निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 6 जून के 35वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 35 ) में उधर, राधा को कृष्ण से बिछड़ने का सपना आता है। वह चौंककर उठ जाती है। उठकर वह खिड़की पर खड़ी हो जाती है और पूर्णिमा के चांद को देखती हैं। दूसरी ओर उसी चांद को देखते हुए श्रीकृष्ण को बताया जाता है। राधा कहती हैं तो आपने जाने की तैयारी कर ली? कृष्ण कहते हैं हां राधे। अब जाने का समय हो गया। कल हमें विदा करने गोकुल नहीं आओगी? राधा कहती हैं नहीं। तब कृष्ण कहते हैं तुम जानती हो कि एक बार गोकुल छोड़ने के बाद हम लौट के कभी नहीं आएंगे। इसलिए जाने से पहले एक बार दर्शनों की अभिलाषा है।
तब श्रीकृष्ण और राधा एकांत में मिलते हैं। राधा कहती हैं कहो क्या कहना है? कृष्ण कहते हैं कहना तो कुछ नहीं केवल आज्ञा लेने आया हूं। राधा कहती हैं आज्ञा लेने आए हो या प्राण लेने? फिर राधा कहती हैं आप मेरी आज्ञा मानते हैं? तब कान्हा कहते हैं अवश्य। तब राधा कहती हैं कि तो यदि मैं ये कहूं कि तुम वृंदावन छोड़कर नहीं जाओगे तो क्या मेरी बात मानोंगे? तब कृष्ण कहते हैं कि यदि आज्ञा दोगी तो अवश्य मानूंगा। तब राधा आज्ञा देती हैं कि तुम वृंदावन छोड़कर कहीं नहीं जाओगे। यह सुनकर कृष्ण कहते हैं अच्छी बात है मैं वचन देता हूं कि तुम्हारी आज्ञा बगैर में कहीं नहीं जाऊंगा। यह सुनकर राधा कहती हैं कि तो बैठ जाओ मेरे पास और बजाओ अपनी मुरली। कृष्ण कहते हैं जो आज्ञा। फिर कृष्ण राधा के पास बैठकर मुरली बजाते हैं। यह दृश्य सभी देवता देखकर दंग रह जाते हैं।
सभी देवता राधा और श्रीकृष्ण के समक्ष त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए प्रकट होते हैं और कहते हैं कि हमारी रक्षा करो प्रभु। हमारी रक्षा करो माता। यह कहते हुए सभी राधा और कृष्ण के समक्ष हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं। ब्रह्माजी राधा के समक्ष हाथ जोड़कर कहते हैं, माता आप तो जानती हैं कि हमारे प्रभु का यह अवतार धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए ही हुआ है। फिर इंद्रदेव कहते हैं कि माता यदि आप इन्हें इस समय रोक लेंगी तो इस धरती के सारे प्राणी त्राहि-त्राहि कर उठेंगे। सभी देवता राधा से प्रार्थना करते हैं कि हे माता हम सब आपके बालक हैं और हम सबकी इच्छा है कि इस समय आप प्रभु को जाने की आज्ञा दें।
यह देखकर राधा कृष्ण से कहती हैं कि स्वयं हार गए तो देवताओं को सहायता के लिए बुला लिया। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमने किसी को नहीं बुलाया। अब तो आप जानें और आपकी संतान। इस पर राधा कहती हैं कि आप जानते हैं कि स्त्री की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी संतान ही होती है। इसी संतान मोह में फंसा दिया है हमें। फिर राधा सभी देवताओं से कहती हैं कि हमनें आप सबकी प्रार्थना स्वीकार कर ली आप सबका कल्याण हो। यह सुनकर राधारानी की सभी देवता स्तुति करने लगते हैं।
फिर राधा और श्रीकृष्ण को विछोह हो जाता है। लेकिन जाने से पहले राधा दो वचन ले लेती है। पहला यह कि हर समय मेरे हृदय में आप ही का वास हो और दूसरा यह कि इस धरती को छोड़ने से पहले मुझे आपकी चरण धूली प्राप्त हो। श्रीकृष्ण कहते हैं कि एक वचन में तुमसे भी मांगता हूं कि तुम आंसू नहीं बहाओगी। तब राधा कहती है कि यह बहुत कठिन है। फिर भी राधारानी वचन दे देती हैं और उनके अंतिम आंसू श्रीकृष्ण के चरणों में गिर जाते हैं।
दूसरे दिन श्रीकृष्ण और बलराम के मथुरा जाने को लेकर पूरा गांव विदाई के लिए उमड़ पड़ता है। श्रीकृष्ण अपनी माता यशोदा मैया के पैर छूते हैं और उनसे जाने की आज्ञा लेते हैं। फिर श्रीकृष्ण सबसे मिलते हैं। वे हाथ जोड़कर सभी ग्रामवासियों से आज्ञा लेते हैं। सभी गांव के लोग कृष्ण, बलराम, यशोदा, रोहिणी, नंद और अक्रूरजी के पीछे-पीछे हाथ जोड़कर चलते हैं। गांव के प्रत्येक व्यक्ति की आंखों में आंसू होते हैं।
द्वार के बहार रथ खड़ा रहता है। रास्तेभर सभी ग्रामीण हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। श्रीकृष्ण अपने मित्र मनसुखा आदि को देखकर रुक जाते हैं। सभी की आंखों में आंसू होते हैं। श्रीकृष्ण सभी के गले मिलकर रोते हैं। फिर वह माता रोहिणी और यशोदा मैया के गले लगकर रोते हैं और फिर रथ पर सवार हो जाते हैं। बलरामजी और अक्रूरजी भी रथ पर सवार हो जाते हैं। फिर श्रीकृष्ण सभी से अंतिम विदाई में गोकुलवासियों के हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। रथ आगे बढ़ जाता है। सभी रोते हुए उनके रथ के साथ चलते हैं। अंत में रथ आगे निकल जाता है।
उधर घाट पर राधा के पास उसकी सखियां आकर राधा से कहती हैं कि तेरा कन्हैया तो गोकुल छोड़कर जा रहा है। लेकिन राधा आंखों में आंसू लिए चुपचाप बैठी रहती हैं। सभी सखियां कहती हैं उनके पास जा और उन्हें रोक। राधा कहती हैं मेरे रोकने से वे रुकते तो मैं अवश्य रोकती, परंतु वे नहीं रुकेंगे ललीता। ललीता कहती हैं राधा तू भले ही ना जा लेकिन मैं उनसे उत्तर अवश्य मांगूगी कि किस तरह वे तुझे धोखा दे सकते हैं। आज उन्हें सारे संसार के सामने तेरा प्रेम उन्हें स्वीकार करना होगा, चल मेरे साथ। लेकिन राधा कहती हैं मैं नहीं जाऊंगी। तब ललीता कहती हैं कि हम जाएंगे और उनसे उत्तर मांगेंगे। सभी सखियां जाकर श्रीकृष्ण के मार्ग में लेटकर रास्ता रोक लेती हैं।
रथ वहां से गुजरता है तो श्रीकृष्ण आदि सभी देखते हैं कि मार्ग में सखियां लेटी हुए हैं। रथ उनके पास जाकर रुक जाता है। अक्रूरजी पूछते हैं सारथी से क्या हुआ? सारथी कहता हैं प्रभु इन लोगों ने रास्ता रोका है। अक्रूरजी क्रोध में उठकर अपनी तलवार निकालकर कहते हैं किन लोगों ने? सखियां कहती हैं हमने... पलटकर अक्रूरजी देखते हैं कि कुछ महिलाएं लेटी हुई हैं तो उनको कुछ समझ में नहीं आता है।
श्रीकृष्ण उन सखियों को देखकर मुस्कराते हैं। अक्रूरजी रथ से नीचे उतरकर उन सखियों के पास जाकर पूछते हैं पर क्यूं? सखियां कहती हैं कि हम कान्हा को गोकुल से नहीं जाने देंगी। रथ पर सवार कान्हा और बलराम मुस्कुराते रहते हैं। अक्रूरजी क्रोधित होकर पूछते हैं परंतु क्यूं? यह सुनकर ललीता उठकर कहती हैं, देखिये अक्रूरजी हर बात पर आप क्यूं पूछते रहेंगे तो हम कितनी बार इस क्यूं का उत्तर देती रहेंगी? बस हमने ये कह दिया कि कान्हा को गोकुल से नहीं जाने देंगी। इसमें क्यूं का तो कोई प्रश्न ही नहीं।
अक्रूरजी कहते हैं परंतु बालिकाओं हम इस तरह स्थान स्थान पर रुकेंगे तो हमें मथुरा पहुंचने पर देर हो जाएगी। ललीता कहती हैं तो ठीक है आपको जाना हो तो जाइये लेकिन कान्हा नहीं जाएगा। दूसरी सखी कहती हैं आपका नाम तो अक्रूर है लेकिन आपके भीतर को क्रूरता भरी हुई है। फिर ललीता रोते हुए कहती हैं आप जिसे ले जा रहे हो उसके बिना ये गोकुल, ये वृंदावन, ये खेत-खलिहान सब उजड़ जाएंगे। दूसरी सखी विशाखा कहती हैं और हम ये अपने जीते जी नहीं होने देंगी। कान्हा को ले जाना है तो रथ हमारे ऊपर से ले जाओ।
ललीता कहती हैं, हम सीधीसादी ग्वालिनों में प्रेम की ज्वाला भड़काकर उन्हें इस तरह छोड़कर चले जाना धर्म नहीं महापाप है छल है। विशाखा कहती हैं अरे इन्हें क्या कहती है उस निर्दयी कान्हा को देखो जो चुपचाप वहां बैठे हमारा तमाश देख रहा है। कुछ बोलता भी नहीं और इन्हें कुछ कहता भी नहीं।
कृष्ण कहते हैं कि मैं इन्हें कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि ये मेरे माता-पिता की आज्ञा है। इसीलिए मैं इनके साथ जाने के लिए विवश हूं। ललीता कहती हैं, एक दिन अपने माता-पिता की आज्ञा से हमें छोड़कर चले जाओगे ये बात तब नहीं सोची थी जब मुरली बजाकर हमें अपने प्रेम के जाल में फंसा लिया था? जय श्रीकृष्णा।