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अफगानिस्तान के खिलाफ जंग में तालिबान को किन देशों का मिला साथ, कौन खड़ी कर सकता है मुश्किलें...

अफगानिस्तान के खिलाफ जंग में तालिबान को किन देशों का मिला साथ, कौन खड़ी कर सकता है मुश्किलें...

नृपेंद्र गुप्ता

, मंगलवार, 17 अगस्त 2021 (13:46 IST)
काबुल। तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है। राष्‍ट्रपति अशरफ गनी अफगानिस्तान से पलायन कर चुके हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत समेत दुनियाभर के देश अपने नागरिकों को वहां से समेटने की तैयारी कर रहे हैं। तालिबान ने जिस तेजी से अफगानिस्तान की जंग जीत ली उससे दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञ हैरान हैं। अफगानी सेना जिसे अमेरिका ने ट्रेन किया है उसके सामने पूरी तरह बेबस नजर आई। 
 
बहरहाल चीन, रूस और पाकिस्तान समेत कई देश इस समय पूरी तरह से तालिबान के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रवैया तो रूस का रहा। रूसी राजदूत ने कहा- अशरफ गनी के शासन से ज्यादा बेहतर तो तालिबान का पहला दिन रहा। अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद तुर्की यहां कूटनीतिक रूप से बड़ी भूमिका निभा सकता है।
 
20 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाले तालिबान ने भी सरकारी कर्मचारियों के लिए माफी का ऐलान करते हुए उनसे काम पर लौटने की अपील की है। उसकी कोशिश है कि वहां जल्द से जल्द जनजीवन सामान्य हो जाए। दुनियाभर में क्रूरता के लिए बदनाम तालिबान भी इस बार बेहद सतर्कता के साथ फूंक फूंक कर कदम रख रहा है।
 
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तालिबान के सबसे बड़े दुश्मन माने जाने वाले अमेरिका ने उसके लिए मैदान खाली कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने तालिबान को चेतावनी दी कि अगर उसने अमेरिकी कर्मियों पर हमला किया या देश में उनके अभियानों में बाधा पहुंचाई, तो अमेरिका जवाबी कार्रवाई करेगा। बहरहाल तालिबान भी यही चाहता है कि किसी तरह उसका अमेरिका से अप्रत्यक्ष समझौता हो जाए। वैसे भी अब दोनों के रास्ते अलग अलग है।
 
तालिबान से जंग में अमेरिका ने एक हजार अरब डॉलर से अधिक खर्च किए। बाइडन ने अफगानिस्तानी सेना के करीब 3,00,000 सैनिकों को प्रशिक्षित किया। उन्हें साजो-सामान दिए। उनकी सेना हमारे कई नाटो सहयोगियों की सेनाओं से कहीं अधिक बड़ी है।

हमने उन्हें वेतन दिए, वायु सेना की देखरेख की, जो तालिबान के पास नहीं है। तालिबान के पास वायु सेना नहीं है। हमनें उन्हें अपना भविष्य तय करने का हर मौका दिया। हम उन्हें उस भविष्य के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति नहीं दे सकते। कुल मिलाकर इतना कुछ झोंकने के बाद भी अमेरिका खाली हाथ ही रहा।
 
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ब्रिटेन समेत अमेरिका के अन्य सहयोगी भी अमेरिका के रास्ते पर ही चलते नजर आ रहे हैं। अगर तालिबान ने इन्हें नहीं छेड़ा तो ये देश भी उसके रास्ते में समस्या नहीं खड़ी करेंगे। हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से दुनिया भर में आतंकी खतरा एक बार फिर बढ़ सकता है।
 
अगर अमेरिका और उसके सहयोगियों को तकलीफ हुई तो वे जरूर तालिबान की राह मुश्किल कर सकते हैं। अफगानिस्तान एक ऐसा देश है जिसका मोह अमेरिका इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा। अगर भविष्य में सत्ता परिवर्तन को कोई संभावना दिखती है तो वह एक बार फिर वहां हस्तक्षेप कर सकता है।
 
ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान की कमान मुल्ला बरादर संभालेंगे। बरादर ओसामा बिन लादेन और हाफिज सईद के करीब रहे हैं। ऐसे में भारत समेत वे सभी देशों को पहले से ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है जहां आतंकवादी हमलों का खतरा ज्यादा है।

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