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Shri Krishna 8 Sept Episode 129 : संभरासुर की माया के फेर में आकर प्रद्युम्न जब लेट जाता है चिता पर

Shri Krishna 8 Sept Episode 129 : संभरासुर की माया के फेर में आकर प्रद्युम्न जब लेट जाता है चिता पर

अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 8 सितम्बर 2020 (22:23 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 8 सितंबर के 129वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 129 ) में उधर, संभरासुर जब अपने महल की गैलरी में खड़ा होता है तब वहां पर कालपुरुष उपस्थित होकर कहता है- संभरासुर मैं तुम्हारा काल हूं तुम्हारी मृत्यु। यह सुनकर संभरासुर कहता है कि तुम अवश्य मुझे भ्रमित करने आया हो। ये सब कृष्ण की माया है। तुम मेरा आत्मविश्वास नहीं तोड़ सकते। कदाचित तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो कालपुरुष। मैं संभरासुर हूं, काल संभर कहते हैं मुझे क्योंकि मैंने काल पर विजय प्राप्त की है। स्वयं मृत्यु को जीता है मैंने। इसलिए मैं अमर हूं अमर।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
यह सुनकर कालपुरुष जोर-जोर से हंसने लगता है और कहता है कि इतना संहार होने के बावजूद भी तुम्हें लगता है कि तुम अमर हो। तुम्हारा ये झूठा अहंकार देखकर लगता है कि रस्सी जल गई परंतु बल नहीं गया...हा हा हा। मूर्ख! मुझे माया समझने की भूल मत करना। मैं कोई माया नहीं हूं, मैं तो अंतिम सत्य हूं...देखो मुझे गौर से देखो। ऐसा कहकर कालपुरुष अपना मुंह बड़ा करके उसमें अब तक के घटनाक्रम में वह बताता है कि किस तरह रणभूमि में प्रद्युम्न ने उसके पुत्रों का वध किया। यह देखकर संभरासुर घबरा जाता है।.. फिर कालपुरुष कहता है- संभरासुर चुप क्यों हो गए, कहो क्या देखा तुमने? तुम्हें अपने विनाश का सारा चित्र नजर आ गया ना? यह सुनकर संभरासुर कहता है कि यदि तुम सचमुच में ही कालपुरुष हो तो आज ही क्यों दिखाई दिए इससे पहले क्यों नहीं? 
 
तब कालपुरुष कहता है- संभरासुर मैं केवल उन्हीं को दिखाई देता हूं जिनके पास दिव्य दृष्टि होती है और जिनका अंत समीप आ जाता है उन्हें भी दिखाई देता हूं....हा हा हा। अर्थात जिसकी मृत्यु का समय समीप होता है वो भी मुझे देख सकते हैं। समझ गए संभरासुर हा हा हा। ऐसा कहकर कालपुरुष अदृश्य हो जाता है। तब संभरासुर सोच में पड़ जाता है। फिर वह जोर से चीखता है- नहीं। उसकी चीख सुनकर मायावती की नींद खुल जाती है और वह पूछती है क्या हुआ? फिर संभरासुर क्रोधित होकर कहता है- मायावती मैं प्रद्युम्न का वध करूंगा, अवश्य करूंगा तुम निश्‍चिंत रहो मायावती।
 
फिर प्रात:काल प्रद्युम्न संभरासुर की नगरी पहुंचकर युद्धघोष हेतु शंख बजाता है जिसकी गुंज संभरासुर के महल तक पहुंचती है। यह सुनकर वह मायावती से कहती है कि लगता है आज अपनी मृत्यु से मिलने के लिए प्रद्युम्न अति उत्सुक हो रहा है..हा हा हा। फिर मायावती संभरासुर को मुकुट पहनाती है तो उधर प्रद्युम्न अपने बाण से बादलों में भयानक बिजली और तूफान पैदा कर देता है। यह देख और सुनकर मायावती घबरा जाती है। उस तूफान से संभरासुर का मुकुट नीचे गिर जाता है। संभरासुर खुद को संभालकर पुन: जोर-जोर से हंसने लगता है और फिर मायावती पुन: उसे मुकुट पहनाती है। इसके बाद आरती उतारकर उसे युद्ध के लिए रवाना करती है। संभरासुर रणभूमि में पहुंचकर प्रद्युम्न के सामने खड़ा हो जाता है।
 
फिर उधर, रुक्मिणी ये देखकर कहती है कि प्रभु अब तो संभरासुर का वध होने वाला है ना? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हां देवी। परंतु ये कोई खुशी की बात नहीं है। संभरासुर परम तेजस्वी और महाबलशाली योद्धा है। जब मैं किसी ऐसे तेजस्वी जीव को मनुष्य योनि में भेजता हूं तो उस जीव से यह अपेक्षा करता हूं कि वह एक उत्तम मनुष्य बनेगा। पर ऐसे नहीं हुआ देती।...देवी इस युग में तो सत्ता की लालसा का मारा केवल एक संभरासुर है। कलयुग में तो हजारों संभरासुर होंगे जो सत्ता के लिए अपनी ही संतान की बलि चढ़ाने के लिए अग्रसर होंगे।....श्रीकृष्ण इस तरह के कई प्रवचन देते हैं।
 
उधर रणभूमि में संभरासुर रथ पर सवार होकर प्रद्युम्न के सामने पहुंच जाता है और उसे ललकारता है। प्रद्युम्न संभरासुर को देखकर मुस्कुराता है। इसके बाद संभरासुर कहता है कि हे शत्रुपुत्र! तुम्हारे पिता ने मेरे पुत्र मायासुर का वध करके मुझसे दु‍श्मनी मोल ली थी। अब तुमने भी मेरे सभी पुत्रों का वध करके दुश्मनी के कुंड में लहू छीड़का है। यदि कृष्ण के इतने ही पुत्र होते जितने की मेरे थे तो मैं उन सभी की हत्या कर देता।.. यह सुनकर प्रद्युम्न हंसते हुए कहता है कि हे दैत्याराज तुम जैसे पापियों को मारने के लिए मैं अकेला ही काफी हूं। पहले मेरी हत्या तो करके देख। 
 
फिर संभरासुर कहता है- आक्रमण। तब प्रद्युम्न अपनी माया से
 उसके सभी सैनिकों का संहार कर देता है यह देखकर संभारासुर भड़क जाता है। फिर वह अपने तरकश से बाण निकालकर धनुष पर चढ़ाकर मंत्र पढ़ने लगता है। यह देखकर सारे देवता उसे प्रणाम करने लगते हैं। यह देखकर रुक्मिणी श्रीकृष्ण से पूछती है- प्रभु संभरासुर ने ऐसे कौन से दिव्य अस्त्र का स्मरण किया है जिसे देखकर शिवजी के साथ सारे देवता भी चिंतित हो गए है?
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं- इस भयंकर अस्त्र का नाम है पन्नगी। यह अस्त्र महाभयंकर सर्पों की प्रभावी माया है। यह अस्त्र स्वयं शिवजी ने इसे प्रदान किया है। तब रुक्मिणी कहती है- अच्छा तभी शिवजी सहित सभी देवता चिंतित हो गए हैं। परंतु अब प्रद्युम्न की सुरक्षा कैसे होगी? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस सर्प माया का एक ही अचूक उपाय है गरुढ़ माया। प्रद्युम्न ने यदि गरूढ़ माया का स्मरण किया तो संभरासुर की ये माया निश्चित ही विफल हो जाएगी। फिर रुक्मिणी कहती है परंतु किसी विषैले सर्प ने प्रद्युम्न को डंस लिया तो? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रद्युम्न पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि स्वयं नागदेवता ने प्रद्युम्न को ये वरदान दिया है कि उस पर संसार के किसी भी विषैले जंतु का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
 इसलिए शत्रु का ये अस्त्र प्रद्युम्न का बाल भी बांका नहीं कर सकता।
 
फिर उधर संभरासुर जैसे ही बाण छोड़ता है तो आगे चलकर वह बाण विषैले सर्प में बदल जाता है। यह देखकर प्रद्युम्न घबरा जाता है। वह नाग उसे काटने के लिए आता है तो प्रद्युम्न नीचे झुक जाता है तब वह नाग पलटकर फिर से प्रद्युम्न की ओर आता है तो प्रद्युम्न फिर से उससे बचने के लिए नीचे झुक जाता है। 
यह देखकर संभरासुर जोर-जोर से हंसता है। तब प्रद्युम्न गरुढ़ भगवान का आहवान करता है तो वहां पर गरूढ़ आकर उस नाग को खा जाता है।
 
फिर संभरासुर कई रूप धारण करके युद्ध करने लगता है। प्रद्युम्न एक-एक करके उसकी सारी माया विफल कर देता है। फिर संभरासुर अदृश्य होकर युद्ध करने लगता है और प्रद्युम्न को घायल कर देता है। फिर प्रद्युम्न एक ऐसा तीर छोड़ता है कि अदृश्य संभरासुर नजर आने लगता है। इसके बाद प्रद्युम्न संभरासुर को घायल कर देता है। घायल संभरासुर पुन: अपने रथ में प्रकट होकर अपनी माया से आसमान में दो महाभयंकर राक्षस पैदा करता है। 
 
वो दोनों राक्षस प्रद्युम्न को रथ सहित आसमान में उठाकर ले जाते हैं यह देखकर प्रद्युम्न भयभित हो जाता है और संभरासुर जोर-जोर से हंसने लगता है और कहता है- प्रद्युम्न अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। तुम मेरा वध करने आए थे ना। अब तुम्हारा ही वध होगा.. हा हा हा। तभी प्रद्युम्न अपनी माया से रथ सहित अदृश्य होकर पुन: भूमि पर अपने स्थान पर प्रकट हो जाता है। यह देखकर संभरासुर अचंभित रह जाता है। फिर वह उन दोनों मायावी राक्षसों को नष्ट कर देता है।
 
फिर संभरासुर रथ से उतरकर खुद को विशालकाय बना लेता है। यह देखकर प्रद्युम्न भी अपनी गदा उठाकर खुद को विशालकाय बना लेता है और फिर दोनों में गदा युद्ध होता है। गदा युद्ध में संभरासुर जब हारने लगता है तो प्रद्युम्न कहता है कि अब तुम्हारा वध होने वाला है तो वह कहता है- नहीं तुम मेरा कोई अहित नहीं कर सकते। फिर वह अपनी माया से बताता है कि भानामति को दो राक्षसों से पकड़ रखा है और वह कह रही है- मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो। प्रद्युम्न ये देखकर घबरा जाता है।
 
संभरासुर कहता है देखो जरा ध्यान से देखो। प्रद्युम्न देखता है कि भूमि पर भानमति कह रही है- प्रद्युम्न मुझे बचाओ प्रद्युम्न। यह सुनकर प्रद्युम्न भावुक होकर कहता है- माताश्री आप। ये क्या हो गया माताश्री। संभरासुर के वध के लिए आपने मुझे सारी विद्याएं प्रदान की परंतु मैं आप ही की रक्षा नहीं कर सका। धिक्कार है मुझ पर, धिक्कार है मेरे सामर्थ पर और धिक्कार है मेरी मायावी विद्या पर। अगर आपका वध हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूंगा।.. फिर वह दोनों राक्षस भानामति का वध करने लगते हैं तो प्रद्युम्न कहता है रुक जाओ। संभरासुर तुम मेरा वध करना चाहते हो ना? मैं अपनी माता के लिए अपने प्राण त्यागने को तैयार हूं। 
 
यह सुनकर संभरासुर अति प्रसन्न हो जाता है और वह फिर अपनी माया से एक जंजीर अपने हाथ से निकालकर प्रद्युम्न के शरीर के आसपास लपेटकर उसे बंदी बना लेता है। फिर प्रद्युम्न अपने शरीर को पुन: छोटा करके भानामति के समक्ष खड़ा हो जाता है। इसके बाद संभरासुर हंसते हुए एक चिता तैयार कर देता है और प्रद्युम्न को उठाकर उस पर सुला देता है। भानामति ये सब देखकर कहती रहती है- नहीं प्रद्युम्न नहीं। चिता पर लेटने के बाद प्रद्युम्न कहता है- मुझे क्षमा कर दीजिये माताश्री, मुझे क्षमा कर दीजिये।.. इसके बाद संभरासुर अपनी माया से चिता में आग लगा देता है। जय श्रीकृष्णा। 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 

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