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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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महाशिवरात्रि 2023 कब है? जानिए शिव पूजन के शुभ मुहूर्त, मंत्र, कथा और विधि

महाशिवरात्रि 2023 कब है? जानिए शिव पूजन के शुभ मुहूर्त, मंत्र, कथा और विधि
वर्ष 2023 में शिव का प्रिय महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) व्रत 18 फरवरी, शनिवार को मनाया जा रहा है। आपको बता दें कि हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार, फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर यह पर्व मनाया जाएगा। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि पर्व के बारे में खास जानकारी-
 
महा शिवरात्रि पर शिव पूजा के शुभ मुहूर्त-Maha Shivaratri Puja Muhurat 2023  
 
महा शिवरात्रि व्रत : 18 फरवरी 2023, शनिवार
 
फाल्गुन चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ- दिन शनिवार, 18 फरवरी 2023 को 08.02 पी एम से
चतुर्दशी तिथि का समापन- 19 फरवरी, 2023 दिन रविवार को 04.18 पी एम पर। 
निशिथकाल पूजन समय- 12.09 ए एम से 10 फरवरी को 01.00 ए एम तक।
कुल अवधि - 00 घंटे 51 मिनट्स
 
रात्रि प्रथम प्रहर पूजन समय- 06.13 पी एम से 09.24 पी एम
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजन समय- 09.24 पी एम से 19 फरवरी को 12.35 ए एम तक।
रात्रि तृतीय प्रहर पूजन समय- 12.35 ए एम से 19 फरवरी को 03.46 ए एम तक।
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजन समय- 03.46 ए एम से 19 फरवरी को 06.56 ए एम तक।
 
पारण समय- रविवार, 19 फरवरी को 06.56 ए एम से 03.24 पी एम तक।
 
18 फरवरी, दिन का चौघड़िया
 
शुभ- 08.22 ए एम से 09.46 ए एम
चर- 12.35 पी एम से 02.00 पी एम
लाभ- 02.00 पी एम से 03.24 पी एम
अमृत- 03.24 पी एम से 04.49 पी एम
 
18 फरवरी, रात का चौघड़िया
 
लाभ- 06.13 पी एम से 07.49 पी एम
शुभ- 09.24 पी एम से 10.59 पी एम
अमृत- 10.59 पी एम से 19 फरवरी 12.35 ए एम तक।
चर- 12.35 ए एम से 19 फरवरी 02.10 ए एम तक।
लाभ- 05.21 ए एम से 19 फरवरी 06.56 ए एम तक।
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महाशिवरात्रि मंत्र- Mahashivratri Mantra
 
- ॐ शिवाय नम:
- ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥
 
- ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ॐ
 
- शिवाय नम:
 
- ॐ त्रिनेत्राय नम:
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महाशिवरात्रि कथा-Mahashivratri Katha
 
महाशिवरात्रि व्रत कथा के अनुसार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
 
शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
 
बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।
 
शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' 
 
शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। 
 
तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई।
 
तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- 'हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।' शिकारी हंसा और बोला- 'सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे।' 
 
उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। 
 
पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ' हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।' 
 
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा- 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' 
 
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।
 
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष और शिवलोक की प्राप्ति हुई।
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महाशिवरात्रि पूजा विधि- Mahashivratri 2022 Puja Vidhi
 
- महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठें और नित्यकर्मों से निवृत्त हो होकर साफ-सुथरे वस्त्र तथा मस्तक पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष माला धारण करें।  
- इसके बाद मंदिर या घर, जिस जगह भी पूजन करना है, उस स्थान को साफ-स्वच्छ कर लें। 
- अगर शिवालय में जा रहे हैं तो शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं शिव जी को नमस्कार करें तथा श्रद्धापूर्वक व्रत का संकल्प लेते हुए 'शिवरात्रिव्रतं ह्येतत्‌ करिष्येऽहं महाफलम। निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।' यह कहते हुए हाथ में लिए पुष्प, अक्षत, जल आदि को छोड़ने के पश्चात यह श्लोक पढ़ें। 
- देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु से, कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव। तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति। कामाशः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि॥' 
अर्थात्- हे देवदेव! हे महादेव! हे नीलकण्ठ! आपको नमस्कार है। हे देव! मैं आपका शिवरात्रि व्रत करना चाहता हूं। हे देवश्वर! आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण् हो और काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु मुझे पीड़ित न करें। 
- फिर एक चांदी के पात्र में जल भरकर भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग पर जलाभिषेक और पंचामृत तथा गंगा जल से स्नान कराते समय 'ॐ नमः शिवाय' का उच्चारण करते रहें।
- तत्पश्चात सफेद आंकड़े के पुष्प, स्वच्छ और साबुत बिल्वपत्र अर्पित करें। सफेद चंदन अथवा गोपी चंदन से शिवलिंग या प्रतिमा को तिलक लगाएं। 
- शिव जी को सफेद आंकड़े के पुष्प अर्पण करते समय शिव स्तुति का पाठ करें या महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। 
- भांग, धतूरा, जायफल, फल, मिठाई, मीठा पान, इत्र अर्पित करें और खीर का भोग लगाएं। 
- दिन भर भगवान शिव का ध्यान करें एवं स्तुति करें। 
- सायंकाल या रात के समय में पुन: शिव जी का विधिवत पूजन-अर्चन करें। 
- रात के समय खीर का प्रसाद दूसरों को बांटें और प्रसाद रूपी खीर का सेवन कर पारण करें। 
- रात्रि जागरण में शिव भजन, मंत्र, श्लोक, स्तोत्र, चालीसा आदि का पाठ अवश्य करें।  

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