जकार्ता। दुती चंद के कोच एन. रमेश के अनुसार इस धाविका ने अपनी कम लंबाई की भरपाई तेज कदमों से की है। कोच ने साथ ही यहां एशियाई खेलों में 2 रजत पदक जीतने का श्रेय कड़े 'स्पीड रबर ट्रेनिंग' कार्यक्रम को दिया।
ओड़िशा की 5 फीट 3 इंच लंबी दुती 100 और 200 मीटर दौड़ में दूसरे स्थान पर रहीं। उनका 100 मीटर में रजत पदक भारत का इस स्पर्धा में 20 साल में पहला पदक है।
इन पदकों ने अंतरराष्ट्रीय महासंघ आईएएएफ की विवादास्पद हाइपर एंड्रोगेनिज्म नीति के कारण हुए निलंबन से मिले घावों को भी कुछ हद तक कम कर दिया है। आईएएएफ की इस विवादास्पद नीति के खिलाफ दुती खेल पंचाट की शरण में गई थीं और फैसला उनके पक्ष में आया था।
रमेश ने कहा कि उसकी शुरुआत नैसर्गिक है, उसके कदमों की गति काफी अच्छी है इसलिए हमने पहले 30 से 40 मीटर पर कड़ी मेहनत की। इस सत्र में गति में इजाफे के लिए मैंने दुती से स्पीड रबर के साथ ट्रेनिंग करने को कहा।
'स्पीड रबर प्रक्रिया' में घुटनों के ठीक ऊपर बैंड पहना जाता है जिससे प्रतिरोध बढ़ जाता है। इस ड्रिल से मांसपेशियों की ताकत बढ़ जाती है जिससे फर्राटा धावक को तेजी से दौड़ने में मदद मिलती है।
रमेश ने कहा कि अगर आप नियमित रूप से ऐसा करते हैं तो इससे आप प्रतिस्पर्धा के दौरान भी इसी दमखम के साथ दौड़ सकते हो तथा अपने शरीर पर रबर बांधकर दौड़ते हुए संतुलन बनाना आसान नहीं होता। यह काफी तकनीकी ट्रेनिंग है। सबसे पहले आप ड्रिल में हिस्सा लेते हो, फर्स्ट आसान दौड़ और फिर तेजी से दौड़।