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भारत के इतिहास में तमिल सभ्यता के 10 रहस्य

भारत के इतिहास में तमिल सभ्यता के 10 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 29 जनवरी 2021 (15:28 IST)
भारत के पांच हिस्से हैं एक उत्तर भारत, दूसरा पर्वोत्तर भारत, तीसरा पश्चिम भारत, चौथा मध्य भारत और पांचवां दक्षिण भारत। दक्षिण भारत का केंद्र तमिल रहा है। जिस तरह उत्तर या पश्चिम भारत में मोहनजोदड़ो या सिंधु घाटी की सभ्यता को सबसे प्राचीन माना जाता है उसी तरह दक्षिण भारत में तमिल सभ्यता को भी सबसे प्राचीन सभ्यता माना जाता है। आओ जानते हैं इस संबंध में 10 खास बातें।
 
 
1. पुरातत्व शोधकर्ता मानते हैं कि तमिल सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता थी। अरब की खाड़ी में ऐसे दो नगर ढूंढे गए हैं जो कि भारत के प्राचीन वैभव और इतिहास को प्रमाणित करते हैं। यहां से प्राप्त पुरा अवशेषों की कार्बन डेटिंग से पता चला है कि यह 5 हजार से 9 हजार वर्ष पुरानी हैं। द्वारिका की तरह यह नगर की प्राकृतिक आपदाओं के कारण समुद्र में समा गए थे।
 
2. इन नगरों की खोज से यह पता चलता है कि गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों से जुड़ी तमिल सभ्यता कितनी प्राचीन थी। दक्षिण भारत के प्राचीन नगरों में पंचवटी, नासिक, महाबलेश्वर, महाबलीपुरम, किष्किंधा, हम्पी, ऋष्यमूक पर्वत, कोडीकरई, रामेश्‍वरम और धनुषकोडी (रामसेतु) को सबसे प्राचीन माना जाता है। कावेरी नदी को दक्षिण की गंगा कहा जाता है। कर्नाटक और तमिलनाडु इस कावेरी घाटी में पड़ने वाले प्रमुख राज्य हैं। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर रामायण और महाभारतकालीन अवशेष पाए जाते हैं। आगे चलकर पंपा नदी है।
 
3. जो लोग यह मानते हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता से भारत के इतिहास की शुरुआत होती है, उनकी सोच अब पुरानी हो चुकी है। ऐसे लोग गुजरात समुद्र के भीतर द्वारिका नगरी के मिलने के साक्ष्य को नकार सकते हैं। अब उन्हें 'कुमारी कंदम' के अस्तित्व को भी नकारने की ताकत जुटाना होगी। आज से 100 या 50 साल पहले इतिहास को जानने के स्रोत कम थे। उस काल में लिखी गई इतिहास की किताबों को पढ़कर ही अब इतिहास को नहीं जाना जा सकता, हालांकि वे किताबें हमारे ज्ञान का आधार जरूर हैं, लेकिन अब नए शोध के साथ इतिहास को जानने की जरूरता है।
 
4. वैज्ञानिक कहते हैं कि गोंडवाना नामक एक द्वीप के टूटने से भारत, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका का निर्माण हुआ। उस काल में भारत कैसा था, यह शोध का विषय हो सकता है। लेकिन हम बात कर रहे हैं आज से 15,000 वर्ष पूर्व के भारत की। 19वीं सदी में अमेरिकी और यूरोपीय विद्वानों के एक वर्ग ने अफ्रीका, भारत और मेडागास्कर के बीच जियोलॉजिकल और अन्य समानताएं समझाने के लिए जलमग्न हो चुके एक महाद्वीप का अनुमान लगाया और उसे लेमुरिया (Lemuria) का नाम दिया। हलांकि इस दौरान एक और महाद्वीप खोजा जिसका नाम मु (mu) दिया गया। उसके बारे में हम बात नहीं करेंगे, क्योंकि यह विषय बहुत विस्तृत है।
 
5. तमिल इतिहासकारों के अनुसार इस द्वीप का नाम 'कुमारी कंदम' था। 'कुमारी कंदम' आज के भारत के दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर में एक खो चुकी तमिल सभ्यता की प्राचीनता को दर्शाता है। इसे 'कुमारी नाडू' के नाम से भी जाना जाता है। तमिल शोधकर्ताओं और विद्वानों के एक वर्ग ने तमिल और संस्कृत साहित्य के आधार पर समुद्र में खो चुकी उस भूमि को पांडियन महापुरुषों के साथ जोड़ा है। तमिल पुनर्जागरणवादियों के अनुसार 'कुमारी कंदम' के पांडियन राजा का पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन था। दक्षिण भारत के लोकगीतों में इतिहास के साथ उस खो चुकी इस सभ्यता का वर्णन मिलता है। नतीजतन, जब इसके बारे में जानकारी देने वाले खोजकर्ता भारत के नगरों में पहुंचे, तब इस लोकगीत और कथा को बल मिला।
 
6.. तमिल लेखकों के अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप में न होकर हिन्द महासागर में स्थित 'कुमारी कंदम' नामक द्वीप में हुआ था। हालांकि 'कुमारी कंदम' या लुमेरिया को हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी काल्पनिक सभ्यता कहा जाता है। कुछ लेखक तो इसे रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला राम सेतु भी इसी महाद्वीप में पड़ता है। 
 
7. इस महाद्वीप को लेमुरिया नाम भूगोलवेत्ता फिलीप स्क्लाटर (Philip Sclater) ने 19वीं सदी में दिया था। सन् 1903 में वीजी सूर्यकुमार ने इसे सर्वप्रथम 'कुमारी कंदम' नाम दिया था। कहा जाता है कि यह 'कुमारी कंदम' ही रावण के देश 'लंका' का विस्तृत स्वरूप है, जो कि वर्तमान भारत से भी बड़ा था। फिलीप स्क्लाटर ने मेडागास्कर और भारत में बहुत बड़ी मात्रा में वानरों के जीवाश्मों (Lemur Fossils) के मिलने पर यहां एक नई सभ्यता के होने का अनुमान व्यक्त किया था। उन्होंने इस विषय पर एक किताब भी लिखी जिसका नाम ‘The Mammals of Madagascar’ था, जो कि 1864 में प्रकाशित हई थी।
 
9. 'कुमारी कंदम' का क्षेत्र उत्तर में कन्याकुमारी से लेकर पश्चिम में ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट और मेडागास्कर तक फैला था। भूगोलवेत्ता एआर वासुदेवन के शोधानुसार मानव सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप में न होकर कुमारी हिन्द महासागर के 'कुमारी कंदम' नामक द्वीप पर हुआ था। उनके अध्ययन कहते हैं कि आज से लगभग 14,000 साल पहले जब 'कुमारी कंदम' जलमग्न हो गया तो लोग यहां से पलायन कर अफ्रीका, यूरोप, चीन सहित पूरे विश्व में फैल गए और कई नई सभ्यताओं को जन्म दिया।  
 
10. ऐसा माना जाता है कि हिमयुग के अंतिम सालों में तापमान बढ़ना शुरू हो गया था जिसके कारण ग्लैशियरों का पिघलना शुरू हुआ और समुद्र का जलस्तर बहुत बढ़ गया और अंतत: यह सभ्यता पानी में डूब गई। तमिल लेखकों के अनुसार जब 'कुमारी कंदम' जलमग्न हुआ तो उसका 7,000 मील का क्षेत्र 49 टुकड़ों में बंट गया था। इस प्रकार यह महाद्वीप, हिमयुग के अंत में समुद्र में डूबा तो लोगों ने अलग-अलग जगहों पर शरण ली और पूरी दुनिया में कई नई सभ्यताओं (यूरोप, अफ्रीका, भारत, मिस्र, चीन इत्यादि) का विकास हुआ।

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