Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

उज्जैन के हर नाम में एक कथा छुपी है... जरूर पढ़ें

Webdunia
प्राचीन भारत के प्रमुख राजनीतिक और धार्मिक केंद्रों में उज्जयिनी का विशिष्ट स्थान था। इसी कारण इस नगरी ने विभिन्न कालों में विभिन्न नामों को धारण किया। प्राय: प्राचीन संस्कृति के केंद्रभूत नगरों के 2 से अधिक नाम नहीं मिलते, परंतु महाकाल की पुण्यभूमि उज्जयिनी अपने विभिन्न नामों के कारण एक अनूठी विशेषता रखती है।
उज्जयिनी के विभिन्न नामों में प्रमुख नाम ये हैं- कनकश्रृंगा, कुशस्‍थली, अवन्तिका, पद्मावती, कुमुद्वती, प्रतिकल्पा, अमरावती और विशाला। कहीं-कहीं अम्बिका, हिरण्यवती और भोगवती ये नाम भी मिलते हैं। स्कन्दपुराण के अवन्ति खंड में इन नामों के कारणों का उल्लेख कथाओं द्वारा किया गया है।


कनकश्रृंगा- स्कन्द पुराण अवन्ति खंड के अध्याय 40 में कनकश्रृंगा नाम से संबंधित कथा है, जो इस प्रकार है- 'सुवर्णमय शिखरों वाली इस नगरी में अधिष्ठित जगतसृष्टा विष्णु को शिव तथा ब्रह्मा ने प्रणाम किया। उन्होंने विष्णु से इस नगरी में निवास करने के लिए स्‍थान की प्रार्थना की। विष्णु ने इस नगरी के उत्तर में ब्रह्मा को तथा दक्षिण में शिव को अधिष्ठित होने के लिए स्‍थान दिया और इस प्रकार यह नगरी ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों देवताओं का केंद्र स्‍थान बन गई। ब्रह्मा ने इस नगरी को कनकवर्ण के श्रृंगों वाली कहा था अतएव इसका नाम कनकश्रृंगा हो गया।
इस नाम का यथार्थ कारण संभवत: यहां के उत्तुंग प्रासाद रहे होंगे। कनकश्रृंगा का शब्दश: अर्थ है- 'सुवर्णमय शिखरों वाली'। ब्रह्म पुराण और स्कन्द पुराण में यहां के भवनों का भव्य वर्णन है। वे प्रासाद उत्तुंग थे और मूल्यवान रत्नों, मुक्ता ‍मणियों तथा तोरण द्वारों से सुशोभित थे। उनके शिखरों पर स्वर्णमय कलश थे। कालांतर में कालिदास और बाणभट्ट ने भी अपने काव्यों में यहां के उत्तुंग विशाल और ऐश्वर्यपूर्ण प्रासादों का चित्रण किया है। 

कुशस्थली- इस नाम से संबंधित कथा स्कन्द पुराण अवन्ति खंड के 42वें अध्याय के अनुसार इस प्रकार है- ब्रह्मा ने संपूर्ण सृष्टि का निर्माण किया तब सृष्टि की रक्षा का कार्य विष्णु पर आया, क्योंकि विष्णु जगत के पालनकर्ता हैं। इस संपूर्ण संसार में विष्णु को अधिष्ठित करने के लिए यह स्थान ही ब्रह्मा को उपयुक्त लगा। ब्रह्मा ने इस पवित्र स्थान को कुशों से आच्‍छादित कर दिया और विष्णु से वहां प्रतिष्ठित होने की प्रार्थना की। इस प्रकार कुशों से आच्छादित किए जाने के कारण इसका नाम कुशस्थली हो गया। 
'कुश' पवित्र घास को कहा जाता है जिसका प्रयोग देवताओं और ऋषियों के आसन के लिए किया जाता है। संभवत: इस क्षेत्र की पवित्रता और देवताओं का अधिष्ठान प्रकट करने के लिए ही कुशस्थली नाम पड़ा होगा।


अवन्तिका- स्कन्द पुराण के अवन्ति खंड के 43वें अध्याय में 'अवन्तिका' नाम पड़ने की कथा निम्नानुसार है- 'पूर्व समय में दैत्यों और देवताओं में युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवता पराजित हो गए, तब पराजित देवों ने मेरू पर्वत पर स्‍थित विष्णु के पास आश्रय लिया। विष्णु ने उन्हें शक्ति एवं अक्षय पुण्य प्राप्त करके कुशस्थली नगरी में जाकर रहने को कहा। महाकाल वन में स्थित यह नगरी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। यहां प्रत्येक कल्प में देवता, तीर्थ, औषधि, बीज तथा संपूर्ण प्राणियों का पालन होता है। यह पुरी सबका रक्षण करने में समर्थ है। यह पापों से रक्षा करती है अत: इसका नाम इस काल से (अवन्तिका) अवन्ति नगरी‍ हो गया है। 
'अव'-रक्षणे धातु रक्षा करने के अर्थ में प्रयुक्त होती है अत: 'अवन्तिका' का अर्थ है- 'रक्षा करने में समर्थ'। उज्जयिनी के समस्त नामों में 'अवन्ती' नाम ने अधिक प्रसिद्धि पाई। संस्कृत, पाली और प्राकृत साहित्यिक ग्रंथों में उज्जयिनी के साथ ही इस नाम का उल्लेख मिलता है। पौराणिक इतिहास के अनुसार हैहयों की शाखा अवन्तियों ने इस राज्य की स्थापना की और इसी कारण उनकी स्मृति में इसका नाम 'अवन्ती' हो गया।


उज्जयिनी- एक समय दैत्यराज त्रिपुर ने अपने असाध्य तप के द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया। त्रिपुर से प्रसन्न ब्रह्मा ने उसे देव, दानव, गंधर्व,‍ पिशाच, राक्षस आदि से अवध्यता का वरदान दे दिया। वर से संतुष्ट त्रिपुर ने ब्राह्मणों, ऋषियों और देवताओं का संहार करना आरंभ कर दिया। इससे समस्त देव उससे भयभीत हो गए तथा वे सभी शिव के पास गए। उन्होंने शिव से रक्षा के लिए प्रार्थना की, तब शिव ने त्रिपुरासुर से अवन्ती क्षेत्र में भयंकर युद्ध किया। उन्होंने अवन्ती नगरी में अपने पाशुपत अस्त्र से‍ त्रिपुरासुर के तीन टुकड़े कर उसे मार डाला। देवसेवित इस अवन्ती में त्रिपुरासुर उत्कर्षपूर्वक जीता गया। अतएव देवताओं और ऋषियों ने इसका नाम उज्जयिनी रख दिया। 
'उज्जयिनी' का शब्दश: अर्थ है- 'उत्कर्षपूर्ण विजय।' इस नगरी का 'उज्जयिनी' नाम ही अधिक प्रचलित है। पाली और प्राकृत ग्रंथों में भी इस नाम का बहुलता के साथ उल्लेख है। संस्कृत साहित्य के सभी ‍कवियों ने अपने ग्रंथों में प्राय: 'उज्जयिनी' नाम का प्रयोग किया है। आधुनिक युग में भी यही नाम अधिक प्रचलित है।


पद्मावती- पद्मावती नाम की कथा इस प्रकार है- 'समुद्र मंथन के उपरांत प्राप्त 14 रत्नों का वितरण इसी पावन स्थली में हुआ। देवताओं को यहीं पर रत्न प्राप्त हुए थे। रत्न प्राप्त कर देवताओं ने कहा कि इस उज्जयिनी में हम सब रत्नों के भोगी हुए हैं अत: पद्मा अर्थात लक्ष्मी यहां सदैव निश्चल निवास करेंगी और तभी से इसका नाम 'पद्मावती' हो गया।'
यहां की भव्य समृद्धि का वर्णन ब्रह्म पुराण, स्कन्द पुराण तथा कालिदास, बाणभट्ट, शूद्रक आदि के काव्य, नाटकों तथा पाली एवं प्राकृत ग्रंथों में मिलता है। इस नगरी की धन-धान्य में समृद्धि के कारण ही इसका नाम संभवत: 'पद्मावती' हो गया होगा।

कुमुदवती- कुमुदवती नाम की कथा स्कन्द पुराण में इस प्रकार है- 'जब लोमश ऋषि तीर्थयात्रा करते हुए पद्मावती नगरी में पहुंचे, तब उन्होंने यहां के सरोवर, तड़ाग, पल्वल, नदी आदि जलपूरित स्थलों को कुमुदिनी तथा कमलों से परिपूर्ण देखा। कुमुदों से सुशोभित स्थलों को देखकर उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो पृथ्‍वी अनेक चंद्रों से सुशोभित हो। शिव के मस्तक पर स्थित चंद्र की शोभा तथा प्रकाश से यह कुमुदिनी वन सदा प्रफुल्लित रहता था अत: लोमश ऋषि ने इसका नाम कुमुदवती रख दिया। इस नामकरण के मूल में यहां की आकर्षक प्राकृतिक शोभा है।

अमरावती- महाकाल वन में मरीचिनंदन कश्यप ने अपनी पत्नी सहित दुष्कर तपस्या की और वरदान पाया कि 'सूर्य और चंद्र की स्‍थिति तक पृथ्वी पर उनकी संतति अवश्य रहेगी।' देवता, असुर तथा मानव रूप उनकी समस्त प्रजा वृद्धि को प्राप्त हुई। यह महाकाल वन संपूर्ण ऐश्वर्य से युक्त हो गया। यहां पर समुद्र मंथन से प्राप्त दुर्लभ रत्नादि हैं। जो-जो भी इस संसार में दिव्य और अलौकिक वस्तुएं हैं, वे सभी इस महाकाल वन में प्राप्य हैं। समस्त देवता इस वन में प्रतिष्ठित हैं। यहां के नर-नारी भी देवताओं के समान हैं। संपूर्ण देवताओं के निवास के कारण यह नगरी अमरावती के नाम से प्रसिद्ध हो गई।

विशाला- महादेव ने पार्वती की इच्‍छानुसार इस विशाल पुरी का निर्माण किया और कहा कि यह नगरी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली होगी। इसमें पुण्यात्मा, देवर्षि तथा महर्षिजनों का निवास होगा। यहां सभी प्रकार के पशु-पक्षियों तथा पुष्पों एवं फलों से युक्त उपवन एवं स्वर्ण, मणि तथा मुक्ताओं से गुम्फित तोरणद्वार वाले विशाल प्रासाद होंगे। इस प्रकार यह नगरी हर प्रकार की समृद्धि और वैभव से युक्त हो गई तथा विशाला नाम से प्रख्यात हुई।
 
'विशाला बहुविस्तीर्णा पुण्या पुण्यजनाश्रया' से स्पष्ट है कि यह अन्य नगरियों की अपेक्षा विस्तीर्ण थी। कालिदास ने मेघदूत में 'श्रीविशालां विशालां' के पुनरुक्ति प्रयोग द्वारा उसकी विशालता की मधुर कल्पना की।

प्रतिकल्पा- 'पृथ्वी पर प्रलय और सृष्टि का चक्र चलता रहता है। पुराणों की विचारधारा के अनुसार प्रत्येक कल्प से सृष्टि का आरंभ होता है। 'कल्प' से तात्पर्य यह दिया गया है कि ब्रह्मा के दिव्य सहस्र युग का एक दिन कल्प कहलाता है। इस महाकाल वन में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों निवास करते हैं। प्रत्येक कल्प में सृष्टि का आरंभ यहीं से होता है। वामन, वाराह, विष्णु और पितरों आदि के जो भिन्न-भिन्न कल्प कहे गए हैं, वे सभी यहीं से प्रारंभ हुए। इस वन में 84 कल्प व्यतीत हो गए हैं, उतने ही ज्योतिर्लिंग यहां विद्यमान हैं। समस्त सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश होने पर भी यह नगरी सदैव अचल रही है अत: यह प्रतिकल्पा नाम से विख्यात होगी, ऐसा ब्रह्मा ने कहा और यह प्रतिकल्पा नाम से प्रसिद्ध हुई।' 

भोगवती और हिरण्यवती- इन दोनों नामों का समावेश भी उपर्युक्त नामों के अंतर्गत हो जाता है। समस्त प्रकार के भोगों से युक्त होने के कारण भोगवती और सुवर्ण की अधिकता से हिरण्यवती। इन दोनों नामों का समावेश अमरावती, विशाला एवं कनकश्रृंगा नाम में किया जाता है। 

उपर्युक्त समस्त नाम उज्जयिनी की पृथक-पृथक विशेषताओं का दिग्दर्शन कराते हैं। कनकश्रृंगा नाम यहां पर स्थित ऊंचे-ऊंचे रत्नमणि-मुक्तामंडित तोरणद्वारों से सुशोभित पासादों का बोध कराता है। कुशस्थली नाम यहां की पवित्रता और प्रमुख देवताओं की स्‍थिति का बोध कराता है। अवन्तिका नाम सबके पालन की सुव्यवस्था और सुरक्षा का बोध कराता है। शत्रुओं और असुरों पर की गई विजय की स्मृति उज्जयिनी नाम से होती है। इस नाम से यहां के योद्धाओं के असीम पराक्रम का भी बोध होता है। पद्मावती नाम श्रीसंपन्नता और वैभव का परिचय देता है। कुमुद्वती नाम यहां के नैसर्गिक सौन्दर्य और रमणीय प्रकृति का बोधक है। महाकाल वन, क्षेत्र, पीठ, देवों के विशाल मंदिर आदि देवताओं के निवास स्‍थान के रूप में इसके अमरावती नाम की सार्थकता है। विशाला नाम इस क्षेत्र की विस्तीर्णता के साथ श्री और संपन्नता का बोध कराता है। प्रतिकल्पा नाम इस पुरी की अचल स्‍थिति को सूचित करता है। 
 
समग्र रूप से यदि दृष्टिपात करें तो इन नामों के माध्यम से उज्जयिनी का भव्य चित्र उपस्थित हो जाता है। यह विशाल क्षेत्रफल वाली, ऐश्वर्य और वैभव से युक्त तथा अचल और सुरक्षित नगरी थी। यहां उत्तुंग महल और विशाल पवित्र मंदिर थे। यह प्रकृति की रमणीय स्थली थी।
 
आधुनिक समय में यह 'उज्जयिनी' नाम से प्रख्यात है। 'उज्जयिनी' शब्द का प्रयोग कब से प्रारंभ हुआ, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। पाणिनी ने (500 ई.पू.) अपनी अष्टाध्यायी में वरणादि गण-पाठ में 'उज्जयिनी' का नामोल्लेख किया है।
 
कालिदास और शूद्क ने भी प्रमुख रूप से 'उज्जयिनी' नाम का प्रयोग किया है। अत: यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी से इस नाम का प्रयोग होने लगा था। इस नाम को प्रसिद्ध होने और साहित्यिक ग्रंथों में स्‍थान प्राप्त करने के लिए कुछ समय अवश्य लगा होगा। अत: यह नाम ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी से पहले ही प्रचलित हो गया होगा। यही नाम प्रचलन में आते-आते उज्जैन हो गया। 

 
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

24 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

24 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

Makar Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: मकर राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

lunar eclipse 2025: वर्ष 2025 में कब लगेगा चंद्र ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा

Show comments