Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

रुद्रों के पुत्र मरुद्गण के बारे में जानकर आप आश्चर्य करेंगे

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दुओं के देवी या देवता 33 है या 33 करोड़ यह बहस का विषय नहीं है। वेद पढ़ों तो सब समझ में आ जाएगा। बहस वे करते हैं जिन्होंने वेद नहीं पढ़े या जो सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करते हैं। खैर...हम आपको बताना चाहते हैं देवताओं की बिरादरी के मरुद्गणों के बारे में। मरुद्गणों को रुद्रों का पुत्र माना जाता है। रुद्रों की संख्‍या 11 है।
 
*ग्यारह रुद्र : महान, महात्मा, गतिमान, भीषण, भयंकर, ऋतुध्‍वज, ऊर्ध्वकेश, पिंगलाक्ष, रुचि, शुचि तथा कालाग्नि रुद्र। इसमें कालाग्नि रुद्र ही मुख्‍य है।
 
रुद्रदेव के पुत्र 49 मरुद्गण : मरुत अर्थात पहाड़। मरुद्गण का अर्थ मरुतों के गण। गण कई प्रकार के होते हैं उनमें से तीन प्रमुख है देवगण, राक्षस गण, मनुष्य गण। गण का अर्थ होता है समूह। मरुद्गण देवगणों में आते हैं। चारों वेदों में मिलाकर मरुद्देवता के मंत्र 498 हैं।
 
हिन्दू देवी-देवताओं का समूह और उनके कार्य
 
मरुतों का गण सात-सात का होता है। इस कारण उनको 'सप्ती' भी कहते हैं। 7-7 सैनिकों की 7 पंक्तियों में ये 49 रहते हैं। और प्रत्येक पंक्ति के दोनों ओर एक-एक पार्श्व रक्षक रहता है। अर्थात् ये रक्षक 14 होते हैं। इस तरह सब मिलकर 49 और 14 मिलकर 63 सैनिकों का एक गण होता है। 'गण' का अर्थ 'गिने हुए सैनिकों का संघ' भी होता है। प्रत्येक के नाम अलग अलग होते हैं।
 
 
मरुतों के बरे में अन्य मान्यता : कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुद्गण कहलाए। वेदों में मरुद्गणों को रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा गया है और इनकी संख्या 49 नहीं 60 की तिगुनी मानी गई है; लेकिन पुराणों में इन्हें कश्यप और दिति का पुत्र लिखा गया है। 
 
पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। इन्ही से दैत्यों का वंश आगे बढ़ा।
 
परमेश्वर : सर्वोच्च शक्ति परमेश्वर के बाद हिन्दू धर्म में देवी और देवताओं का नंबर आता है। देवताओं जैसे को देवगण कहते हैं। देवगण का अर्थ यह कि वे देवता तो नहीं है लेकिन देवताओं के गण हैं। देवगण भी देवताओं के लिए कार्य करते हैं। देवताओं के देवता अर्थात देवाधिदेव महादेव हैं तो देवगणों के अधिपति भगवान गणेशजी हैं।
 
 
जैसे शिव के गण होते हैं उसी तरह देवों के भी गण होते हैं। गण का अर्थ है वर्ग, समूह, समुदाय। जहां राजा वहीं मंत्री इसी प्रकार जहां देवता वहां देवगण भी। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, तो दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य।
 
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च॥
गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्‍घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥॥11-22॥
अर्थात : जो 11 रुद्र और 12 आदित्य तथा 8 वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं, वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं।
 
 
देवकुल : देवकुल में मुख्‍यत: 33 देवताओं का समूह हैं। इन 33 देवताओं के अलावा मरुद्गणों और यक्षों आदि को देव गणों के समूह में शामिल किया गया है। त्रिदेवों ने सभी देवताओं को अलग-अलग कार्य पर नियुक्त किया है। वर्तमान मन्वन्तर में ब्रह्मा के पौत्र कश्यप से ही देवता और दैत्यों के कुल का निर्माण हुआ। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थीं। महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं।
 
 
*देवताओं के गण:-
33 देवताओं के अतिरिक्त ये गण और माने गए हैं- 36 तुषित, 10 विश्वेदेवा, 12 साध्य, 64 आभास्वर, 49 मरुत, 220 महाराजिक। इस प्रकार वैदिक देवताओं के गण और परवर्ती देवगणों को मिलाकर कुल संख्या 424 होती है। उक्त सभी गणों के अधिपति भगवान गणेश हैं। गणाधि‍पति गजानन गणेश। गणेश की आराधना करने से सभी की आराधना हो जाती है।
 
49 मरुतगण : मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल 180 से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें 49 प्रमुख हैं। उनमें भी 7 सैन्य प्रमुख हैं। मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं। वेदों में मरुतगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है। उनके घोड़े का नाम 'पृशित' बतलाया गया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है।-(ऋ. 1.85.4)। पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है। अस्त्र-शस्त्र से लैस मरुतों के पास विमान भी होते थे। ये फूलों और अंतरिक्ष में निवास करते हैं।
 
 
7 मरुतों के नाम निम्न हैं- 1. आवह, 2. प्रवह, 3. संवह, 4. उद्वह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह। इनके 7-7 गण निम्न जगह विचरण करते हैं- ब्रह्मलोक, इन्द्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा। इस तरह से कुल 49 मरुत हो जाते हैं, जो देव रूप में देवों के लिए विचरण करते हैं।

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

24 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

24 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

Makar Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: मकर राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

lunar eclipse 2025: वर्ष 2025 में कब लगेगा चंद्र ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा

આગળનો લેખ
Show comments