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शास्त्रों में जल समाधि के बारे में क्या कहा गया है?

शास्त्रों में जल समाधि के बारे में क्या कहा गया है?

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 14 मई 2021 (13:29 IST)
समाधि एक बहुत ही पवित्र और अध्यात्मिक शब्द है। इसका संबंध किसी मरने वाले से नहीं है बल्कि मोक्ष, कैवल्य, स्थितप्रज्ञ, निर्वाण प्राप्त व्यक्ति से है। शिवजी हमेशा समाधि में लीन रहते है। अत: इस शब्द का संबंध किसी मरने वाले के क्रिया कर्म के तरीके से नहीं है। किसी का दाह संस्कार किया जाता है तो उसे अग्निदाग या अग्निदाह कहते हैं, इसी तरह जलदाग होता है। परंतु लोक परंपरा और प्रचलन के चलते जल समाधि शब्द भी प्रचलन में है। आओ जानते हैं कि जलदाग या जल समाधि क्या है और किसे देना चाहिए।
 
 
1. शास्त्रों के अनुसार जीव की उत्पत्ति पंच तत्वों से मिलकर हुई है। देहांत के बाद सभी तत्व अपने-अपने स्थान पर पुन: चले जाते हैं। पंचतत्वों (भूमि, अग्नि, जल, वायु और आकाश) के पूर्ण विधान से ही व्यक्ति की आत्मा को देह और मन के बंधन से मुक्ति मिलती है, जिसके माध्यम से वह अपने अगले जन्म की यात्रा पर निकल जाता है। 
 
2. दाह संस्कार के बाद एक छेद वाली मटकी में जल भरकर दाहकर्म करने वाला चिता की परिक्रमा करते हुए जल अर्पित करता है और फिर मटकी को फोड़ दिया जाता है। दाह संस्कार करने के बाद में बची हुई राख या अस्थियों को किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। नदी में इसलिए कि पवित्र नदियों को मोक्षदायिनी और मुक्ति देने वाली माना गया है।
 
 
3. जहां तक जल समाधि लेने की बात है तो यह आमजनों के लिए नहीं है। सनातन हिन्दू धर्म में बच्चे को दाफनाया और साधुओं को समाधि दी जाती है जबकि सामान्यजनों का दाह संस्कार किया जाता है। इसके पीछे कई कारण है। साधु और बच्चों का मन और तन निर्मल रहता है। साधु और बच्चों में आसक्ति नहीं होती है। शास्त्रों के अनुसार 5 वर्ष के लड़के तथा 7 वर्ष की लड़की का दाहकर्म नहीं होता।
 
4. साधु को समाधि इसलिए दी जाती है क्योंकि ध्यान और साधना से उनका शरीर एक विशेष उर्जा और ओरा लिए हुए होता है इसलिए उसकी शारीरिक ऊर्जा को प्राकृतिक रूप से विसरित होने दिया जाता है। साधुजन ही जल समाधि भी लेते हैं। जबकि आम व्यक्ति को इसलिए दाह किया जाता है क्योंकि यदि उसकी अपने शरीर के प्रति आसक्ति बची हो तो वह छूट जाए और दूसरा यह कि दाह संस्कार करने से यदि किसी भी प्रकार का रोग या संक्रमण हो तो वह नष्ट हो जाए।
 
 
5. प्राचीनकाल में ऋषि और मुनि जल समाधि ले लेते थे। कई ऋषि तो हमेशा के लिए जल समाधि ले लेते थे तो कई ऋषि कुछ दिन या माह के लिए जल में तपस्या करने के लिए समाधि लगाकर बैठ जाते थे। भगवान श्रीराम ने सभी कार्यों से मुक्त होने के बाद हमेशा के लिए सरयु के जल में समाधि ले ली थी। 
 
6. हिन्दू धर्म में जल को सबसे पवित्र माना जाता है। संपूर्ण शास्त्र विधियां, संस्कार, मंगल कार्य, संध्यावंदन आदि जल के बगैर अधूरे हैं। दरअसल जल के देवता वरुण हैं जो भगवान विष्णु के ही स्वरूप माने गए हैं। इसलिए जल को हर रूप में पवित्र माना गया है। यही कारण है कि कोई भी शुभ काम करने से पहले पवित्र होने के लिए जल का प्रयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में भी सिर्फ जल ही था और सृष्टि के अंत के समय भी सिर्फ जल ही शेष बचेगा। यानी जल ही अंतिम सत्य है।
 
 
7. शास्त्रों के अनुसार देवी देवताओं की मूर्ति को जल में ही विसर्जित किया जाता है। जब भी हम किसी मूर्ति की स्थापना करते हैं तो मूर्ति पूजा से पहले उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इस दौरान देवी-देवता अंश रूप में प्रतिमा में विराजमान हो जाते हैं। जब मूर्ति को जल में विसर्जित करते हैं तो वह जल मार्ग से अपने लोक को प्रस्थान कर जाते हैं।
 
8. शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु नीर यानी जल में निवास करते हैं इसलिए उन्हें नारायण भी कहा जाता है। जल में निवास होने के कारण जल को नरायण भी माना गया है। जल शांति, बुद्धि, मुक्ति और ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है। इसीलिए भी कई लोग अपने मृतकों को जल में विसर्जित कर देते हैं। प्रचलित मान्यता अनुसार कुछ लोग जल समाधि इसलिए भी देते हैं ताकि जल के जीव जंतुओं को भोजन मिल सके और मृत आत्मा वैकुंठ धाम पहुंच जाए।
 
 
9. आशाओं, आसक्तियों आदि का परित्याग करके सनातनी संतों द्वारा जीवन काल के अंत में स्वयं जल में शरीर का त्याग करने की क्रिया को जल समाधि या भूमि में आसन लगाकर बैठ जाने की क्रिया को भू-समाधि कहते हैं। 
 
10. पितृमेध, अन्त्यकर्म, दाह-संस्कार, श्मशानकर्म, अन्त्येष्टि-क्रिया या अंत्येष्टि संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में षोडश संस्कार है। यह संस्कार वेदमंत्रों के उच्चारण द्वारा होता है। केवल संन्यासी-महात्माओं के लिए निरग्रि होने के कारण शरीर छूट जाने पर भूमिसमाधि या जलसमाधि आदि देने का विधान है। कहीं-कहीं संन्यासी का भी दाह-संस्कार किया जाता है और उसमें कोई दोष नहीं माना जाता है।- पुस्तक-कल्याण संस्कार-अंक जनवरी सन् 2006 ई. से।

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