रियो ओलंपिक में बैडमिंटन खिलाड़ी पुसरला वेंकट सिंधु ने भारत का मान बढ़ाया और ऐसे समय देश के लिए पदक सुनिश्चित किया, जबकि भारत के दिग्गज खिलाड़ी एक के बाद एक प्रतियोगिता से बाहर हो रहे थे। जानिए देश की इस बेटी का खेल सफर। आखिर कैसे हुई शुरुआत और यहां तक पहुंचने के लिए सिंधु ने कौन सी बाधाओं को पार किया।
5 जुलाई 1995 को वॉलीबॉल खिलाड़ी पीवी रमण और पी विजया के घर जन्म लेने वाली पीवी सिंधु का रुझान शुरू से ही खेल की तरफ था। उनके पिता रमण भी वॉलीबॉल में वर्ष 2000 में अर्जुन पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
सिंधु ने 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन बने पुलेला गोपीचंद से प्रभावित होकर बैडमिंटन को अपना करियर चुना और महज आठ साल की उम्र से बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया।
सिंधु ने सबसे पहले सिकंदराबाद में इंडियन रेलवे सिग्नल इंजीनियरिंग और दूर संचार के बैडमिंटन कोर्ट में महबूब अली के मार्गदर्शन में बैडमिंटन की बुनियादी बातों को सीखा। इसके बाद वे पुलेला गोपीचंद के गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में शामिल हो गईं। यहां से सिंधु ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कड़ी मेहनत से हर चुनौती को स्वीकार किया।
सिंधु की उपलब्धि :
सिंधु कोलंबो में आयोजित 2009 सब जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक विजेता रही हैं। 2010 में ईरान फज्र इंटरनेशनल बैडमिंटन चैलेंज के एकल वर्ग में रजत पदक जीता। वे इसी वर्ष मेक्सिको में आयोजित जूनियर विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल तक पहुंची। 2010 के थॉमस और यूबर कप के दौरान वे भारत की राष्ट्रीय टीम की सदस्य रहीं।
सिंधु के रूप में एक बार फिर यह साबित हो गया कि बेटियां किसी ने कम नहीं हैं और अगर कड़ी मेहनत की जाए तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।