Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

पुरुरवा के वंश को चलाने वाली दो अप्सराएं कौन थीं?

पुरुरवा के वंश को चलाने वाली दो अप्सराएं कौन थीं?

अनिरुद्ध जोशी

धरती पर ऐसे कई वंश हैं या लोग हैं जो कि अप्सराओं की संताने हैं। ये सभी अप्सराएं इंद्र के राज में रहती थी। हिमालय में कहीं पर इंद्र का राज हुआ करता था। इंद्र के आदेशानुसार समय-समय पर यह अप्सराएं मैदानी क्षेत्रों में आकर ऋषि मुनियों की तपस्या भंग करती थी या राजाओं के साथ समागम करती थीं। आओ जानते हैं पुरुरवा वंश को आगे बढ़ाने वाली दो अप्सराओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
उर्वशी : एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा उसके प्रति आकृष्ट हो गए थे जिसके चलते उसकी ताल बिगड़ गई थी। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मर्त्यलोक में रहने का शाप दे दिया था। मर्त्यलोक में पुरुरवा और उर्वशी कुछ शर्तों के साथ पति-पत्नी बनकर रहने लगे। दोनों के कई पुत्र हुए। इनके पुत्रों में से एक आयु के पुत्र नहुष हुए। नहुष के ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख पुत्र थे। इन्हीं में से ययाति के यदु, तुर्वसु, द्रुहु, अनु और पुरु हुए। यदु से यादव और पुरु से पौरव हुए। पुरु के वंश में ही आगे चलकर कुरु हुए और कुरु से ही कौरव हुए। भीष्म पितामह कुरुवंशी ही थे।
 
यही उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में अर्जुन को देखकर आकर्षित हो गई थी और इसने इन्द्र से प्रणय-निवेदन किया था, लेकिन अर्जुन ने कहा- 'हे देवी! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं...।' अर्जुन की ऐसी बातें सुनकर उर्वशी ने कहा- 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं अतः मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम 1 वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।'.. इस तरह उर्वशी के संबंध में सैकड़ों कथाएं पुराणों में मिलती हैं।
मेनका : मेनका ने अपने रूप और सौंदर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गए। मेनका से विश्वामित्र ने विवाह कर लिया और मेनका से विश्वामित्र को एक सुन्दर कन्या प्राप्त हुई जिसका नाम शकुंतला रखा गया। शकुंतला छोटी ही थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को छोड़कर फिर से इंद्रलोक चली गई। इसी पुत्री का आगे चलकर सम्राट दुष्यंत से प्रेम विवाह हुआ, जिनसे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। यही पुत्र राजा भरत थे।
 
मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है। इसी भरत के कुल में राजा कुरु हुआ और उनसे कौरव वंश की स्थापना हुई। कुरु के वंश में शान्तनु का जन्म हुआ। शान्तनु ने गंगा और सत्यवती से विवाह किया था। इसके मतलब यह कि उर्वशी के वंश को ही बाद में मेनका ने आगे बढ़ाया।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत तुकाराम महाराज की जयंती