Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

छत्रपति शिवाजी महाराज के अष्टप्रधान मंडल के सदस्यों का परिचय

छत्रपति शिवाजी महाराज के अष्टप्रधान मंडल के सदस्यों का परिचय

WD Feature Desk

Shivaji Maharaj Ashta Pradhan Mandal: जिस तरह सम्राट विक्रमादित्य और अशोक के 9 रत्न होते थे उसी प्रकार से मराठा साम्राज्य और हिंदू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के अष्ट प्रधान थे। इसे अष्टप्रधान मंडल के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार से उनका मंत्रिमंडल या मंत्रि परिषद थी। यह आठों मिलकर प्रशासन को चलामें मराठा साम्राज्य की सहायता करते थे।
 
''।।प्रधान अमात्य सचीव मंत्री, सुमंत न्यायाधिश धर्मशास्त्री, 
सेनापती त्यात असे सुजाणा, अष्टप्रधानी शिवमुख्य राणा।।''
 
अष्टप्रधान मंडल परिषद में निम्नलिखित मंत्रियों की गणना की जाती थी- 
 
पेशवा : इसका अर्थ होता था प्रधानमंत्री। शासन प्रशासन और अर्थव्यवस्था के सभी कार्यों में राजा की मुहर के साथ इसकी मुहर भी लगती थी। राजा की अनुपस्थिति में राज्य की बागडोर संभालता था। शिवाजी के समय मोरोपंत त्रिंबक पिंगळे प्रधान थे।
सेनापति : इसे 'सर-ए-नौबत' भी कहते थे। जिसका मुख्य सैनिकों की भर्ती करना, युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती करना, संगठन और अनुशासन को कायम रखना आदि होता था। शिवाजी के समय हंबीरराव मोहिते सेनापति थे। नेतोजी पालकर भी सेनापति थे।
 
पंत : इसे मजमुआंदार और अमात्य भी कहते थे जो यह वित्त विभाग का प्रधान होता था। यह राज्य के आय-व्यय का लेखा-जोखा तैयार कर, उस पर हस्ताक्षर करता था। शिवाजी के अमात्य रामचंद्र नीलकंठ मजुमदार पंत थे। 
वाकयानवीस : यह शासन क्षेत्र के गुप्तचर होते थे। यह गुप्तचर, सूचना एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था। यह राजा की सुरक्षा के प्रति उत्तरदायी रहता था। यह एक प्रकार से गृहमंत्री का पद है। मंत्री वाकनीस दत्ताजीपंत त्रिंबक थे।
 
चिटनिस : इसे सचिव अथवा शुरुनवीस भी कहा जाता था। इनका कार्य राजकीय पत्रों को पढ़कर उनकी भाषा-शैली को देखना, परगनों के हिसाब-किताब की जांच करना, राजकीय दस्तावेजों को तैयार करना आदि कार्य थे। शिवाजी के समय बालाजी अण्णाजीपंत दत्तो सचिव थे।
webdunia
दबीर : इसे सुमन्त भी कहते थे जो दरअसल विदेश मंत्री होता था। इसका मुख्य कार्य विदेशों से संबंध बढ़ाना, विदेशों से आए राजदूतों का स्वागत करना एवं विदेशों से संबंधित संधि विग्रह की कार्यवाहियों में राजा से सलाह लेना आदि कार्य था। शिवाजी के समय रामचंद्र त्रिंबक पंत सुमंत डबीर थे।
पंडितराव : इसे सदर और दानाध्यक्ष भी कहते थे। यह धर्म कर्म के मामलों का प्रमुख होता था। धार्मिक तिथि निर्धारित करना, धर्म को भ्रष्ट करने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था करना, दान का बंटवारा करना और प्रजा के आचरण को सुधारना आदि कार्य थे। शिवाजी के समय मोरेश्वर पंडितराव थे।
 
शास्त्री: यह न्यायधीश होता था। इनका कार्य हिन्दू न्याय की व्याख्या करना, सैनिक व असैनिक तथा सभी प्रकार के मुकदमों को सुनना और न्यायपूर्ण निर्णय करने का कार्य करता था। शिवाजी के समय निराजी रावजी न्यायाधीश थे। 
 
प्रत्येक प्रधान की सहायता के लिए अनेक छोटे अधिकारियों के अतिरिक्त 'दावन', 'मजमुआदार', 'फडनिस', 'सुबनिस', 'चिटनिस', 'जमादार' और 'पोटनिस' नामक आठ प्रमुख अधिकारी होते थे।
 
इन आठ प्रधानों के अतिरिक्त राज्य के पत्र-व्यवहार की देखभाल करने वाले 'चिटनिस' और 'मुंशी' भी महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। आवजी चिटणीस के रूप में नियुक्त थे। नीलोजी मुंशी के रूप में बहुत सम्मानित थे। उपर्युक्त अधिकारियों में अंतिम दो अधिकारी- 'पण्डितराव' एवं 'न्यायाधीश' के अतिरिक्त 'अष्टप्रधान' के सभी पदाधिकारियों को समय-समय पर सैनिक कार्यवाहियों में हिस्सा लेना होता था।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

Weekly Muhurat 2024: 19 से 25 फरवरी 2024 का साप्ताहिक पंचांग, देखें 7 दिन के शुभ मुहूर्त