Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

इन दो देवताओं के कारण जीते थे पांडव महाभारत का युद्ध

इन दो देवताओं के कारण जीते थे पांडव महाभारत का युद्ध

अनिरुद्ध जोशी

महाभारत के युद्ध में जीत का श्रेय निश्‍चित ही भगवान श्रीकृष्ण को जाता है लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को भी यह युद्ध जीतने के लिए अन्य देवी और देवताओं की मदद लेना पड़ी थी। हालांकि आप शायद जानते होंगे लेकिन फिर भी हम यहां बताना चाहते हैं उन लोगों के लिए जो यह नहीं जानते हैं।

शोधानुसार जब महाभारत का युद्ध हुआ, तब श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी। महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्याग दी थी।    इसका मतलब 119 वर्ष की आयु में उन्होंने देहत्याग किया था। भगवान श्रीकृष्ण द्वापर के अंत और कलियुग के आरंभ के संधि काल में विद्यमान थे। ज्योतिषिय गणना के अनुसार कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था। वर्तमान में 1936 शक संवत है। इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5112 वर्ष हो गए हैं।
 
इस प्रकार भारतीय मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण विद्यमानता या काल शक संवत पूर्व 3263 की भाद्रपद कृ. 8 बुधवार के शक संवत पूर्व 3144 तक है। भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत जिसकी गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है, उक्त मान्यता को पुष्ट करता है। कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था। आओ जानते हैं महाभारत युद्ध के 18 दिनों के रोचक घटनाक्रम को।

1.हनुमानजी के बारे में तो सभी जानते हैं कि उनके बगैर तो यह युद्ध जीतना असंभव था। हनुमानजी से पांडवों की मुलाकात वनवास के दौरान गंधमादन पर्वत पर हुई थी। मान्यता अनुसार भीम और हनुमान दोनों भाई हैं क्योंकि भीम और हनुमान दोनी ही पवन देव के पुत्र हैं। श्रीकृष्ण की युक्ति के अनुसार हनुमानजी से पांडवों ने जीत का आश्‍वासन ले लिया था। इसी के चलते वे युद्ध में अर्जुन के रथ के  उपर ध्वज में विराजमान हो गए थे।  
webdunia
hanumanji
दिन अर्जुन अकेले वन में विहार करने गए। घूमते-घूमते वे रामेश्वरम चले गए। जहां उन्हें श्रीरामजी का बनाया हुआ सेतु देखा। यह देख कर अर्जुन ने कहा कि उन्हें सेतु बनाने के लिए वानरों की क्या जरूरत थी। जबकि वे खुद ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। उनकी जगह मैं होता तो यह सेतु बाणों से बना देता। यह सुन कर हनुमान ने कहा कि बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार झेल नहीं सकता। तब अर्जुन ने कहा कि यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। हनुमानजी ने कहा मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा।
 
तब अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार कर दिया। लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया। हनुमान राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए। पहला पग रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही सेतु चरमरा गया। यह देख कर अर्जुन खुद को खत्म करने के लिए अग्नि जलाने लगे तभी भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और अर्जुन से कहा कि वह फिर से सेतु बनाए लेकिन इस बार वे श्रीराम का नाम लेके सेतु बनाए जिससे वह नहीं टूटेगा। दूसरी बार सेतु के तैयार होने के बाद हनुमान फिर से उस पर चले लेकिन इस बार सेतु नहीं टुटा। इससे खुश हो कर हनुमान ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे। इसीलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज में हनुमान विराजमान हुए और अंत तक उनकी रक्षा की। 
 
कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंतिम दिन कृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, उसके बाद कृष्ण रथ से उतरे। कृष्ण ने हनुमानजी का धन्यवाद किया कि उन्होंने उनकी रक्षा की। लेकिन जैसे ही हनुमान अर्जुन के रथ से उतर कर गए, वैसे ही रथ में आग लग गयी। यह देख कर अर्जुन हैरान रह गए। कृष्ण ने उन्हें बाताया कि कैसे हनुमान उनकी दिव्य अस्त्रों से रक्षा कर रहे थे।
 
 

2. महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर अर्जुन ने कई जगह जाकर शक्ति की साधना की थी। उनकी साधना के वरदान स्वरूप शक्ति के विभिन्न रूपों ने पांडवों की मदद की थी। उन्हीं शक्ति में से एक माता काली दस महाविद्याओं में से प्रथम है जिन्हें देवी दुर्गा की महामाया कहा गया है। उन्होंने भी महाभारत युद्ध में पांडव पक्ष की मदद की थी।
webdunia
कहते हैं कि युद्ध में विजय की कामना से अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उज्जैन में हरसिद्ध माता और नलखेड़ा में बगलामुखी माता का पूजन भी किया था। वहां उन्हें युद्ध में विजयी भव का वरदान मिला था।
 
मान्यता है कि महाभारत युद्ध के एक रात पहले अर्जुन ने माता दुर्गा की आराधना की थी। माता ने प्रकट होकर उन्हें विजयी श्री का वरदान दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि हे अर्जुन तुम्हें विजय श्री के वरदान की जरूरत नहीं क्योंकि जहां धर्म होगा वहीं वासुदेव श्रीकृष्ण होंगे और जहां वे होंगे वहां विजयी ही होगी।  

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati