नागा साधु की भभूत भस्म, भभूति या भभूत लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार होती है। नागा बाबा या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या फिर यह राख धुनी की होती है।
हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्मी को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्मी नागा साधुओं का वस्त्र होता है।
नागा साधुओं का रूप : नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं। उनकी बड़ी-बड़ी जटाएं भी आकर्षण का केंद्र रहती है। हाथों में चिमटा, चिलम, कमंडल लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देखना अजीब लगता है। मस्तक पर आड़ा भभूतलगा तीनधारी तिलक लगा कर धुनी रमाकर रहते हैं।
नग्न अवस्था मे भस्मी या भभूत ही उनका वस्त्र होता है। यह भभूत उन्हें बहुत सारी आपदाओं से बचाती है, जैसे मच्छर या वायरल। इसे नागा साधुओं का प्रमुख श्रृंगार कहा जाता है।