हिन्दुओं को अपने धर्म के बारे में बहुत कम जानकारी है। यदि आप हिन्दू यम और नियम से जीवन यापन करते तो जिंदगी में संकट नहीं आते हैं। उपनिषद और गीता का बार-बार अध्ययन करके उसे समझते, तो दिमाग में विरोधाभास और द्वंद नहीं होता। हिन्दू वास्तु और ज्योतिष को मानते, तो घर और शरीर ठीक रहता। खैर...अब आप इसे मानेंगे तो संकट से दूर रहेंगे।
1.ब्रह्म ही सत्य है। उसीसे सदाशिव कालपुरुष का अस्तित्व है।
2.सदाशिव और दुर्गा से ही शंकर ने जन्म लिया। हनुमान रुद्र के अंश हैं।
3.प्रत्येक तीन माह में घर में गीता पाठ करना चाहिए।
4.प्रतिदिन संध्यावंदन, प्रार्थना और ध्यान करना चाहिये।
5.पूर्व, उत्तर और ईशान का मकान ही उत्तम होता है।
6.तैरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा को पवित्र और शांत बने रहें।
7.वर्ष के व्रतों में नवरात्रि और श्रावण मास ही श्रेष्ठ है।
8.हर माह किए जाने वाले व्रतों में एकादशी और प्रदोष ही श्रेष्ठ है।
9.प्रति गुरुवार को मंदिर जाएं। गुरुवार ही हिन्दुओं का प्रमुख वार है।
10.कुत्तों, गाय और चिड़ियों को रोटी खिलाते रहें।
11.तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ चार धाम ही है। वहीं की यात्रा का फल है।
12.किसी भी प्रकार का व्यवसन करने से देवता साथ छोड़ देते हैं।
13.त्योहारों में मकर संक्रांति ही सर्वश्रेष्ठ है। पर्वों में कुंभ श्रेष्ठ है।
14.प्रतिदिन संध्याकाल में घर में गुढ़-घी की धूप दें या कर्पूर जलाएं।
15.प्रतिदिन हनुमान पूजा से हर तरह के ग्रह, पितृ और सर्प दोष शांत रहते हैं।
16.पंच यज्ञ का पालन करें- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ।
17.किसी भी प्रकार का दोष तब लगता है जबकि हम धर्म विरुद्ध आचरण करते हैं।
18.दान दें लेकिन किसे और कहां यह जरूर सोचें। अन्नदान सर्वश्रेष्ठ है।
19.प्रायश्चित करना, सेवा करना और 16 संस्कारों का पालन करना जरूरी है।
20.धर्म का प्रचार करने और धर्म के बारे में बुरी बाते नहीं करने-सुनने से देवबल बढ़ता है।
21.परिवार और रिश्तेदारों से प्रेम करना सीखें। प्रत्येक रिश्ता एक ग्रह है।
22.धर्म की सेवा करने से देवऋण और वेद पढ़ने से ऋषिऋण चुकता होता है जबकि पितृऋण कई प्रकार का होता है। जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। यह पितृ ऋण हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा है। बहुत से लोग अपने धर्म, मातृभूमि या कुल को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म और कुल को छोड़कर गया है तो उसके कुल के अंत होने तक यह चलता रहता है।