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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष पहनने से मिलता है मनचाहा धन, पद, प्रतिष्ठा,जानिए हर रुद्राक्ष का महत्व

महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष पहनने से मिलता है मनचाहा धन, पद, प्रतिष्ठा,जानिए हर रुद्राक्ष का महत्व
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राजीव आचार्य

सनातन धर्म के अनुसार भगवान शिव आदिदेव हैं ।शिव स्वयम्भू है अर्थात स्वयं से उत्पन्न। शिव आध्यात्मिक चेतना हैं जिनकी आराधना से साक्षात ॐ की अनुभूति होती है। भगवान शिव की आराधना का अत्यन्त शुभ दिन महाशिवरात्रि है।

प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिवस को भगवान शिव और देवी पार्वती का मंगल विवाह हुआ था।एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी रात्रि को भगवान शिव ने आनन्द तांडव ( सृष्टि और विनाश ) किया था। महाशिवरात्रि के दिन भक्त रात्रि जागरण कर समस्त विधि विधानों से भगवान शिव की आराधना करते है। इस वर्ष 1 मार्च मंगलवार को प्रातः 3 बजकर 16 मिनट पर चतुदर्शी तिथि प्रारम्भ होगी।जो बुधवार 2 मार्च को 10 बजे तक रहेगी। 
 
इस दिन विधि विधान से रुद्राक्ष धारण करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। रुद्राक्ष अर्थात रुद्र या शिव के अश्रु।शिवपुराण के विन्द्येश्वर संहिता के अनुसार भगवान शिव स्वयं पार्वतीजी को रुद्राक्ष की महिमा और उसकी उत्पत्ति के विषय में बताते हैं। 
 
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव ने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की, एक दिन सहसा उनका मन क्षुब्ध हो उठा । उस समय लीलावश ही उन्होंने अपने दोनों नेत्र खोले, नेत्र खोलते ही उनके मनोहर नेत्रपुट से जल की कुछ बूंदें पृथ्वी पर जा गिरी ,जिनसे रुद्राक्ष का जन्म हुआ। भगवान शिव रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जहाँ रुद्राक्ष की पूजा होती है , वहां से लक्ष्मी जी कभी दूर नहीं जाती, इसे धारण करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शिवपुराण के अनुसार सभी आश्रमों, समस्त वर्णों ,स्त्रियों को भगवान शिव की आज्ञानुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। (शिवपुराण विन्द्येश्वर संहिता  25/47)
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शिवपुराण में भगवान शिव ने 14 प्रकार के रुद्राक्ष का वर्णन, उनके भेदों और मंगलकारी विधानों का वर्णन किया है। ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति को रुद्राक्ष शुभ नक्षत्र, तिथि, वार को धारण करने से अत्यंत लाभ होता है। महाशिवरात्रि का दिन रुद्राक्ष धारण करने के लिए अत्यधिक शुभ है। रुद्राक्ष कब और किसे धारण करना चाहिए, यह बिंदुवार प्रस्तुत है- 
 
1 - एकमुखी रुद्राक्ष : यदि आप राजनैतिक या प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का स्वरूप है। राजनैतिक या प्रशासनिक पद प्रतिष्ठा के लिए जन्मकुण्डली में सूर्य देव का बली होना आवश्यक है। सूर्य राजसत्ता, तेज, सिंहासन का द्योतक है। एकमुखी रुद्राक्ष धारण करने से सूर्य देव को बल प्राप्त होता है जिसके कारण पद , प्रतिष्ठा, मान सम्मान में अप्रत्याशित वृद्धि होती है। यदि आप सरकारी सर्विस में है अथवा राजनैतिक क्षेत्र में राज्य या सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको एकमुखी रुद्राक्ष विधिविधान के साथ धारण करना चाहिए।ॐ ह्रीं नमः  के जप के साथ इसे धारण किया जाना चाहिए।
2- द्विमुखी रुद्राक्ष : द्विमुखी रुद्राक्ष को शिवपुराण में देवदेवेश्वर कहा गया है । यदि आपके दाम्पत्य जीवन मे सुख का अभाव है अथवा आप अनिद्रा , मानसिक तनाव , अवसाद से पीड़ित है, आपका मन किसी भी कार्य में नहीं लगता,आपका मन बुझा रहता है तो इसे धारण करना अत्यंत लाभकारी होगा। शिवपुराण के अनुसार  ॐ नमः के जप के साथ इसे धारण किया जाना चाहिए।
3-त्रिमुखी रुद्राक्ष: त्रिमुखी रुद्राक्ष को साक्षात साधन का फल देने वाला बताया गया है। शिवपुराण के अनुसार इसके प्रभाव से समस्त विद्या प्रतिष्ठित होती हैं। यह देवी सरस्वती का देवतत्व है। यदि आप प्रतियोगी परीक्षा में भाग ले रहे हैं अथवा सन्तान की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि चाहते हैं तो इसे धारण कराना लाभप्रद है। ॐ क्लीं नमः के  जप के साथ धारण करना शुभ है।
4-चतुर्मुखी रुद्राक्ष: शिवपुराण के अनुसार चतुर्मुखी रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है। ज्योतिष के अनुसार यदि आप लेखन, काव्य, साहित्य, अथवा कला के क्षेत्र में जहां कल्पनाशीलता की आवश्यकता है, नाम कमाना चाहते है तो यह आपके लिए अत्यंत लाभदायक है।यदि आप कमीशन एजेण्ट के रूप में कार्य करते हैं अथवा ऐसे व्यापार में हैं जहां पर आपकी वाणी की कुशलता की जरूरत है तो  इसे ॐ ह्रीं नमः के जप के साथ धारण करना चाहिए।
5- पंचमुखी रुद्राक्ष: पंचमुखी रुद्राक्ष के विषय में शिवपुराण में भगवान शिव पार्वती जी को इसकी महिमा बताते हुए कहते हैं कि पंचमुख वाला रुद्राक्ष कालाग्निरूरस्वरूप है।यह सब कुछ करने में समर्थ है।ज्योतिष के अनुसार इसे धारण करने से देवगुरु बृहस्पति प्रसन्न होते हैं। यदि आप धन, वैभव, सन्तान, आध्यात्मिक उन्नति की कामना रखते हैं तो आपको इसे अवश्य धारण करना चाहिए। यदि आप लिवर की समस्या या अधिक मोटापे से परेशान तो भी यह आपके लिए लाभकारी है। इसे ॐ ह्रीं नमः  के जप के साथ धारण करना चाहिए।
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6- छहमुखी रुद्राक्ष : छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है । ज्योतिष के अनुसार इसे धारण करने से शुक्र देव प्रसन्न होते है। विशेष योजना, विशेष कार्य अथवा भौतिक सुख साधन में वृद्धि चाहते हैं, आपका विवाह नही हो रहा अथवा आप इत्र , पुष्प, सौंदर्य आभूषण का व्यापार करते हैं अथवा यदि आप गायन ,संगीत, वादन, नृत्य में रुचि रखते हैं तो यह आपके लिए अत्यन्त शुभ है। शिवपुराण के अनुसार इसे धारण करने वाला मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। आप इसे ॐ ह्रीं हुँ नमः के जप के साथ धारण कर सकते हैं। 
7- सातमुखी रुद्राक्ष: सात मुखी रुद्राक्ष को शिवपुराण में ऐश्वर्य स्वरूप बताया गया है। ज्योतिष के अनुसार यह लक्ष्मी, धन, ऐश्वर्य को देने वाला है।  इसे जप कर आप अपनी खजाने में भी रख सकते हैं इससे लक्ष्मी जी की कृपा सदैव आप पर बनी रहेगी।यदि आप किसी ऐसे व्यापार में है जहां पर आपको अपने कर्मचारियों से सौहार्दपूर्ण वातावरण में कार्य लेना तो यह आपके लिये अत्यंत लाभदायक है। इसे ॐ हुं नमः के जप के साथ धारण करना शुभ है। 
8- अष्टमुखी रुद्राक्ष : अष्टमुखी रुद्राक्ष भैरव स्वरूप होता है। शिवपुराण के अनुसार इसको धारण करने वाला मनुष्य पूर्ण आयु को प्राप्त करता है। यदि आपके जीवन में बाधाएं बहुत है, आप जो भी कार्य करते हैं उसमें असफलता ही हाथ लगती है तो आपको अष्टमुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए। यदि आप शेयर मार्केट से संबंधित व्यापार करते हैं अथवा तकनीकी शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं तो भी यह आपके लिए उपयोगी है। इसे ॐ हुं नमः के जप के साथ पहनना चाहिए। 
9 -नवमुखी रुद्राक्ष: नवमुखी रुद्राक्ष शिवपुराण के अनुसार साक्षात मां दुर्गा का प्रतीक है। शिवरात्रि और नवरात्रि के दिनों में इसकी पूजा से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं। यदि आप को अपने भीतर कमजोरी का अनुभव होता है अथवा आप किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए सोच रहे है परंतु हिम्मत नही जुटा पा रहे तो आपको नवमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यदि आप किसी गुप्त  विद्या की प्राप्ति चाहते है तो भी यह शुभफलदायक है ।ॐ ह्री हुं नमः के जप के साथ इसे धारण करना चाहिए । 
10 - दसमुखी रुद्राक्ष: दसमुखी रुद्राक्ष भगवान विष्णु का रूप है। शिवपुराण में भगवान शिव कहते हैं हे देवी इसको धारण करने से मनुष्य की समस्त मनोकांक्षाएं पूर्ण होती हैं। ज्योतिष के अनुसार इसको धारण करने से देवगुरु बृहस्पति प्रसन्न होते है। यदि आपका भाग्य साथ नही दे रहा, स्वास्थ्य सम्बन्धी कठिनाई है, यदि बड़े भाई से सम्बन्ध ठीक नहीं है अथवा शिक्षा ग्रहण करने में कठिनाई आ रही है अथवा सन्तान प्राप्ति में बाधा है तो इसे आप अवश्य धारण करें।  ॐ ह्रीं नमः के जप के साथ इसे धारण करना अत्यंत शुभ है।
11 - ग्यारहमुखी रुद्राक्ष : ग्यारहमुखी रुद्राक्ष रुद्र स्वरूप है इसको धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजयी होता है। भाग्य वृद्धि , सम्मान के लिए इसे ॐ ह्रीं हुं नमः के साथ धारण करना चाहिए। 
12-बारहमुखी रुद्राक्ष: शिवपुराण के अनुसार बारहमुखी रुद्राक्ष धारण करने से मस्तक पर बारह आदित्य विराजमान हो जाते हैं। यदि आप सरकारी सर्विस में है और आप के अधीनस्थ कर्मचारी आप के नियंत्रण में नहीं है, आपको अपने भीतर ऊर्जा की कमी महसूस होती है, अथवा आपको ह्रदय सम्बन्धी कोई कठिनाई है, आपके पिता के साथ आपके सम्बन्ध अच्छे नही हैं तो आपके लिए यह रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी है।
13-तेरहमुखी रुद्राक्ष :  तेरह मुखी रुद्राक्ष विश्वदेवों का स्वरूप है। इसको धारण करने से मनुष्य सौभाग्य और मंगललाभ प्राप्त करता है। महालक्ष्मी जी की कृपादृष्टि बनाए रखने के लिए यह अत्यंत लाभकारी है। ॐ ह्रीं नमः के जप के साथ इसे पहनना अत्यंत शुभ है। 
14-चौदहमुखी रुद्राक्ष : चौदहमुखी रुद्राक्ष परम् शिवरूप है। शिवपुराण के अनुसार जो मनुष्य इसे भक्तिभाव से मस्तक पर धारण करता है उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है।यदि आप शनि ग्रह से पीड़ित है, भयानक संकट में है अथवा बार बार अस्पताल जाना पड़ रहा है तो आपको चौदहमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। ॐ नमः के साथ इसे धारण किया जाना चाहिए।
शिवपुराण में रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान शिव कहते हैं कि रुद्राक्ष मालाधारी मनुष्य को देखकर मैं शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करना अत्यंत शुभ एवं मंगलकारी है। परंतु रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को सात्विक होना चाहिए , तामसिक वस्तुओं के प्रयोग से रुद्राक्ष का पूर्ण फल प्राप्त नही हो सकता है। 
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