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दशनाम गोस्वामी समाज

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सोमवार, 17 सितम्बर 2018 (17:28 IST)
- रणजीत गोस्वामी

ब्राह्मणों द्वारा पूजित दशनाम गोस्वामी समाज के प्रमुख संस्थापक आदि शंकराचार्य थे। यह धर्मरक्षकों का संप्रदाय है। इसमें महामंडलेश्वर आचार्य एवं महंत होते हैं। दशनाम संप्रदाय को प्रमुख दश नामों से जाना जाता है जिनमें गिरी, पुरी, भारती, सरस्वती, अरण्य, तीर्थ एवं आश्रम आदि हैं।
 
 
पूर्व काल में आदि शंकराचार्य ने धर्म की हानि रोकने के लिए इनको 10 भागों में विभाजित कर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धर्मरक्षार्थ हेतु प्रस्थान किया। जिन संन्यासियों को पहाड़ियों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में प्रस्थान किया, वे गिरी एवं पर्वत और जिन्हें जंगली इलाकों में भेजा, उन्हें वन एवं अरण्य नाम दिया गया।
 
 
जो संन्यासी सरस्वती नदी के किनारे धर्म प्रचार कर रहे थे, वे सरस्वती और जो जगन्नाथपुरी के क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे, वे पुरी कहलाए। जो समुद्री तटों पर गए, वे सागर और जो तीर्थस्थल पर प्रचार कर रहे थे, वे तीर्थ कहलाए। जिन्हें मठ व आश्रम सौंपे गए, वे आश्रम और जो धार्मिक नगरी भारती में प्रचार कर रहे थे, वे भारती कहलाए।
 
 
संन्यासी तन, मन एवं पूरी शक्ति के साथ तपस्या कर रहे थे एवं उन्होंने अपनी पांचों इन्द्रियों को वश में कर लिया था इसलिए वे गोस्वामी कहलाए। गो का एक अर्थ इन्द्रियां होता है और स्वामी का अर्थ उनको वश में करने वाला होता है। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचों इन्द्रियों को वश में करने वाला होता है।
 
इस साधु संप्रदाय में भिन्न उपाधियां दी जाती हैं- महंत, निरंजन, वैरागी आदि। इनमें मंहत सबसे ज्ञानी होता है।
 
 
संप्रदाय की मुख्य विशेषताएं-
संप्रदाय की कुछ प्रमुख विशेषताओं के कारण हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। जिनमें मृत्यु होने पर भंडारा एवं तलवारबाजी के करतब दिखाना आदि प्रमुख हैं। समाज की अधिकतर संस्कृतियां राजस्थान में ही पाई जाती हैं।

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