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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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51 Shaktipeeth : शोणदेश नर्मदा शोणाक्षी अमरकंटक शक्तिपीठ-35

51 Shaktipeeth : शोणदेश नर्मदा शोणाक्षी अमरकंटक शक्तिपीठ-35

अनिरुद्ध जोशी

देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है माता सती के शक्तिपीठों में इस बार शोणदेश नर्मदा शोणाक्षी अमरकंटक  शक्तिपीठ के बारे में जानकारी।
 
 
कैसे बने ये शक्तिपीठ : जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई। शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है। 
 
शोणदेश नर्मदा (शोणाक्षी) : मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थित नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।
 
इससे पहले हमने बताया था कि मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था जहां एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं। हालांकि इस शक्तिपीठ के निश्‍चित स्थान को लेकर संशय है। तंत्र चूड़ामणि' से मात्र नितम्ब निपात का एवं शक्ति तथा भैरव का पता लगता है- 'नितम्ब काल माधवे भैरवश्चसितांगश्च देवी काली सुसिद्धिदा'। अमरकंटक मध्यप्रदेश के जबलपुर से आगे होशंगाबाद के पास पीपरी मार्ग पर है। यहां पर नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं। अमरकंटक अपने प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। अमरकंटक मैकल पर्वतश्रेणी की सबसे ऊंची श्रृंखला है। विंध्याचल, सतपुड़ा और मैकल पर्वतश्रेणियों की शुरुआत यही से होती है।

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