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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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रात में दिन नहीं बदलता, जनवरी में नववर्ष नहीं आता

रात में दिन नहीं बदलता, जनवरी में नववर्ष नहीं आता

अनिरुद्ध जोशी

अंग्रेजी संवत 2017 समाप्त हो रहा है और 2018 शुरू होने ही वाला है। दुनियाभर में इसी कैलेंडर के आधार पर नववर्ष मनाने का प्रचलन चल पड़ा है। रात की 12 बजे तक जागकर लोग समझते हैं कि नया वर्ष प्रारंभ होने वाला है, उनकी भावुकता देखने लायक होती है।


दुनियाभर के समाज, धर्म और देशों में अलग-अलग समय में नववर्ष मनाया जाता है। अधिकतर कैलेंडर में नववर्ष मार्च से अप्रैल के बीच आता है और दूसरे दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। मार्च में बदलने वाले कैलेंडर को ही प्रकृति और विज्ञान सम्मत माना जाता है जिसके कई कारण है।
 
 
मार्च में प्रकृति और धरती का एक चक्र पूरा होता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सूर्योदय से दिन शुरू होता है। सूर्यास्त के बाद उस दिन की रात प्रारंभ होती है। उस रात का अंतिम प्रहर बीत जाने पर जब नया सूर्योदय होता है तब दिन और रात का एक चक्र पूरा हो जाता है। जबकि ईसाई कैलेंडर में रात की 12 बजे नया दिन प्रारंभ हो जाता है जो कि विज्ञान सम्मत नहीं है। दूसरा यह कि जनवरी में प्रकृति का चक्र पूरा नहीं होता। धरती के अपनी धूरी पर घुमने और धरती के सूर्य का एक चक्कर लगाने लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है असल में वही नववर्ष होता है। नववर्ष में नए सिरे से प्रकृति में जीवन की शुरुआत होती है। वसंत की बहार आती है। 
 
यदि कोई कैलेंडर आपकी मान्यता, विश्वास, धार्मिक घटना, संदेशवाहक के जन्म, जयंती आदी पर आधारित है तो वह कैलेंडर भी कैलेंडर ही होता है लेकिन उसका संबंध विज्ञान से नहीं इतिहास से होता है। हालांकि सभी तरह के कैलेंडर अनुसार नववर्ष मनाया जा जा सकता है, क्योंकि सभी का सम्मान भी जरूरी है। लेकिन सच को स्वीकार करना भी जरूरी है। आपके लिए यहां संक्षिप्त में जानकारी है कि किस कैलेंडर अनुसार इस समय कौन-सा सन् या संवत चल रहा है। 
 
*सिख संवत
इस वक्त सिख संवत् नानकशाही 548-49 चल रहा है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) से नए साल की शुरुआत होती है। पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो कि अप्रैल में आती है।
 
*हिजरी संवत
इस वक्त मुस्लिम समुदाय का हिजरी संवत् 1439-40 चल रहा है। हिजरी सन् की शुरुआत मोहर्रम माह के पहले दिन से होती है। इसकी शुरुआत 622 ईस्वी में हुई थी। हजरत मोहम्मद जब मक्का से निकलकर मदीना में बस गए तो इसे 'हिजरत' कहा गया। जिस दिन वे मक्का से मदीना आए, उस दिन से हिजरी कैलेंडर शुरू हुआ। हिजरी कैलेंडर में चन्द्रमा की घटती-बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है, लिहाजा इसके महीने हर साल करीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं।
 
 
*शक संवत
इस वक्त शक संवत् 1939-40 चल रहा है। शक और शाक्य में फर्क है। शकों ने भारत पर आक्रमण किया था। इस संवत् की शुरुआत शक सम्राट कनिष्क ने 78 ईस्वी में की थी। इसे शालिवाहन संवत् भी कहा जाता है। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत् को राष्ट्रीय संवत् के रूप में घोषित कर दिया। राष्ट्रीय संवत् का नववर्ष 22 मार्च से शुरू होता है। यह संवत् सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से शुरू होता है।
 
 
*ईस्वी संवत
इस वक्त ईस्वी संवत 2018 चल रहा है। 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई थी, जबकि पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नववर्ष 1 मार्च से शुरू होता है। दुनियाभर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है, उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था। वर्तमान में इसे ईसाई संवत कहते हैं। इस संवत के कारण दुनिया के इतिहास को 2 भागों में बांट दिया गया- ईसा पूर्व और ईसा बाद। इस कैलेंडर का दिन रात की 12 बजे बदल जाता है।
 
 
*विक्रम संवत
इस वक्त विक्रम संवत 2074-75 चल रहा है जिसकी शुरुआत ईस्वी पूर्व 57 को उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने की थी। इस कैलेंडर की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है। यह हिन्दू धर्म का सर्वमान्य कैलेंडर है। इसी दिन से चैत्र नवरात्र का भी प्रारंभ होता है। 1 साल में 12 महीने और 7 दिन का सप्ताह विक्रम संवत से ही प्रेरित होकर दुनियाभर में प्रचलित हुआ। यह कैलेंडर सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र की गतिविधियों पर आधारित है, लेकिन इसमें चान्द्रमास को ज्यादा महत्व दिया गया है। इस कैलेंडर का एक दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन तक के सूर्योदय तक चलता है।
 
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*वीर निर्वाण संवत्
इस वक्त जैन समुदाय का 2544 वीर निर्वाण संवत् चल रहा है जबकि महावीर संवत् 2612 चल रहा है। जैन समुदाय का नया साल दीपावली के दिन से प्रारंभ होता है। इस दिन भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण पद प्राप्त किया था इसीलिए इसे वीर निर्वाण संवत् कहते हैं।
 
 
*बौद्ध संवत
इस वक्त बौद्ध संवत 2560-61 चल रहा है। भगवान बुद्ध का निर्वाण 543 ईस्वी पूर्व हुआ था। बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा के दिन 17 अप्रैल को नया साल मनाते हैं। कुछ 21 मई को नया वर्ष मानते हैं। थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, कंबोडिया और लाओस के लोग 7 अप्रैल को बौद्ध नववर्ष मनाते हैं।
 
*कलि संवत
इस वक्त 5119 कलि संवत् चल रहा है। इसे महाभारत और युधिष्ठिर संवत् भी कहते हैं। कलि संवत् 3102 ईस्वी पूर्व से प्रारंभ होता है। जब द्वापर युग का अंत हुआ और कलियुग का प्रारंभ हुआ तब कलि संवत् की शुरुआत हुई। महाभारत के अंत के बाद पांडव पुत्र युधिष्ठिर ने 37 साल 8 महीने 25 दिन तक राज किया था। उन्हीं के राज्यारोहण के समय से युधिष्ठिर संवत् चल रहा है। महाभारत युद्ध को 5153-54 वर्ष हो चुके हैं। 
 
*यहूदी संवत्
इस वक्त यहूदी संवत् 5578 चल रहा है। कुछ विद्वानों अनुसार 5778 चल रहा है। 3561 ईस्वी पूर्व इस संवत् का प्रारंभ हुआ था। यहूदी नववर्ष ग्रेगोरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। हिब्रू या यहूदी मान्यता के अनुसार ईश्‍वर द्वारा विश्व को बनाने में 7 दिन लगे थे। यहूदी पैगंबर हजरत मूसा 3656 वर्ष पूर्व हुए थे। 
 
*पारसी संवत
पारसी समुदाय में नववर्ष को 'नवरोज' कहते हैं। लगभग 3,000 वर्ष पूर्व शुरू हुए इस कैलेंडर को ईरानी कैलेंडर कहा जा सकता है। वैसे पारसियों में 3 तरह के कैलेंडर प्रचलित है जिनके नाम हैं- शहंशाही, फासली और कादमी। ईस्वी कैलेंडर के अनसार नवरोज प्रतिवर्ष 20 या 21 मार्च से आरंभ होता है। शहंशाही कैलेंडर के मुताबिक यह 1387वां वर्ष चल है। इसे जमशेदी नवरोज भी कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार पारसी संवत् 1,89,920 वर्ष प्राचीन है।
 
 
*सप्तर्षि संवत
सप्तर्षि संवत भारत का सबसे प्राचीन संवत है। प्राचीन सप्तर्षि संवत 6676 ईस्वी पूर्व से प्रारंभ होता है और नवीन सप्तर्षि संवत 3076 ईसापूर्व से प्रारंभ होता है। इस वक्त प्राचीन के अनुसार सप्तर्षि संवत का यह 8693-94 चल रहा है और नवीन के अनुसार सप्तर्षि संवत 5093-94 चल रहा है। सप्तर्षि संवत मेष राशि से प्रारंभ होता है। यह नक्षत्रों पर आधारित कैलेंडर है। प्राचीनकाल में भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सप्तर्षि संवत का प्रयोग होता था। भारत में विक्रम संवत, कलि संवत और सप्तर्षि संवत एक ही तिथि से प्रारंभ होते हैं। सप्तर्षि कैलेंडर मुख्यत: कश्मीर, हिमाचल और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रचलित था।
 
 
*सृष्टि संवत
हिन्दू कालगणना के अनुसार इस इस वक्त सृष्टि संवत् 1,95,58,85,117-18 चल रहा है अर्थात इस धरती पर जीवन की रचना के 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 117 वर्ष बीच चुके हैं। इससे भी पुराना कल्पाब्द संवत् 1,97,29,49,117 है। भारत में विक्रम संवत, कलि संवत और सप्तर्षि संवत एक ही दिन से प्रारंभ होते हैं।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन नववर्ष आरंभ होने का कारण...
 
1.प्राकृतिक कारण : इस समय अर्थात वसंत ऋतु में वृक्ष पल्लवित हो जाते हैं। उत्साहवर्धक और आल्हाददायक वातावरण होता है। ग्रहों की स्थिति में भी परिवर्तन आता है। ऐसा लगता है कि मानो प्रकृति भी नववर्ष का स्वागत कर रही है। 
 
2.ऐतिहासिक कारण : इस दिन प्रभु श्रीराम ने बाली का वध किया। इसी दिन से शालिवाहन शक आरंभ हुआ। 
 
3.आध्यात्मिक कारण
सृष्टि की निर्मिति : इसी दिन ब्रह्मदेव द्वारा सृष्टि का निर्माण, अर्थात सत्ययुग का आरंभ हुआ। यही वर्षारंभ है। निर्मिति से संबंधित प्रजापति तरंगें इस दिन पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में आती हैं। गुढ़ीपूजन से इन तरंगों का पूजक को वर्ष भर लाभ होता है।
 
साढे तीन मुहूर्तों में से एक : वर्षप्रतिपदा साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक है, इसलिए इस दिन कोई भी शुभकार्य कर सकते हैं। इस दिन कोई भी घटिका (समय) शुभमुहूर्त ही होता है।
 
31 दिसंबर की रात एक तमोगुणी रात: चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के सूर्योदय पर नववर्ष आरंभ होता है। इसलिए यह एक तेजोमय दिन है। किंतु रात के 12 बजे तमोगुण बढ़ने लगता है। अंग्रेजों का नववर्ष रात के 12 बजे आरंभ होता है। प्रकृति के नियमों का पालन करने से वह कृत्य मनुष्यजाति के लिए सहायक और इसके विरुद्ध करने से वह हानिप्रद हो जाता है। पाश्‍चात्य संस्कृति तामसिक (कष्टदायक) है, तो हिन्दू संस्कृति सात्त्विक है।
 
वर्षारंभ पवित्र होना चाहिए : पाश्चात्य नववर्ष में लोग रेन डांस, अश्लिल प्रदर्शन, शराब पार्टियां और पब की दिशा में झुक जाते हैं। पवित्रता की जगह यह तामसिक और राक्षसी कर्म की ओर मुड़कर खुद का, परिवार का और देश का नुकसान करते हैं। 
 
पाश्‍चात्यों का अंधानुकरण जीवन को पतन की ओर ले जाता है। इससे सभ्यता और नैतिकता का अवमूल्यन होकर वृत्ति अधिकाधिक तामसिक बनती है। राष्ट्र की युवा पीढ़ी राष्ट्र एवं धर्म का कार्य करना छोड़कर पाश्चात्य धर्म और संस्कृति को बढ़ावा देने में लग जाती है। जिन पाश्चात्यों की दासता से मुक्त होने में 200 साल लग गए अब उन्हीं की भाषा, संस्कृति, त्योहार आदि को अपनाकर मानसिक रूप से गुलामी करना मातृभूमि और शहीदों का अपमान ही है।

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