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Shri Krishna 6 Oct Episode 157 : श्रीकृष्णा धारावाहिक में महाभारत प्रसंग का अब तक का सफर

Shri Krishna 6 Oct Episode 157 : श्रीकृष्णा धारावाहिक में महाभारत प्रसंग का अब तक का सफर

अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020 (23:10 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 6 अक्टूबर के 157वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 157 ) में यह सुनकर धृतराष्ट्र कहता है कि काश मेरी भी आंखें होती। काश तात वेद व्यास ने मुझे भी दिव्य दृष्टि दी होती। काश मैं भी देख सकता। यह सुनकर संजय कहता है कि महाराज देख नहीं सकते तो अपने कानों को उस महाध्वनि पर केंद्रित करिये जो इस समय सारे ब्रह्मांड में गूंज रही है। यह सुनकर धतृराष्ट्र ध्यान से सुनता है तो उसे शंख, घंटियों, ढोल आदि की आवाज सुनाई देती है। सभी देवी और देवता श्रीकृष्ण के इस स्वरूप का स्तुति गान कर रहे होते हैं।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
संपूर्ण गीता हिन्दी अनुवाद सहित पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें... श्रीमद्‍भगवद्‍गीता 

 
फिर रामानंद सागरजी आकर कहते हैं गीता के ग्वारहवें अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए थे। इसके बाद गीता के सात अध्याय अभी बाकी है। सो पहले हम गीता के बाकी अध्याय आपको दिखाएंगे। तत्पश्चात महाभारत युद्ध के वह हिस्से प्रस्तुत करेंगे जिनमें श्रीकृष्ण की मुख्‍य भूमिका रही और जहां उन्होंने अपने पार्थ सारथी रूप का कर्तव्य निभाया। फिर पांडवों का राज्याभिषेक करके वे उन्हें फिर कुरुक्षेत्र में ले आए जहां भीष्म पितामह तीरों की सेज पर लेटे मृत्यु का रास्ता देख रहे थे। वहां श्रीकृष्‍ण के कहने पर भीष्म ने पांडवों को अंतिम उपदेश दिया और जो ज्ञान सिखाया उसकी उपमा सारे संसार में कहीं नहीं। ज्ञानी लोग तो उसे गीता जितना ही महत्व देते हैं। 
 
उस शांति पर्व के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण की मानव लीला का वह परम सुंदर भाग है जहां उन्होंने इस धरती पर किए हुए अपने सारे कर्मों को एक-एक करके सहेजा। माता-पिता के अतिरिक्त अपने यादव कुल के समस्त संबंधियों को कल्याण का रास्ता दिखाया और आवश्यकता पड़ने पर अधर्म, अन्याय और अहंकार का नाश भी किया। 
 
फिर जिस महाभारत युद्ध में श्रीकृष्‍ण ने गीता सुनाई उस भयंकर महायुद्ध के कारण क्या थे, उस महाविनाश का बीच कहां पड़ा? यह बीज तब पड़ा जब दुर्योधन आदि से पांडवों की उन्नति और प्रगति देखी नहीं गई। दुर्योधन ने उन्हें जान से मारने की भी कोशिश की। 
 
फिर लाक्षागृह प्रकरण, कौरव और पांडवों के बीच जुएं का खेल का प्रसंग, द्रौपदी का चीरहरण, भीम की प्रतिज्ञा, श्रीकृष्ण द्वारा द्रौपदी की लाज को बचाना, जुएं में हारने पर पांडवों को वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास का फरमान सुनाना, वनवास और अज्ञातवास में श्रीकृष्ण द्वारा पांडवों को शक्तिशाली बनने की सलाह देना, अर्जुन द्वारा इंद्र से दिव्यास्त्र ग्रहण करना, अज्ञातवास की समाप्ती पर दुर्योधन द्वारा पांडवों को खोजने का प्रयास करना।
 
अज्ञातावस में पांडवों द्वारा विराट नगर के राजा के यहां भेष बदलकर रहना, फिर अज्ञातवास का समय पूर्ण होने के बाद विराट नगर में ही रहना, अभिमन्यु का विवाह, पांडवों के द्वारा हस्तिनापुर अपना दूत भेजकर धृतराष्ट्र से अपने इंद्रप्रस्थ को वापस लौटाने की बात करना, दुर्योधन द्वारा इंद्रप्रस्थ लौटाने से इनकार करना, श्रीकृष्ण का शांतिदूत बनकर जाना और पांच गांवों की मांग करना, दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण को बंदी बनाने का प्रयास करना, श्रीकृष्ण द्वार अपना विराट रूप दिखाकर वहां से चले जाना, महायुद्ध की तैयारी करना, कुरुक्षेत्र में सेनाओं का एकत्रित होना, युद्ध को रोक देने के लिए अंतिम प्रयास स्वरूप वेद व्यासजी का धृतराष्‍ट्र के पास जाना और धृतराष्ट्र को चेतावनी देना, वेद व्यासजी का संजय को दिव्य दृष्‍टि प्रदान करना। 
 
इसके बाद करुक्षेत्र में पहले दिन के युद्ध के लिए दोनों ओर की सेनाओं का एकत्रित होना, संजय के द्वारा युद्ध भूमि का हाल बताना, अर्जुन द्वारा श्रीकृष्‍ण से रथ को युद्ध भूमि में दोनों सेनाओं के बीच ले जाने का निवेदन करना। दोनों ही ओर अपने ही सगे-संबंधियों को देखकर अर्जुन द्वारा युद्ध के लिए इनकार कर देना यह सब बताया जाता है। फिर श्रीकृष्ण उसे गीता का ज्ञान देना प्रारंभ करते हैं और फिर श्रीकृष्ण अपने विराट रूप का दर्शन कराते हैं। जय श्रीकृष्णा।

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