Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

लोनार झील के बारे में 5 रोचक जानकारियां, स्कंद पुराण में है इसका जिक्र

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 12 जून 2020 (11:21 IST)
महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में स्थित लोनार नामक जगह पर एक झील है जिसे लोणार सरोवर कहते हैं। हाल ही में इसका पानी नीले से गुलाबी रंग में बदल गया है। आओ जानते हैं कि क्यों रहस्यमयी मानी जाती है लोनार लेक, ऋग्वेद और स्कंद पुराण से लोनार का संबंध क्या है और लोनार लेक का इतिहास क्या है जानिए इस झील के बारे में 5 खास बातें।
 
 
1. उल्का पिंड से बनी झील : वैज्ञानिक कहते हैं कि यह झील एक उल्कापिंड के धारती से टकराने से बनी है। अनुमानित रूप से यह 10 लाख टन वजनी उल्कापिंड 22 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से धरती से टकराई थी जिसके चलते 10 किलोमिटर के क्षेत्र में धूल का गुब्बार छा गया था। जब यह धरती से टकराई तो 18000 डीग्री तापमान उत्पन्न हुआ जिसके कारण उल्का जलकर खाक हो गई और यहां 150 मीटर गहरा गोल गड्डा बन गया। लोनार झील 5 से 8 मीटर तक खारे पानी से भरी हुई है।
 
2. कितनी पुरानी है झील : 2010 से पहले माना जाता था कि यह झील 52 हजार साल पूरानी हैं लेकिन हालिया हुए शोध के अनुसार यह झील लगभग 5 लाख 70 हजार वर्ष पुरानी है। इसकी गहराई करीब 150 मीटर बताई जाती है और इसका व्यास 1.2 किलोमीटर है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का अभी भी मानना है कि यह झील 35-50 हजार वर्ष पूरानी है।
 
 
3. हिन्दू शास्त्रों में जिक्र : इस झील का हिन्दू वेद और पुराणों में भी जिक्र होना बताया जाता है। कहते हैं कि इसका ऋग्वेद, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में जिक्र है। इस झील के संबंध में स्कंद पुराण में एक कथा मिलती है कि इस क्षे‍त्र में कभी लोनासुर नामक एक असुर रहता था जिसके अत्याचार से सभी दु:खी थे। देवतानों ने भगवान विष्णु से लोनासुर के आतंक से मुक्ति की विनति की तो भगवान विष्णु ने एक सुंदर युवक उत्पन किया और उसका नाम दैत्यसुदन रखा। दैत्यसुदन ने पहले लोनासुर की दोनों बहनों को अपने प्रेमजाल में फांस और फिर उनकी मदद से उस एक मांद का मुख्यद्वार खोल दिया, जिसमें लोनासुर छिपा बैठा था। दैत्यसुदन और लोनासुर में भयंकर युद्ध हुआ और अंतत: लोनासुर मारा गया। वर्तमान में लोनार झील लोनासुर की मांद है और लोनार से लगभग 36 किमी दूर स्थित दातेफाल की पहाड़ी में उस मांद का ढक्कन स्थित है। पुराण में झील के पानी को लोनासुर का रक्त और उसमें मौजूद नमक को लोनासुर का मांस बताया गया है।
 
4. अजीब कुआं : इस झील के पास एक कुवां मौजूद है जिसके आधे हिस्से का पानी खारा और आधे का मीठा है। इसी कारण इसे सास-बहु का कुआं भी कहते हैं। यह भी  कहा जाता है कि लोणासुर का वध करने के चलते उसका रक्त भगवान के अंगुठे में लग गया था जिसे हटाने के लिए भगवान ने यहां अंगुठा रगड़ा जिससे यह गड्डा बन गया जो अब कुवें के रूप में विद्यमान है।
 
5. झील के पास है कई प्राचीन मंदिर : इस झील के आसपास चारों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ है। पहाड़ों पर चढ़ने के बाद उतरकर इस झील के पास जाने के लिए करीब आधा किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है फिर इस झील के किनारे पहुंचा जाता है। इस झील के तट पर शिवजी का एक प्राचीन मंदिर है। पहड़ा पर चड़ने और उतरने के रास्ते के बीच में कई प्राचीन मंदिर और खंडहर हमें मिलेंगे जिसने के बारे कहा जाता है कि यह एक हजार वर्ष पूर्व यादव राजाओं ने बनवाए थे।

यहां स्थित मंदिर भगवान सूर्य, शिव, विष्णु, दुर्गा और नृसिंह भगवान को समर्पित हैं। कहते हैं कि यह प्राचीनकाल में कई ऋषि मुनियों की तपोभूमि की रही है। पर्यटन की दृष्टि से यह एक हिन्दू धार्मिक स्थल है

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Pushya Nakshatra 2024: पुष्य नक्षत्र में क्या खरीदना चाहिए?

जानिए सोने में निवेश के क्या हैं फायदे, दिवाली पर अच्छे इन्वेस्टमेंट के साथ और भी हैं कारण

झाड़ू से क्या है माता लक्ष्मी का कनेक्शन, सही तरीके से झाड़ू ना लगाने से आता है आर्थिक संकट

30 को या 31 अक्टूबर 2024 को, कब है नरक चतुर्दशी और रूप चौदस का पर्व?

गुरु पुष्य योग में क्यों की जाती है खरीदारी, जानें महत्व और खास बातें

सभी देखें

धर्म संसार

Diwali Recipes : दिवाली स्नैक्स (दीपावली की 3 चटपटी नमकीन रेसिपी)

फेस्टिव दीपावली साड़ी लुक : इस दिवाली कैसे पाएं एथनिक और एलिगेंट लुक

दीवाली का नाश्ता : बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए ये आसान और मजेदार स्नैक्स

Dhanteras 2024: अकाल मृत्यु से बचने के लिए धनतेरस पर कितने, कहां और किस दिशा में जलाएं दीपक?

दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर कहलाता है श्रीपुरम महालक्ष्मी स्वर्ण मंदिर, जानिए इस मंदिर की क्या है विशेषता

આગળનો લેખ
Show comments