नई दिल्ली। दो बार के ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार के तीन साल से अधिक समय के बाद मैट पर वापसी 2017 में कुश्ती जगत में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रही। सुशील पिछले साल रियो ओलपिक से पहले नरसिंह यादव के साथ ट्रायल की मांग और फिर दिल्ली उच्च न्यायालय तक खिंचे मामले से ज्यादा चर्चा में रहे थे, लेकिन इस बार वे मैट पर अपनी वापसी को लेकर ख़बरों में लगातार छाए रहे।
सुशील को डब्लूडब्लूई में ले जाने की काफी कोशिशें हुईं, लेकिन सुशील के मन में कहीं न कहीं ओलंपिक स्वर्ण की कसक बाकी थी और उन्होंने डब्लूडब्लूई में जाने के सभी लुभावने प्रयासों को ठुकरा दिया। बीजिंग ओलंपिक में कांस्य और लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीतकर इतिहास बनाने वाले पहलवान सुशील 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के तीन साल बाद मैट पर उतर पड़े और उन्होंने इंदौर में हुई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल वर्ग में स्वर्ण पदक जीत लिया।
हालांकि उनकी वापसी पर क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल में मिले लगातार तीन वॉकओवर का विवाद ज्यादा छा गया। सुशील ने नौ साल बाद राष्ट्रीय चैंपियन बनने के बाद कहा कि इसमें वे क्या कर सकते हैं, यदि सामने वाला पहलवान लड़ना नहीं चाहता है। यह भी दिलचस्प है कि सुशील जब राष्ट्रीय चैंपियन बने तो इंदौर में भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह मौजूद थे जिन्होंने रियो ओलंपिक से पहले सुशील की ट्रायल की मांग को ख़ारिज करते हुए नरसिंह का पक्ष लिया था।
सुशील की वापसी का असर प्रो कुश्ती लीग के तीसरे संस्करण की नीलामी में दिखा जहां उन्हें दिल्ली सुल्तांस ने 55 लाख रुपए की राशि में अपनी टीम में शामिल कर लिया और इसके साथ ही सुशील के नाम प्रो रेसलिंग लीग का अब तक का सबसे महंगा खिलाड़ी होने का रिकॉर्ड दर्ज हो गया। सुशील फेडरेशन के साथ अपने मतभेदों के कारण पिछले दो साल कुश्ती लीग में नहीं खेले थे।
2017 में विश्व स्तर पर कुश्ती में भारतीय प्रदर्शन को देखा जाए तो सीनियर विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा, जबकि इसमें ओलंपिक पदक विजेता पहलवान साक्षी मालिक ने भी हिस्सा लिया था। इसके मुकाबले अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया और उसके तीन पहलवान फाइनल में पहुंचे। बजरंग पुनिया, विनोद कुमार और रितु फोगाट ने रजत पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया।
भारत ने अपनी मेजबानी में आयोजित हुई सीनियर एशियाई चैंपियनशिप में एक स्वर्ण, पांच रजत और चार कांस्य पदक जीते। भारत को इस चैंपियनशिप का एकमात्र स्वर्ण बजरंग ने दिलाया, जिन्होंने 65 किलोग्राम वर्ग में कोरियाई पहलवान को हराकर स्वर्ण जीता। साक्षी 60 किलोग्राम वर्ग के फाइनल में जापान की पहलवान से हार गईं और उन्हें रजत से संतोष करना पड़ा। इस हार के बाद साक्षी का बयान कि उन्हें जापानी पहलवानों को हराने के लिए अगला जन्म लेना पड़ेगा, लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रहा।
भारत ने ताइवान में आयोजित जूनियर एशियाई चैंपियनशिप में दो स्वर्ण, तीन रजत और आठ कांस्य पदक जीते। भारतीय कैडेट पहलवानों ने कैडेट एशियाई चैंपियनशिप में पांच स्वर्ण, दो रजत और 16 कांस्य पदक जीते। जूनियर विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में वीरदेव गुलिया ने कांस्य, मंजू कुमारी ने कांस्य और साजन ने कांस्य पदक जीते।
विश्व कैडेट चैंपियनशिप में सोनू और आशु ने रजत, सोनम और अंशु ने स्वर्ण तथा नीलम, सिमरन, मनीषा और मीनाक्षी ने कांस्य पदक जीते। भारत ने राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता में 29 स्वर्ण, 24 रजत और छह कांस्य पदक जीते। सुशील और साक्षी दोनों ने इस प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किए।
साल के आखिर में हुई कुश्ती लीग की नीलामी में सुशील को 55 लाख मिलने के अलावा अन्य भारतीय पहलवानों में विनेश फोगाट (यूपी दंगल, 40 लाख रुपए), साक्षी मलिक (मुम्बई महारथी, 39 लाख), गीता फोगाट (28 लाख, यूपी दंगल), बजरंग पूनिया (25 लाख, यूपी दंगल) को अच्छी कीमत मिली। कुल मिलकर यह साल जूनियर और कैडेट पहलवानों के लिए शानदार रहा। (वार्ता)