निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 22 जून के 51वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 51 ) में राम कथा सुनाने के बाद सांदीपनि ऋषि कहते हैं कि इस कथा के साथ त्रेतायुग के संपूर्ण अवतारों की कथा संपूर्ण होती है। फिर सांदीपनि ऋषि भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मैंने अपने गुरु के मुख से सुना था कि द्वापर युग में भी भगवान का अवतार होगा किंतु वो किस रूप में होगा ये वह नहीं जानते थे। हो सकता है कि हमारे जीवन में ही प्रभु का अवतार हो जाए, आगे जैसी उनकी इच्छा। यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुरा देते हैं। फिर सांदीपनि ऋषि कहते हैं कि इसके पश्चात मेरे पास केवल कुछ गुप्त विद्याएं ही रह गई हैं तो उनकी शिक्षा कल से आरंभ होगी। अब आगे।
दूसरे दिन सांदीपनि ऋषि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम को कुंडलिनी शक्ति और उसके सात चक्रों के रहस्य के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि योग के द्वारा इन चक्रों को जागृत किया जा सकता है। इनके जागृत होने से मनुष्य में कई शक्तियों का संचार होता है। सांदीपनि ऋषि फिर सूक्ष्म शरीर द्वारा दूर देश की यात्रा करने के बारे में भी बताते हैं।
बाद में सुदामा अपनी कुटिया में श्रीकृष्ण से कहते हैं कि तो कल तुम सूक्ष्म शरीर के द्वारा किसी दूर देश की यात्रा करोगे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि गुरुदेव ने तो ऐसा ही कहा है। यह सुनकर सुदामा कहते हैं काश! मुझमें भी तुम्हारे जैसी प्रतिभा होती तो गुरुदेव मुझे भी ऐसी शक्ति प्रदान करते और मैं भी नित्य प्रतिदिन ऐसी ही यात्रा करता।
यह सुनकर श्रीकृष्ण पूछते हैं कि नित्य प्रतिदिन कहां की यात्रा करते? सुदामा कहते हैं मैं अपनी माता से मिलने जाता। जहां मेरी मां दही बिलोती है जिसमें से माखन निकलता है। मैं रोज वहां जाकर माखन खाता और फिर यहां चला आता। सूक्ष्म देह होने के कारण वह मुझे देख नहीं पाती। बस चकित हो जाती कि उसका माखन कौन खा गया?
यह सुनकर श्रीकृष्ण को माता यशोदा की याद आ जाती है। वह कहते हैं क्या सुंदर दृश्य है माखन के साथ मिश्री। यह सुनकर सुदामा कहता है नहीं मिश्री नहीं। हमारे पास इतना धन नहीं है कि हम मिश्री खरीद सकें। हम तो गुड़ से ही मुंह मीठा कर लेते हैं। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि यदि हम उस यात्रा में तुम्हारे गांव के अंदर से गुजरे तो मैं तुम्हारी मां का माखन उठा लाऊंगा।
फिर आश्रम की गुरुमाता कहती हैं कि आज वन से लकड़ी लाने की बारी तुम तीनों की है। तनिक जल्दी जाकर ले आओ क्योंकि बादल छाए हैं तो बारिश हो सकती है। यह सुनकर सुदामा कहते हैं कि परंतु मुझे आपकी रसोई में पानी के पांच घड़े रखने हैं। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि लकड़ियां हम और सुदाम ही ले आएंगे और आज पानी भरने के लिए दाऊ को यहां छोड़ जाते हैं।
फिर सुदामा और श्रीकृष्ण वन में लकड़ियां लेने जाते हैं तो गुरुमाता उनके साथ खाने के लिए कुछ चने दे कर कहती हैं कि दोनों आधे-आधे खा लेना। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरा पल्लू तो फटा है ये सारे चने सुदामा को ही दे दो। मैं उससे आधे ले लूंगा।
फिर दोनों श्रीकृष्ण और सुदामा वन में दूर निकल जाते हैं और लकड़ियां काटने लगते हैं तभी वहां वर्षा होने लगती है। दोनों जल्दी-जल्दी लकड़ियां एकत्रित कर गट्ठर बांधने लगते हैं तभी वहां एक शेर की आवाज सुनाई देती है। सुदामा यह आवाज सुनकर डर जाता है तो श्रीकृष्ण कहते हैं अरे मेरे होते हुए तुम्हें डरने की आश्यकता नहीं। सुदामा कहते हैं तुम कोई बहादुर हो या बब्बर शेर जो तुम्हें देखकर भाग जाएगा। सुदामा नहीं मानता है तो फिर दोनों शेर से बचने के लिए एक पेड़ पर चढ़ जाते हैं। सुदामा ऊपरी डाल पर और श्रीकृष्ण नीचे की डाल पर बैठ जाते हैं। वहां एक नाग को देखकर सुदामा डर जाता है तो श्रीकृष्ण उस नाग को कहते हैं कि तुम किसी ओर पेड़ पर चले जाओ। मेरा मित्र तुम्हारे कारण डर रहा है। फिर वह उस नाग को हाथ से पकड़कर नीचे भूमि पर गिरा देते हैं। सुदामा कहता है तुम कैसे हो, तुम तो किसी से भी डरते नहीं।
फिर सुदामा अपने पल्लू से चने निकालकर चने खाने लगता है। चने खाने की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं, अरे ये कट-कट की आवाज कैसी आ रही है। कुछ खा रहे हो क्या? सुदामा कहता है नहीं, ये तो सर्दी के मारे मेरे दांत कट-कटा रहे हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं अच्छा बहुत सर्दी लग रही है क्या? सुदामा कहता है हां। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मुझे भी बहुत सर्दी लग रही है। सुना है कि कुछ खाने से शरीर में गर्मी आ जाती है तो लाओ वो चने जो गुरुमाता ने हमें दिए थे। दोनों बांटकर खा लेते हैं।
यह सुनकर सुदामा कहता है चने कहां हैं? वो तो पेड़ पर चढ़ते समय ही मेरे पल्लू से नीचे किचड़ में गिर गए थे। यह सुनकर श्रीकृष्ण समझ जाते हैं और कहते हैं ओह! यह तो बहुत बुरा हुआ क्योंकि तुम्हें तो भूख बहुत जल्दी लग जाती है ना, तो अब क्या करोगे? यह सुनकर सुदामा कहते हैं क्या करूंगा। आज तो ब्राह्मण भूखा ही रहेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं अरे वाह! कृष्ण के रहते उसका मित्र भूखा कैसे रह जाएगा? इस पर सुदामा कहते हैं कि तो कृष्ण क्या कर लेगा? इस पेड़ पर तो कोई फल भी नहीं है।
यह सुनकर नीचे की डाल पर बैठे भगवान श्रीकृष्ण अपने चमत्कार से हाथों में चने ले जाते हैं और ऊपर चढ़कर सुदामा को देकर कहते हैं कि पेड़ पर फल तो नहीं लेकिन मेरे पास ये चने हैं। सुदाम कहते हैं यह तुम्हारे पास कहां से आए? तब कृष्ण कहते हैं कि वह मुझे भूख कम लगती है ना। जब पिछली बार गुरुमाता ने जो चने दिए थे वह अब तक मेरी अंटी में बंधे हुए थे। ये देखो दो मुठ्ठीभर चने निकल आए हैं। ले लो अब जल्दी से खालो। तब सुदामा एक मुठ्ठी के चने ले लेता है तो कृष्ण कहते हैं अरे ये दोनों मुठ्ठी के चने तुम्हारे लिए ही हैं। सुदामा कहता है नहीं, यह मैं नहीं ले सकता। तब श्रीकृष्ण कहते हैं ले लो यह तुम्हारे लिए ही है। सुदामा फिर से मना कर देता है तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि देखो मित्र की दी हुई वस्तु को ठुकराते नहीं है।
यह सुनकर सुदामा कहता है नहीं नहीं, मैं इसे नहीं ले सकता। तब श्रीकृष्ण पूछते हैं क्यों नहीं ले सकते? सुदामा रोते हुए कहता है कि क्योंकि मैं इसका अधिकारी नहीं हूं और मैं तुम्हारी मित्रता का भी अधिकारी नहीं हूं। मैंने तुम्हें धोखा दिया है कृष्ण। मैंने तुम्हें धोका दिया है। गुरुमाता के दिए सारे चने तुमसे झूठ बोलकर मैं अकेला ही खा गया हूं। मैंने झूठ बोला है। मुझे क्षमा कर दो, मुझे क्षमा कर दो मित्र।
कृष्ण कहते हैं अरे! जिसे मित्र कहते हो उससे क्षमा मांगकर उसे लज्जित न करो मित्र। क्षमा मांगने से मित्रता के रिश्ते को लाज लगती है। अरे, मुझे धोका देने का पूरा अधिकार है तुम्हें। क्योंकि मित्रता की पहचान यही है। क्योंकि यदि एक धोका भी दे तो दूसरा उस धोके को मित्रता की पहचान समझकर उस धोके को स्वीकार कर ले। यदि दोनों एक दूसरे के लिए अच्छे-अच्छे रहेंगे तो मित्रता की पहचान कब होगी? क्षमा मांगकर इस रिश्ते को लज्जित मत करो।
फिर बलराम और श्रीकृष्ण को आश्रम में भिन्न-भिन्न कार्य करते हुए बताते हैं। फिर श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा भिक्षा मांगने के लिए जाते हैं। एक द्वार पर खड़े होकर तीनों भिक्षाम्देही कहते हैं तो एक महिला अपनी बेटी के साथ भिक्षा लेकर बाहर आती है और कहती हैं ब्रह्मचारियों आज आने में बहुत देर कर दी? यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं माता आज सारे आश्रम में सफाई करनी थी। बहुत काम था इसलिए विलंब हो गया। आपको प्रतीक्षा करना पड़ी उसके लिए क्षमा करें।
यह सुनकर वह महिला कहती हैं अरे क्षमा कैसी। मैं तो इसलिए प्रतीक्षा कर रही थी कि रोज तुम रूखी सूखी रोटी लेकर जाते हो आज घर में मालपुआ बने थे तो मैंने सोच तुम जल्दी आ जाओगे तो गरम-गरम खाओगे। देखो मैंने कपड़े से ढंककर मालपुआ गरम गरम रखे हैं तुम्हारे लिए।
यह देखकर सुदामा का मन ललचा जाता है। वह कहता है मालपुआ, आज मालपुए बने हैं। वह महिला कहती हैं हां आज घर में पूरणमासी की पूजा थी। फिर वह तीनों को मालपुए देकर कहती है अब इसे जल्दी से खाओ। गरम-गरम खाने में आनंद आता है। सुदामा तो खाने ही वाला रहता है कि तभी श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं माता, हम यहां नहीं खा सकते। वह महिला पूछती हैं क्यूं? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि आश्रम का यही नियम हैं कि सारी भिक्षा गुरु चरणों में अर्पित कर दी जाए। फिर वह उसमें से जितना दें वही हमें खाना चाहिए। यह सुनकर सुदामा को अच्छा नहीं लगता है। यह सुनकर वह महिला गुरु के लिए भी मालपुए का एक पैकेट दे देती हैं। अब उन तीनों के पासे चार पैकेट हो जाते हैं।
फिर तीनों वहां से चले जाते हैं। रास्ते में एक नदी के किनारे रुककर बलराम और श्रीकृष्ण हाथ मुंह धोने जाते हैं इसी दौरान सुदामा मालपुए निकालकर चुपचाप खाने लगता है। तभी श्रीकृष्ण उसे मालपुए खाते हुए देख लेते हैं और मुस्कुरा देते हैं। फिर वह चुपचाप उनके पास पहुंचकर कहते हैं तुम समझते हो कि मैंने कुछ नहीं देखा? तभी सुदामा पत्तल को मोड़कर पालपुए ढांक देता है और कहता है नहीं नहीं, मैं तो कुछ भी नहीं खा रहा हूं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं देखो झूठ बोलना पाप है। यह सुनकर सुदामा कहता है और ब्राह्मण को भूखा रखना भी पाप है। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं मैं तुम्हें भूखा रख रहा हूं? तब सुदामा कहते हैं और क्या, उसने कितनी ममता से कहा था कि मेरे सामने खालो और तुमने आश्रम के सारे नियम बता दिए।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं नियम तो है। गुरुदेव को पता चलेगा तो वे क्या कहेंगे? यह सुनकर सुदामा कहता है गुरुदेव को कैसे पता चलेगा? रोज हम तीन रोटी लेकर जाते हैं तो आज भी तीन रोटी लेकर जाएंगे। हां यदि तुमने गुरुदेव को न बता दिया तो। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि देखो मैं तुम्हारा मित्र हूं और मित्रता का धर्म कहता है कि मित्र की कमजोरी पर परदा डालना चाहिए। यह सुनकर सुदामा कहता है तो तुम नहीं कहोगे? श्रीकृष्ण कहते हैं कदापि नहीं। यह सुनकर सुदामा कहता है तो फिर सारे मालपुए खा लूं? श्रीकृष्ण कहते हैं हां खा लो। फिर सुदामा खा लेता है तो श्रीकृष्ण मालपुए कि एक पत्तल निकालकर सुदामा को देते हैं और कहते हैं ये तुम्हारे हिस्से की भिक्षा हो गई। गुरुमाता को दे देना। यह देखकर सुदामा प्रसन्न होकर कहता है कुछ भी कहो, तुम मित्र बड़े खरे हो।
फिर सांदीपनि ऋषि कहते हैं कि आज मैं तुम्हें सूक्ष्म शरीर से यात्रा करने की गुप्त विद्या सिखाऊंगा। सांदीपनि ऋषि, श्रीकृष्ण और बलराम अपने सूक्ष्म शरीर से यात्रा करते हैं। आकाश मार्ग से यात्रा करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं गुरुदेव हम कहां जा रहे हैं? तब सांदीपनि ऋषि कहते हैं हिमालय पर्वत पर, बहुत दिनों से श्रीबद्रीनारायण के दर्शन नहीं किए हैं। इसलिए सोचा आज उनके दर्शन ही करलें।
बद्रीनाथ पहुंचकर सांदीपनि ऋषि कहते हैं कि यह स्थान बड़े महात्माओं का तप स्थल भी है। यह सबसे पवित्र स्थान है। वहां बद्रीनाथ की मूर्ति के दर्शन करके वह कहते हैं कि
यह कई आध्यात्मिक शक्तियों का एक महान केंद्र हैं। यहां सभी महान आत्माएं तपस्यारत हैं जिन्हें हम इस सूक्ष्म शरीर से भी देख नहीं सकते हैं। उन सभी महान आत्माओं को प्रणाम करो। फिर तीनों प्रणाम करते हैं तो आकाश में नारदमुनि बद्रीविशाल की स्तुतिगान करने लगते हैं। श्रीकृष्ण को मूर्ति में नारायण के दर्शन होते हैं। जय श्रीकृष्ण।