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17 वर्ष की उम्र में विम्बलडन विजेता बनने वाली रूसी सुंदरी मारिया शारापोवा का टेनिस को 'गुडबाय'

17 वर्ष की उम्र में विम्बलडन विजेता बनने वाली रूसी सुंदरी मारिया शारापोवा का टेनिस को 'गुडबाय'
, बुधवार, 26 फ़रवरी 2020 (20:08 IST)
पेरिस। रूसी टेनिस सुंदरी और 5 बार की ग्रैंड स्लैम चैम्पियन मारिया शारापोवा ने बुधवार को 32 साल की उम्र में टेनिस से संन्यास की घोषणा की। उन्होंने ‘वोग’ एंड ‘वैनिटी फेयर’ मैगजीन में आए एक लेख में कहा, ‘टेनिस को मैं गुडबाय कह रही हूं।
 
शारापोवा ने कहा, 28 साल और 5 ग्रैंड स्लैम खिताब के बाद, हालांकि मैं एक नई ऊंचाई को छूने और एक अलग सफर के लिए तैयार हूं।

रूस की इस स्टार खिलाड़ी ने अपने ग्रैंड स्लैम खिताब 2016 आस्ट्रेलियन ओपन में प्रतिबंधित पदार्थों के परीक्षण में विफल होने के बाद 15 महीने के प्रतिबंध से पहले जीते थे।
 
रूस की यह पूर्व नंबर एक रैंकिंग की खिलाड़ी पिछले साल कंधे की समस्या के कारण खेल नहीं पाई थी। जब उन्होंने खेलना शुरू किया तो वह काफी मुकाबलों में हार गईं।
 
वर्ष 2004 में 17 वर्ष की उम्र में विम्बलडन विजेता बनने वाली शारापोवा 2005 में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी बनीं थी और इसके अगले साल उन्होंने अमेरिकी ओपन खिताब जीता था। शारापोवा ने बुधवार को कहा, मेरी सफलता में सबसे अहम चीज यह थी कि मैंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ना ही ज्यादा आगे देखा।
 
मारिया शारापोवा के साथ वर्ष 2007 से कंधे की समस्या का दौर शुरू हुआ। 2008 ऑस्ट्रेलियाई ओपन में खिताब जीतने के बाद वह इसके कारण अमेरिकी ओपन और बीजिंग ओलंपिक में नहीं खेल पाईं। उन्होंने 2012 में फ्रेंच ओपन में खिताब जीता और वह करियर ग्रैंड स्लैम पूरा करने वाली 10वीं महिला खिलाड़ी बनीं। उन्होंने फिर ओलंपिक रजत पदक अपने नाम किया।
 
चोट के बावजूद उन्होंने 2014 में फ्रेंच ओपन ट्रॉफी जीती। इसके बाद प्रतिबंधित पदार्थ के परीक्षण में विफल रहने के कारण उन्हें 15 महीने के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। 2017 में उन्होंने वापसी की लेकिन सफल नहीं हो पाईं। उन्होंने कहा, टेनिस को अपनी जिंदगी दी और टेनिस ने मुझे जिंदगी दी। 
 
शारापोवा के अनुसार हर दिन टेनिस की कमी महसूस होगी। मुझे ट्रेनिंग और अपनी दिनचर्या की कमी खलेगी। तड़के उठना, जूते पहनने में दायें से पहले बायें जूते के फीते बांधना और दिन की पहली गेंद खेलने से पहले कोर्ट का गेट बंद करना।
 
शारापोवा ने कहा, अपनी टीम, अपने कोचों की कमी महसूस होगी। अभ्यास कोर्ट के बेंच पर अपने पिता के साथ बैठने के क्षणों की कमी महसूस होगी। जीत या हार के बाद हाथ मिलाने की कमी महसूस होगी।

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