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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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रूद्र कौन है? जानें 11 आश्चर्यजनक तथ्य

रूद्र कौन है? जानें 11 आश्चर्यजनक तथ्य
हम भगवान शिव का एक नाम रूद्र अपने बच्चों का रख लेते हैं लेकिन हममें से बहुत कम लोग नाम का अर्थ जानते हैं। आइए जानें इन 10 तथ्यों के माध्यम से रूद्र कौन है और कैसे मिलता है उनका आशीष... 
 
1. भगवान शिव के इस प्रखर रूप को रूद्र रूप की परिभाषा हमारे शास्त्रों में काफी तरह से दी गई है, जिन्हें जानना अपने आप में काफी रोचक अनुभव है। लिंगपुराण के अनुसार, सृष्टि के चक्र को तीव्रता प्रदान करने के लिए भगवान शिव ने ही स्वयं अपने 11 अमर व शक्तिशाली रूद्र रूप की संरचना की थी। कहीं यह रौद्र रूप में दिखते हैं तो कहीं सौम्य रूप में दर्शन देते हैं। यह दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।
 
2. रू का अर्थ होता है चिंता और द्र का अर्थ होता है दूर करना। इस कारण से रूद्र का अर्थ हुआ जो आपके सारी समस्याएं और चिंताओं का नाश कर दे। 
 
3. हमारे शास्त्रों में भगवान रूद्र का बेहद ही सुंदर वर्णन मिलता है। जिसमें उनके पांच सिर और धड़ एकदम पारदर्शी और चमकीला बताया गया है। 
 
4. उनके बाल में चंद्रमा विद्यामान है और वहां से गंगा निरंतर प्रवाहित होती दिखती है। गले में सर्प और बगल में माता पार्वती उनके पास बैठी दिखाई देती हैं। 
 
5. त्रिनेत्रधारी रूद्र भगवान के चार हाथों में से एक में त्रिशूल, बाकी आशीर्वाद-वरदान देते और हिरण के साथ दिखाई देते हैं। 
 
6. इसी कारण से भगवान शिव का रूद्राभिषेक भी जब किया जाता है तो वह भी उनके रूपों की भांति 11 बार ही करने की परंपरा चली आ रही है। 
 
7. मान्यता है कि भगवान हनुमान उनके 11 वें रूद्रावतार ही हैं, जो इस रूप में श्रीराम की उनके इस धरती पर अवतार की सहायता करने के लिए आए थे।
 
8. वह लोक-परलोक दोनों के भगवान हैं। भगवान इस रूप में भक्तों के सारे कष्ट हरते हैं।  
 
9. भगवान रूद्र के नाम में ही उनके पालनहार होने के रहस्य छुपे हैं।  भगवान शिव के रूद्र रूप को पालनहार और संहारक दोनों ही संज्ञा प्राप्त है। इसीलिए जब वह इस रूप में आते हैं तो हर कहीं प्रलय आ जाता है।
 
10. लेकिन उनका सौम्य रूप अत्यंत श्वेत और करूणामयी है। 
 
11. ऋग्वेद और यजुरवेद में रूद्र भगवान को पृथ्वी और स्वर्ग के बीच बसी दुनिया के ईष्टदेव के रूप में बताया गया है। दरअसल इस सृष्टि में जैसे जीवित रहने के लिए प्राणवायु का महत्व है, उसी प्रकार रूद्र रूप का भी अस्तित्व सर्वोपरि है। उपनिषदों में भगवान रूद्र के ग्यारह रूपों को शरीर के 10 महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत मानने के साथ ही 11 वें को आत्म स्वरूप माना गया है। सृष्टि में जो भी जीवित है, इन्हीं की बदौलत है। मृत्यु पश्चात् आपके सगे-संबंधियों को रोना आता है। इसीलिए रूद्र को पवित्र अर्थों में रुलानेवाला भी कहा जाता है। 
10 रुद्र अवतारों का नाम 
1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल को माना जाता है। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में महाकाल नाम से ज्योतिर्लिंग विख्यात है। उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ में है।
 
कौन थे दूसरे रुद्र अवतार...
 
2. तारा- शिव के रुद्रावतार में दूसरा अवतार तार (तारा) नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं। पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में स्थित है तारा पीठ। पूर्वी रेलवे के रामपुर हॉल्ट स्टेशन से 4 मील दूरी पर स्थित है यह पीठ।
 
तीसरे रुद्र अवतार...
 
3.बाल भुवनेश- देवों के देव महादेव का तीसरा रुद्रावतार है बाल भुवनेश। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना गया है। दस महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ उत्तराखंड में है। उत्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार सतपुली-बांघाट मोटर मार्ग पर सतपुली से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम विलखेत व दैसण के मध्य नारद गंगा के तट पर मणिद्वीप (सांगुड़ा) में स्थित है। इस पावन सरिता का संगम गंगाजी से व्यासचट्टी में होता है, जहां भगवान वेदव्यासजी ने श्रुति एवं स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था। 
 
चौथा अवतार...
 
4. षोडश श्रीविद्येश- भगवान शंकर का चौथा अवतार है षोडश श्रीविद्येश। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता है। ‘दस महा-विद्याओं’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं। भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
 
पांचवां अवतार...
 
5. भैरव- शिव के पांचवें रुद्रावतार सबसे प्रसिद्ध माने गए हैं जिन्हें भैरव कहा जाता है। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं। उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है, जहां उनके ओष्ठ गिरे थे। किंतु कुछ विद्वान गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
 
छठा अवतार...
 
6. छिन्नमस्तक- छठा रुद्र अवतार छिन्नमस्तक नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं। छिनमस्तिका मंदिर प्रख्यात तांत्रिक पीठ है। मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ झारखंड की राजधानी रांची से 75 किमी दूर रामगढ़ में है। मां का प्राचीन मंदिर नष्ट हो गया था अत: नया मंदिर बनाया गया, किंतु प्राचीन प्रतिमा यहां मौजूद है। दामोदर-भैरवी नदी के संगम पर स्थित इस पीठ को शक्तिपीठ माना जाता है। ज्ञातव्य है कि दामोदर को शिव व भैरवी को शक्ति माना जाता है।
 
सातवां अवतार...
 
7. द्यूमवान- शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं। धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ 'पीताम्बरा पीठ' के प्रांगण में स्थित है। पूरे भारत में यह मां धूमावती का एक मात्र मंदिर है जिसकी मान्यता भी अधिक है।
 
आठवां अवतार...
 
8. बगलामुख- शिव का आठवां रुद्र अवतार बगलामुख नाम से जाना जाता है। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता है। दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी के तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं- 1. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित बगलामुखी मंदिर, 2. मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित बगलामुखी मंदिर और 3. मध्यप्रदेश के शाजापुर में स्थित बगलामुखी मंदिर। इसमें हिमाचल के कांगड़ा को अधिक मान्यता है।
 
नौवां अवतार...
 
9. मातंग- शिव के दस रुद्रावतारों में नौवां अवतार मातंग है। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता है। मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओं की एक देवी है। मोहकपुर की मुख्य अधिष्ठाता है। देवी का स्थान झाबुआ के मोढेरा में है।
 
दसवां अवतार...
 
10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता है।
 
शिव के अन्य अवतारों के नाम...
 
शिव के अन्य ग्यारह अवतार- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है।
 
अन्य अंशावतार- इन अवतारों के अतिरिक्त शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है। शिव के बारह ज्योतिर्लिंग भी अवतारों की ही श्रेणी में आते हैं।
 

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