Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

ये हैं हनुमानजी के 12 परम भक्त, आप भी चौंक जाएंगे जानकर

ये हैं हनुमानजी के 12 परम भक्त, आप भी चौंक जाएंगे जानकर

अनिरुद्ध जोशी

हनुमानजी आज भी सशरीर धरती पर मौजूद हैं। कलिकाल में हनुमानजी की भक्ति ही उत्तम और फलदायी है। जो भक्त नित्य हनुमानजी की प्रार्थना, पूजा या आराधना करता है, उसे स्वयं ही अनुभव होता है कि हनुमानजी उसके आसपास उपस्थित हैं और वे उसकी रक्षा कर रहे हैं। यूं तो हनुमानजी के लाखों भक्त हैं लेकिन यहां जानिए कलिकाल के 12 परम भक्तों के बारे में।
 
 
1. माधवाचार्यजी- माधवाचार्यजी का जन्म 1238 ई. में हुआ था। माधवाचार्यजी प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी।
 
 
2. श्री व्यास राय तीर्थ- श्री व्यास राय तीर्थ का जन्म कर्नाटक में 1447 में कावेरी नदी के तट पर बन्नूर में हुआ था। विजयनगर के महान सम्राट श्री कृष्णदेवराय के गुरु श्री व्यास राय तीर्थ हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने देशभर में घुमकर देश की रक्षा के लिए 732 वीर हनुमान मंदिर स्थापित किए। उन्होंने श्री हनुमान पर प्रणव नादिराई, मुक्का प्राण पदिराई और सद्गुण चरित लिखा।
 
 
3. तुलसीदासजी- तुलसीदासजी का जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदासजी जब चित्रकूट में रहते थे, तब जंगल में शौच करने जाते थे। वहीं एक दिन उन्हें एक प्रेत नजर आया। उस प्रेत ने ही बताया था कि हनुमानजी के दर्शन करना है तो वे कुष्ठी रूप में प्रतिदिन हरिकथा सुनने आते हैं। तुलसीदासजी ने वहीं पर हनुमानजी को पहचान लिया और उनके पैर पकड़ लिए। अंत में हारकर कुष्ठी रूप में रामकथा सुन रहे हनुमानजी ने तुलसीदासजी को भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसीदासजी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमानजी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा- 'चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर/ तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।'
 
 
4. राघवेन्द्र स्वामी- 1595 में जन्मे रामभक्त राघवेन्द्र स्वामी माधव समुदाय के एक गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके जीवन से अनेक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। उनके बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने भी हनुमानजी के साक्षात दर्शन किए थे। वे भी हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने 1671 में मंत्राल्यम में तुंगभद्रा नदी के तट पर जीवा समाधि में प्रवेश किया।
 
 
5. भद्राचल रामदास- 1620 में जन्मे और 1688 में ब्रह्मलीन भद्राचल रामदास का पूर्व नाम गोपन था। गोपन अब्दुल हसन तान शाह के दरबार में तहसीलदार थे। उन्हें एक महिला के स्वप्न के आधार पर भद्रगिरि पर्वत से राम की मूर्तियां मिलीं। तब उन्होंने खम्माम जिले के भद्राचलम में गोदावरी नदी के बाएं किनारे पर उक्त मूर्ति की स्थापना कर एक भव्य मंदिर बनवा दिया।
 
 
बाद में जब बादशाह अब्दुल हसन तान शाह को यह पता चला कि गोपन ने शाही खजाने से धन का उपयोग किया है, तो उन्होंने उसे पकड़वाकर गोलकोंडा की एक अंधेरी जेल में डाल दिया। एकांत में भी भगवान राम और हनुमान के प्रति गोपन की भक्ति निर्विवाद थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी प्रार्थनाओं का जवाब जल्द ही मिल गया, जब भगवान राम ने तान शाह के सपने में दर्शन दिए और शाही खजाने से लिए गए धन को चुका दिया। राजा को बहुत बुरा लगा और उसने गोपन को जेल से रिहा कर फिर से तहसीलदार के रूप में उनकी नियुक्ति बहाल कर दी।
 
 
6. समर्थ रामदास- समर्थ स्वामी रामदास का जन्म रामनवमी 1608 में गोदा तट के निकट ग्राम जाम्ब (जि. जालना) में हुआ। वे हनुमानजी के परम भक्त और छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। महाराष्ट्र में उन्होंने रामभक्ति के साथ हनुमान भक्ति का भी प्रचार किया। हनुमान मंदिरों के साथ उन्होंने अखाड़े बनाकर महाराष्ट्र के सैनिकीकरण की नींव रखी, जो राज्य स्थापना में बदली। कहते हैं कि उन्होंने भी अपने जीवनकाल में एक दिन हनुमानजी को देखा था। 1608–1681 को समर्थ रामदासजी ने देह का त्याग कर दिया।
 
 
7. छत्रपति शिवाजी- 1627 में जन्मे और 1680 में ब्रह्मलीन छत्रपति शिवाजी महान मराठा योद्धा थे जिन्होंने बीजापुर के मुगलों, तुर्कों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों, डचों और फ्रांसीसियों से लड़ाई की। वे श्री हनुमान और माता तुलजा भवानी के परम भक्त थे। उनके गुरु समर्थ रामदास के बारे में पहले ही ऊपर लिखा जा चुका है। शिवाजी को साहसी, निडर, विनम्र, बुद्धिमान, महत्वाकांक्षी, अनुशासित, एक विशेषज्ञ रणनीतिकार, एक अच्छा संगठक और दूरदर्शी के रूप में जाना जाता है।
 
 
8. संत त्यागराज- 1767 में जन्मे और 1847 में ब्रह्मलीन संत त्यागराज श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 6 करोड़ बार श्रीराम के थारका नाम का पाठ किया और थिरुवियारु के थिरुमंजना स्ट्रीट पर अपने घर के सामने सीता देवी, लक्ष्मण और श्री अंजनेय के साथ श्रीराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया था।
 
 
9. श्री रामकृष्ण परमहंस- 1836 में जन्मे और 1886 में ब्रह्मलीन स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी हनुमानजी के परम भक्त थे। हालांकि उनकी प्रसिद्धि काली के भक्त के रूप में ज्यादा थी, क्योंकि वे मंदिर के पुजारी थे। कहते हैं कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने हनुमानजी की भक्ति इस चरमता के साथ की थी कि उक्त भक्ति के चलते उनकी रीढ़ में से लगभग एक पूंछ निकलने लगी थी। दरअसल, रामकृष्ण परमहंस ने धर्म के सभी मार्गों की पद्धति से भक्त करके सत्य को जानने का कार्य किया था।
 
 
10. स्वामी विवेकानंद- 1863 में जन्मे और 1902 में ब्रह्मलीन स्वामी विवेकानंद को सभी जानते हैं। रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों और दर्शकों को हनुमानजी की कहानी से प्रेरित करते थे। हनुमानजी उनके बचपन के आदर्श और नायक थे। उन्होंने अपने शिष्य शरतचंद्र चक्रवर्ती को सलाह दी थी कि वे जीवन में श्री हनुमानजी के आदर्शों का पालन करें।
 
 
11. शिर्डी के सांईं बाबा- ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय के अवतार माने जाने वाले अक्कलकोट स्वामी, महाराष्ट्र के मनमाड़ रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर दूर पाथरी में श्री सांईं बाबा के रूप में 27 सितंबर 1938 में पुनर्जन्म लेते हैं। एक जीवनी के अनुसार श्री शिर्डी सांईं बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था जिनके पारिवारिक देवता कुम्हार बावड़ी के श्री हनुमान थे, जो पाथरी के बाहरी इलाके में थे।
 
 
सांईं बाबा पर हनुमानजी की कृपा थी। सांईं बाबा प्रभु श्रीराम और हनुमान की भक्ति किया करते थे। उन्होंने अपने अंतिम समय में राम विजय प्रकरण सुना और 1918 में देह त्याग दी। इसके कई प्रमाण हैं कि शिर्डी के सांईं बाबा हनुमानजी के भक्त थे। 1926 को पुट्टपर्थी में जन्मे सत्य सांईं बाबा भी हनुमान भक्त थे।
 
 
12. नीम करोली बाबा- नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे। नीम करोली बाबा के कई चमत्कारिक किस्से हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि हनुमानजी उन्हें साक्षात दर्शन देते थे।
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

मंगलवार विशेष : आज क्या करें कि हर काम आसानी से हो जाए