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श्राद्ध पक्ष : पितृ श्राप क्या होता है और कैसे इससे बचें, जानिए

अनिरुद्ध जोशी
कुंडली में पितृ शाप होता है। इसके होने से शिक्षा और संतान में रुकावट आती है और जातक कई तरह से परेशान रहता है। आओ जानते हैं कि यह पितृ शाप या श्राप क्या होता है।
 
 
पितृ शाप : कहते हैं कि यदि किसी जातक ने गतजन्म में अपने पिता के प्रति कोई अपराध किया है तो उसे इस जन्म संतान कष्ट होता है। यह कुल मिलाकर 11 योग या दोष है। यह दोष या योग सूर्य से संबंधित है। इसके अलावा अष्टम स्थान में राहु या अष्टमेश राहु से पापाक्रांत हो तो इसको पितृ दोष या पितर शाप भी कहा गया है। 
 
पंचम भाव, पंचमेश, सूर्य, नवमेश आदि का सम्बन्ध पाप ग्रहों से बनाने पर 11 प्रकार के पितृ शाप कहे गए हैं जिनसे संतान की हानि होती है। इनके निवारण के लिए गया तीर्थ में श्राद्ध करने, कन्या दान , दशांश हवन और ब्राह्मण भोजन के पश्चात संतान की प्राप्ति होती है।
 
ज्योतिष में लग्न, द्वितीय, पंचम, षष्ठम, अष्टम, नवम, द्वादश भाव से पितृ दोष और बाधा का विचार किया जाता है। सूर्य चन्द्र गुरु शनि राहू और गुलिक से पितृ दोष का विचार किया जाता है। राहु शनि की युति, मंगल शनि, सूर्य राहु, चन्द्र केतु, गुरु राहु आदि की युति पितृ शाप को दर्शाती है।
 
ज्योतिष के अनुसार जन्मपत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है। विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।
 
हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं, क्योंकि हम आज यहां जन्में हैं तो कल कहीं ओर। पिछले जन्म का पितृदोष कुंडली में प्रदर्शित होता है, जैसे गुरु और राहु का एक जगह एकत्रित होना। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। लाल किताब में कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष हैं। यदि लग्न में राहु बैठा है तो सूर्य कहीं भी हो उसे ग्रहण होगा और यहां भी पितृ दोष होगा। चन्द्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृ दोष होगा। इस तरह कुंडली में पितृदोष के होने की कई स्थितियां बताई गई है। खासकर नौवें से पता चलता है कि जातक पिछले जन्म में क्या करके आया है। यदि नौवें घर में शुक्र, बुध या राहु है तो यह कुंडली पितृ दोष की है।
 
उपाय : इसके उपाय हेतु पितृश्राद्ध कर्म करना चाहिए। पितरों के लिए किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध तथा तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। श्राद्ध के 12 प्रकार हैं- नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिंडन, गोष्ठ, शुद्धि, कर्मांग, दैविक, यात्रा और पुष्टि। उसी तरह तर्पण के 6 प्रकार हैं- 1. देव-तर्पण 2. ऋषि-तर्पण 3. दिव्य-मानव-तर्पण 4. दिव्य-पितृ-तर्पण 5. यम-तर्पण 6. मनुष्य-पितृ-तर्पण।

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