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Shri Krishna 26 Sept Episode 147 : युद्ध के पूर्व दुर्गा पूजा, अर्जुन का युद्ध करने से इनकार करना

Shri Krishna 26 Sept Episode 147 : युद्ध के पूर्व दुर्गा पूजा, अर्जुन का युद्ध करने से इनकार करना

अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 26 सितम्बर 2020 (23:38 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 26 सितंबर के 147वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 147 ) में वेद व्यासजी धृतराष्ट्र से युद्ध रोकने का कहते हैं परंतु धृतराष्ट्र कहते हैं कि मेरे पुत्र मेरे वश में नहीं हैं तब वेद व्यासजी कहते हैं कि महाविनाश होगा। इसके बाद वेद व्यासजी संजय को युद्ध देखने के लिए दिव्य दृष्‍टि प्रदान कर देते हैं।
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
फिर संजय कहता है- भगवन! मैं सबकुछ देख सकता हूं। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं स्वयं कुरुक्षेत्र में खड़ा हूं। तब धृतराष्ट्र पूछते हैं- संजय क्या तुम मुझे बता सकते हो कि मेरा प्रिय पुत्र दुर्योधन कहां है? यह सुनकर वेद व्यासजी कहते हैं- धृतराष्ट्र मेरे इतना समझाने पर भी तुमने पुत्र मोह का त्याग नहीं किया। अब भी समय है धृतराष्ट्र, अब भी समय है। जो अनर्थ होने वाला है उसका स्मरण करो। इस कुल के ज्येष्ठ होने के नाते मैंने तुम्हें सत्यता का ज्ञान करा दिया। मेरे कर्तव्य की सीमा यहीं तक थी। अब मैं वापस जाना चाहूंगा। फिर वेद व्यासजी वहां से चले जाते हैं।

फिर रामानंद सागरजी कहते हैं कि आज से हम श्रीकृष्ण के जीवन का ऐसा अध्याय शुरू करेंगे जिसमें उन्होंने गीता के ज्ञान का उपदेश दिया था।
 
फिर रामानंद सागरजी गीता के बारे में देश के विद्वान क्या कहते हैं इस संबंध में बताते हैं। जिस दिन ये गीता भगवान के श्रीमुख से निकली थी ये उसी दिन की प्रभात का दृश्य है। अभी तो यह सूर्योदय के समय से पहले का समय है जिसे अमृतवेला कहते हैं। इस पवित्र वेले में लोग अपने भगवान अपने ईष्ट की पूजा करते हैं। वही परंपरा इसी धार्मिक संस्कृति की झलक इस समय दोनों सेनाओं के शिविरों में दिखाई दे रही है। आज शाम तक कौन जीता रहेगा और कौन मर जाएगा कोई नहीं जानता। परंतु इसकी चिंता किए बिना सभी लोग अपने अपने कुलाचार के साथ सभी लोग अपने अपने ईष्ट की पूजा कर रहे हैं। दोनों शीविरों से अग्निहोत्र कर्म का आकाश की ओर जाता हुआ धुंआ वातावरण को शुद्ध कर रहा है। सब लोग अपनी अपनी पूजा में मग्न हैं। 
 
फिर श्रीकृष्ण अर्जुन के पास आकर कहते हैं कि हवनकुंड में पूर्णाहुति के पहले तुम्हें विजय प्राप्ति के लिए माता दुर्गा की पूजा करना चाहिए। इस अनंत सृष्टि का सारों कारोबार जिस शक्ति के द्वारा चलता है वह शक्ति भगवती दुर्गा है। भगवान का एक रूप केवल संकल्प का है और भगवान का ही दूसरा रूप इस संकल्प को साकार करने वाली शक्ति रूप भगवती दुर्गा है। 
 
फिर अर्जुन श्रीकृष्ण के समक्ष देवी भगवती दुर्गा की उपासना और स्तुति करता है। देवी प्रकट होकर कहती है- हे पांडव चिंता त्याग दो, तुम थोड़े ही समय में शत्रु को जीत लोगे। आप दोनों नर और नरायण का रूप हो इसलिए साक्षात इंद्र भी आपसे युद्ध में शत्रुता मोल लेने का साहस नहीं करेंगे तो फिर अन्य शत्रु कितने भी बलवान हो आपके आगे तुच्छ हैं। इस युद्ध में अंतिम विजय आपकी ही होगी, तथास्तु। 
 
फिर पहले दिन के युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र में दोनों ओर की सेनाएं एकत्रित हो जाती हैं।
 
फिर संजय देखकर बताता है कि युद्ध में दोनों पक्षों की सेना अपने शस्त्रों से सुसज्जित होकर एक-दूसरे के सामने खड़ी है। दोनों ओर के सेनापतियों ने अपना अपना व्यूह बना लिया है। तब श्रीकृष्‍ण सेनापति धृष्टदुम्न के पास रथ को ले जाते हैं तो अर्जुन कहता है- हे सेनापति आप हमें अपनी व्यूह रचना में हमारा स्थान बता दीजिये, तो धृष्टदुम्न कहता है कि मेरी इस व्यूह रचना का उद्देश्य सम्राट युधिष्‍ठिर की रक्षा करते हुए कौरवों से युद्ध करना है। इसलिए भीम को सम्राट के बाईं ओर खड़ा किया है और तुम सम्राट के दाईं ओर रहोगे तथा नकुल और सहदेव पीछे से मोर्चा संभालेंगे। हे अर्जुन! कौरवों के तीरों को रोकने के दायित्व तुम्हारा होगा। अर्जुन कहता है जो आज्ञा सेनापति।
 
फिर संजय बताता है कि हे महाराज! पांडवों की व्यूह रचना देखकर युवराज दुर्योधन आचार्य द्रोण के पास जा रहे हैं। दुर्योधन कहता है कि मुझे इस युद्ध के परिणाम की तनिक भी चिंता नहीं है क्योंकि आप जैसा धनुर्धर जिस भी सेना के पक्ष में हो वह पक्ष युद्ध में कैसे पराजित हो सकता है। गुरुवर मुझे केवल चिंता है पितामह के प्राणों की। यह सुनकर द्रोण कहते हैं- अरे भला उन पर कौन शस्त्र उठा सकता है? यह सुनकर दुर्योधन कहता है- यही हमारी भूल है गुरुवर। पितामह ने पांडवों का वध ना करने का निर्णय लिया है परंतु मुझे पांडवों पर विश्वास नहीं है। वो पितामह पर अवश्य वार करेंगे। यही मैं कहने आया था। गुरुवर आप और पितामह जब तक मेरे पक्ष में हैं मुझको कोई हरा नहीं सकता। ऐसा कहकर दुर्योधन चला जाता है।
 
फिर भीम युद्धघोष का शंखनाद करते हैं। तब धृतराष्ट्र कहते हैं- हे संजय तो क्या युद्ध की घोषणा हो गई? यह सुनकर संजय कहता है- नहीं महाराज युद्ध की घोषणा होते ही अचानक अर्जुन ने श्रीकृष्‍ण से कहा, हे केशव! मैं दोनों सेनाओं का अवलोकन करना चाहता हूं अत: मेरा रथ दोनों सेनाओं के मध्य ले चलो। यह सुनकर श्रीकृष्‍ण कहते हैं- तो तुम देखना चाहते हो कि दुर्योधन को विजय बनाने के लिए कौन-कौन योद्धा सम्मिलित हुए हैं और तुम्हें किस-किस से युद्ध करना होगा? यह सुनकर अर्जुन कहता है- हां केशव मैं यही देखना चाहता हूं। चलो मेरा रथ दोनों सेनाओं के मध्य में ले चलो।
 
फिर श्रीकृष्ण रथ को दोनों सेनाओं के मध्य ले जाकर कहते हैं- हे अर्जुन! तुम्हारी इच्‍छा के अनुसार मैं ये रथ दोनों सेनाओं के मध्य में ले आया हूं। हे पार्थ कौरवों की सेना की ओर देखने से पहले एक बार तुम अपनी सेना को देख लो। एक तक बलभीम खड़ा है जो अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए उत्सुक है। सेना के मध्य में तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राताश्री धर्मराज युधिष्ठिर है और उनके बाएं और दाएं नकुल और सहदेव हैं। ये तुम्हारे चारों भाई तुम्हारे गांडिव की टंकार सुनने के लिए बैचेन हैं। इन चारों भाइयों ने तुम्हारा दु:ख और सुख में साथ दिया है। परंतु अब वे अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उत्सुक हैं और वो देखो तुम्हारा पुत्र अभिमन्यु जो नई नवेली दुल्हन उत्तरा को आशंकाओं के घेरे में छोड़कर रणभूमि पर खड़ा है और वो देखो तुम्हारा सेनापति धृष्टदुम्न अपनी बहन द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए युद्ध के प्रारंभ होने का इंतजार कर रहा है। 
 
...और अब तुम शत्रु की सेना की ओर देखो। सेना के अग्र में खड़े हैं पितामह भीष्म। पांडवों के और तुम्हारे सबसे बड़े शत्रु। यह सुनकर अर्जुन आश्चर्य से कहता है- पितामह और हमारे सबसे बड़े शत्रु! तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हां पार्थ क्या तुम नहीं जानते कि पितामह जैसे धनुर्धारि इस त्रिलोक में दूसरा कोई नहीं है। पितामह ने परशुराम जैसे धनुर्धर को भी परास्त किया है। केवल उनके शौर्य और पराक्रम पर ही दुर्योधन ये युद्ध कर रहा है। पितामह कौरवों की विजय का आश्वासन है। पितामह पर कोई विजय प्राप्त नहीं कर सकता। यदि तुम्हें पांडवों को विजयश्री की माला पहनानी है तो हे अर्जुन! तुम्हें पितामह का वध करना होगा। यह सुनकर अर्जुन कहता है- पितामह का वध? 
 
फिर श्रीकृष्ण कहते हैं- अब तुम अपने दूसरे महाशत्रु को देख लो आचार्य द्रोण, तुम्हारे गुरुदेव जो तुम्हारे महाशत्रु हैं। यह सुनकर अर्जुन द्रवित होकर कहता है- ये तुम क्या कह रहे हो केशव, गुरु द्रोणाचार्य और हमारे महाशत्रु? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हे पार्थ! तुम तो जानते ही हो कि पितामह भीष्म जैसे आचार्य द्रोण भी अजेय है। जब तक उनके हाथ में अस्त्र है तब तक त्रिलोक का कोई भी महावीर उन्हें परास्त नहीं कर सकता। जब तक तुम ऐसे महाशत्रु का वध नहीं करोगे तब तक पांडव विजयी नहीं होंगे और उनकी दाईं और युवराज दुर्योधन जो तुम्हारे भाई की भांति गदायुद्ध में सर्वश्रेष्ठ है। हे कौंतेय! यदि तुम्हें पांडवों को विजय बनाना है तो तुम्हें इन सबका वध करना होगा। 
 
यह सुनकर अर्जुन द्रवित होकर कहता है- वध, इन सबका वध? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हां इन सबका वध। यदि तुम इन सबका वध नहीं करोगे तो ये सब तुम्हारा वध कर देंगे क्योंकि कौरव ये भलिभांति जानते हैं कि उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त करनी है तो उन्हें सर्वप्रथम अर्जुन का वध करना होगा, यही युद्ध भूमि का नियम है। यहां वीरों का स्वागत फूलों की माला से नहीं बाणों से किया जाता है। यहां शत्रु से प्रेम नहीं उन पर प्रहार किया जाता है। इसलिए इससे पहले कि ये सब तुम्हारा वध कर दें, तुम्हें इन सबका वध करना होगा।
 
यह सुनकर अर्जुन द्रवित होकर कहता है- मुझे अपने इन ज्येष्ठों का वध करना होगा! पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्‍थामा, मुझे इन सबका वध करना होगा? तब श्रीकृष्‍ण कहते हैं- हां यदि तुम्हें पांडवों को विजयी बनाना है तो तुम्हें इन सबका वध करना होगा। क्या सोच रहे हो पार्थ। ये समय सोचने का नहीं है युद्ध करने का है। तुम्हारे गांडिव की टंकार सुनने के लिए ना केवल ये युद्ध भूमि बल्कि आकाश में देवता भी प्रतिक्षा कर रहे हैं। 
 
श्रीकृष्ण कहते हैं- वो देखो पार्थ तुम्हारे पिता इंद्र स्वर्ग से देख रहे हैं कि तुम कैसे अपने शत्रुओं का वध करोगे। तब अर्जुन अपनी कल्पना शक्ति से देखता है कि वह कैसे अपने ही लोगों का वध करता है। यह देखकर वह द्रवित हो जाता है कि उसके कुल ही सभी विधवा महिलाएं उसे दोष दे रही हैं। यह कल्पना करके अर्जुन कहता है- नहीं कृष्णा नहीं, मैं अपनों के खून से अपना हाथ नहीं रंग सकता। मेरी आत्मा तो उस दृश्य की कल्पना से ही कांप उठती है। अंत में अर्जुन कहता है- नहीं नहीं केशव मैं युद्ध नहीं करूंगा। जय श्रीकृष्णा।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 

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