ने में भाजपा अपना फायदा देख रही है।
साल 2012 में विधायक का चुनाव हारने वाले और 2014 में सांसद का चुनाव जीतने वाले उत्तरप्रदेश के एक नेता के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में इसी समीकरण की वजह से बहनजी की पार्टी शून्य पर पहुंच गई थी।
भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल को 73 सीटें मिली। अकेले दलित मायावती को चुनाव नहीं जितवा सकते, वे तभी चुनाव जीतीं जब उन्हें दलित के साथ अगड़ी जाति के ब्राह्मणों और मुस्लिम समुदाय का वोट मिला। स्वाभाविक है कि बहनजी इसी फॉर्मूले को दोहराना चाहती हैं इसलिए उन्होंने 30 फीसदी टिकट मुसलमान नेताओं को दिए हैं और करीब 30 फीसदी टिकट अगड़ी जाति के नेताओं को भी दिए गए हैं।
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