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दिन में सोने या रात में देर तक जागने से क्या होता है?

दिन में सोने या रात में देर तक जागने से क्या होता है?

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020 (09:43 IST)
जब से बिजली का अविष्कार हुआ है व्यक्ति की प्राकृतिक नींद और जागरण समाप्त हो गया है। पहले के जमाने में लोग रात को 7 बजे के लगभग भोजन करने के बाद 8 बजे तक सो जाते थे लेकिन अब कम से कम 11 बजे तक जागते रहने की आदत हो चुकी है। अर्थात व्यक्ति मध्य रात्रि में सोता है।
 
 
ऐसे में निश्चत ही वह देर से उठेगा भी यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसकी नींद का कोटा पुरा नहीं होता है। दूसरी ओर बहुत से लोगों की दिन में 3 से 4 घंटे सोने की आदत होती है। यह आदत कितनी सही है यह जानना भी जरूरी है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि दिन के भोजन के बाद कुछ देर आराम करना चाहिए और रात के भोजन के बाद टहलना चाहिए। खैर..
 
 
दिन में सोना और रात में जागना : प्रकृति ने हमारे शरीर में एक घड़ी फिट कर दी है। प्राचीनकाल में मनुष्‍य उस घड़ी के अनुसार ही सो जाता और प्रात: काल जल्दी उठ जाता था। कहते हैं कि 'जो रात को जल्दी सोए और सुबह को जल्दी जागे, उस बच्चे का दूर-दूर तक दुनिया का दुख भागे।'
 
 
लेकिन आज के मानव की दिन और रातचर्या बदल गई है। देर तक टीवी देखना या ऑफिस में काम करना और उसके बाद दिनभर या सुबह देर तक सोना जारी है। शास्त्रों के अनुसार यह आदत बुढ़ापे को जल्दी आमंत्रित करती है। कई लोग ऐसे हैं, जो दिन में भी सोते हैं और रात में भी और यह उनकी आदत बन जाती है।
 
 
नींद का टाइमिंग बिगड़ने से नींद की कमी हो जाती है। नींद कई रोगों को स्वत: ही ठीक करने में सक्षम है। नींद की कमी से न केवल आंखों के इर्द-गिर्द कालापन आता है, बल्कि कम सोने से दिमाग थका हुआ महसूस करता है और वजन भी बढ़ता है।
 
 
शास्त्र कहते हैं कि रात्रि के पहले प्रहर में सो जाना चाहिए और ब्रह्म मुहूर्त में उठकर संध्यावंदन करना चाहिए। लेकिन आधुनिक जीवनशैली के चलते यह संभव नहीं है तब क्या करें? तब हमें शवासन में सोना चाहिए इससे आराम मिलता है कभी करवट भी लेना होतो बाईं करवट लें। बहुत आवश्यक हो तभी दाईं करवट लें। सिर को हमेशा पूर्व या दक्षिण दिशा में रखकर ही सोना चाहिए। पूर्व या दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोने से लंबी उम्र एवं अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
 
 
शास्त्र कहते हैं तामसिक भोजन करने वाले और तामसिक प्रवृत्ति के लोग मूर्छा में जिते हैं और मूर्छा में ही मर जाते हैं। वे उस जानवर की तरह है जिसका सिर भूमि में ही धंसा रहता है। यह रेंगने वाले ‍कीड़ों जैसी जिंदगी है। आपके कार्य, व्यवहार और प्रवृत्ति से पता चलता है कि आप कितने मूर्छित हैं।
 
 
जागने का महत्व समझना जरूरी है। कुछ लोग जागकर भी सोए-सोए से रहते हैं। अत्यधिक विचार, कल्पना या खयालों में खोए रहना भी नींद का हिस्सा है इसे दिव्यास्वप्न कहते हैं। इससे जागरण खंडित होता है। किसी भी प्रकार के नशे से भी जागरण खंडित होता है, इसलिए हर तरह का नशा शास्त्र विरुद्ध माना गया है।

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