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ताजमहल, तेजोमहालय या बादलगढ़, जानिए 22 तहखानों का रहस्य

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बुधवार, 11 मई 2022 (18:27 IST)
taj mahal ke 22 kamre mein kya hai
Tajmahal 22 rooms: मुमताज और शाहजहां की कब्र ताजमहल को लेकर दावा किया जा रहा है कि 700 से अधिक ऐसे सबूत मौजूद हैं जो इसे मंदिर इमारत घोषित करते हैं। यानी वर्तमन ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है। इसी के साथ ही इसके बंद 22 तहखानों में छुपा सबसे बड़ा रहस्य। आओ जानते हैं कि क्या है फैक्ट्स।
 
 
1. एक ही व्यक्ति की दो कब्रें क्यों : ताजमहल की मुख्‍य संरचना के ठीक बाहर फर्श पर स्थित एक भूमिगत मार्ग है जिसे जालीदार दरवाजे से बंदकर रखा है। दरवाजों के अंदर इसे लकड़ी के एक बोर्ड से ढक दिया गया है जिसके चलते आप अंदर नहीं देख सकते हैं। हालांकि ताजमहल के अंदर आप जाते हैं तो वहां एक और विशाल मार्ग है जो नीचे की ओर जाता है। यह भी बंद कर रखा है। यहां पर लिखा हुआ है कि कृपया आप यहां न रुकें, शांत रहें और फोटोग्राफी वर्जित है। कहते हैं कि वहां पर राजा शाहजहां और मुमताज की कब्रें हैं, लेकिन यदि देखा जाए तो जब एक कब्र ऊपर है तो दूसरी कब्र के नीचे होने का क्या मतलब? कहा जा रहा है कि ऊपर का कक्ष और नीचे भूमिगत कक्ष दोनों ही सफेद संगमरमर से बना है। लेकिन क्या पूरी तरह से ताजमहल सफेद संगमरमर का ही बना है?
 
 
3. सिर्फ संगमरम का नहीं है ताज : ताजमहल के पीछे कभी कोई नहीं जाता है जहां पर यमुना नदी बह रही है। नदी की ओर देखने से समझ में आता है कि ताजमहल का एक विशाल आधार है। कई फुट ऊंचा बेस है। यह आधार सफेद संगमरमर से नहीं बल्कि लाल बलुआ पत्थरों से बना है। ताजमहल के चारों ओर सभी संवरचनाएं लाल बलुआ पत्थर से बनी है। बंद भूमिगत मार्ग भी नदी के किनारे स्थित है। यह मार्ग भी लाल बलुआ पत्‍थर से बना है। ताजमहल के बाहर का फर्श भी लाल बलुआ पत्थर से बना है।
 
 
4. पीछे है भूमिगत दरवाजा : नदी के किनारे पीछे जो आधार बना हुए है। पीछे ध्यान से देखने पर इसी आधार के बीच में एक बड़ा दरवाजा दिखाई देता है। दरअसल, यह प्रवेश द्वारों में से एक है जो ताजमहल के भूमिगत क्षेत्र में जाता है। प्रो. मार्विन एच मिल्स नाम के एक एक अमेरिकन वास्तुशास्त्री ने 1974 में इसकी स्पष्ट तस्वीरें ली। इसमें लकड़ी के दरवाजे थे जिनमें ताला लगा हुआ था। उन्होंने दरवाजे में से लकड़ी का एक छोटा-सा टुकड़ा लिया और उसे रेडियो कार्बन डेटिंग के लिए अमेरिकन प्रयोगशाला में भेजा। जांच से पता चला कि लकड़ी ताजमहल से कम से कम 250 साल पहले की है। कहते हैं कि उस वक्त समाचार पत्रों में यह बात छपने के बाद उस लकड़ी के दरवाजे को तुरंत हटा दिया और इस दरवाजे को ईंटों और प्लास्तर से बंद कर दिया गया। उस वक्त अधिकारों के द्वारा यह स्पष्टीकरण दिया गया कि वहां राजा और रानी के ममीकृत शव हैं। यदि वे वातावरण के संपर्क में आए तो दूषित हो जाएंगे। इसी वजह से बेसमेंट के सभी द्वारों को पूरी तरह से सील कर दिया गया है। हालांकि यह अजीब स्पष्टीकरण है क्योंकि ताजमहल के चारों ओर फर्श वेंटिलेशन शाफ्ट या कहें कि झरोखों से भरा है जहां से हवा सीधे भूमिगत जाती है। यदि आप इन वेंटिलेशन से भीतर देखेंगे तो वहां अंधेरे के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता है। यदि ऐसा ही था कि हवा नहीं जाने देना थी तो इन झरोखों और एक ही कक्ष तक पहुंचने के कई मार्गों को बनाए जाने का क्या मतलब है? दरअसल ताजमहल का जो आधार है वह ताजमहल के सदियों पहले बनाया गया था। 
 
5. पदशाहानामा का खुलासा : बादशाह शाहजहां के दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखित पदशाहानामा नामक पुस्तक के अनुसार इस किताब के अनुसार राजा शाहजहां के तालमहल बनवाने के फैसले के साथ ही यह भी बताती है कि इसके आसापास के ढांचे पहले से ही मौजूद थे। इस किताब में स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है कि शाहजहां ने ताजमहल को खाली भूमि पर नहीं बनवाया था। बल्कि जयसिंह नामक एक राजा से उसके पुश्तैनी महल या हवेली को खरीदा था और फिर उस स्थान पर सफेद संवरचना का निर्माण किया था।
6. पहले था किला और बीच में था मंदिर : तहखाने और ताजमहल की बाकि संवरचनाएं ताजमहल से काफी पहले बनाई गई थी। सभी प्राचीन संवरचनाएं लाल पत्थर और ईंटों से बनी हैं और एक किले से मिलती-जुलती है। इन्हें शाहजहां द्वारा केवल शीर्ष पर सफेद संगमरमरों को गुंबदों को जोड़कर संसोधित करवाया गया था। यानी संपूर्ण ताजमहल स्क रिकंस्ट्रक्शन किया गया था। यह एक बहुत ही बेहतर वास्तु संशोधन था। 
 
7. बादलगढ़ मंदिर : यह स्पष्ट है कि ताजमहल का भूमिगत क्षेत्र ताजमल के पहले का है। स्थानीय लोग मानते हैं कि भूमिगत संवरचना देवताओं का मंदिर है। स्थानीय लोग इस मंदिर को 'बादलगढ़ मंदिर' के रूप में संदर्भित करते हैं और दावा करते हैं कि यह कई मील तक भूमिगत है। एरियल व्यू से यह पता चलता है कि ताजमहल के आसपास किस तरह की संवरचना है और आसपास का खाली क्षेत्र बताता है कि यहां भीतर कई मील तक भूमिगत मार्ग हो सकते हैं। 
 
8. आगरा का किला : ताजमहल से महज दो मील की दूरी पर स्थित आगरा का किला है, जिसका मूल नाम पहले 'बादलगढ़' था। यहां स्थित एक शिलालेख पर लिखे लेख से इसकी पुष्टि होती है। इतिहासकारों के अनुसार राजा अकबर के द्वारा इस किले को भी संशोधित किया गया था। यहां की मुख्‍य संवरचना लाल बलुआ पत्‍थरों से बनी हुई है जबकि गुंबद किसी अन्य सामग्री से बने हुए हैं। दोनों में ही फर्क स्पष्‍ट नजर आता है। यहां भी एक भूमिगत मार्ग है। यहां के भूमिगत मार्ग को भी जालीदार दरवाजों से बंदकर रखा है। यहां पर भी ताजमहल के फर्श पर स्थित झरोखों की तरह के झरोखें हैं जो नीचे की ओर जाते हैं। भूमिगत मार्ग सीढ़ियों से होकर नीचे जाता है। भीतर देखने पर आपको गुंबद के आकार के कमरे दिखाई देंगे। यहां स्थित स्तंभ या पिलर को देखते हैं तो आपको वर्गाकार आकार वाला आठमुखी स्तंभ नजर आएगा जो लगभग सभी प्राचीन भारतीय मंदिरों में पाया जाता है। वास्तुशास्त्र में इसे अष्टकोण स्तंभ कहते हैं। यह स्तंभ भी लाल बलुआ पत्‍थर से बना हुआ है जबकि इसकी दीवारें नई तरह की ईंटों की बनी हुई है। यहां गौर से देखने पर स्पष्ट नजर आता है कि प्राचीन संवरचना में संशोधन किया गया है। आगरा के किले से आप ताजमहल देख सकते हैं। इसका मतलब यह है कि यह भूभिगत संवरचना वहां तक फैली हुई थी। ठीक उसी तरह जिस तरह की ऐलोरा की गुफाओं में भूमिगत शहर होने की बात कई जाती है। 
 
9. क्या बादलगढ़ के किले में था तेजोमहालय : कहते हैं कि ताजमहल का निर्माण 1155 सन् में राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में हुआ था। पहले यह महल तीन गुंबदों वाला था। मुख्‍य गुंबद में शिव मंदिर था। शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिन्दुओं में रिवाज था, जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है।
 
 
10. चार मंजिला भवन : ताजमहल एक सात मंजिला भवन है। शहजादे औरंगजेब के शाहजहां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन की चार मंजिलें हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृत्तीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर की इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बनी दो और मंजिलें हैं, जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिए, क्योंकि सभी प्राचीन हिन्दू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है।
11. 22 तहखानों का रहस्य : नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके दरवाजों को चुनवा दिया गया है। इन कमरों को भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता रहा है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिन्दू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों।
 
 
स्पष्टत: मूल रूप से चुनवाए गए इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। कहते हैं कि सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाए हुए दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झांककर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष वहां के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देखकर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत-सा हो गया। वहां बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारी मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ताजमहल हिन्दू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन-कौन-से साक्ष्य छुपे हुए हैं, उसकी सातों मंजिलों को खोलकर साफ-सफाई कराने की नितांत आवश्यकता की मांग की जा रही है।
 
 
12. गैर मुस्लिम नहीं जा सकता :फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता, परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएं थीं और शाहजहां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिए वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे। नदी के पिछवाड़े में हिन्दू बस्तियां, बहुत से हिन्दू प्राचीन घाट और प्राचीन हिन्दू शवदाह गृह हैं। यदि शाहजहां ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता।
 
 
साभार : इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक की पु्स्तक 'ताजमहल तेजोमहालय शिव मंदिर है' के साथ ही इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से संकलित लेख।

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