Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

विवाह पंचमी पर नहीं करते हैं शादी, जानिए क्या है इसका राज

विवाह पंचमी पर नहीं करते हैं शादी, जानिए क्या है इसका राज
Ram-Sita Vivah
 
इस बार 8 दिसंबर 2021, बुधवार को विवाह पंचमी (Vivah Panchami) है। यह दिन हिन्दू धर्म में बहुत मायने रखता है, क्योंकि इसी दिन जानकी सीता और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का शुभ विवाह संपन्न हुआ था। यह दिन भारत में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीराम और सीता के विवाह की वर्षगांठ के तौर पर विवाह पंचमी का उत्सव मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सीता का स्वयंवर हुआ था। इस पर्व को मिथिलांचल और नेपाल में बहुत उत्साह और आस्था से मनाया जाता है। इस दिन अयोध्या और जनकपुर में प्रभु राम की बारात विशेष तैयारियों के साथ निकाली जाती है। 
 
विवाह पंचमी को लेकर कई पुराणों में इसका विशेष महत्व है, बावजूद इसके इस दिन कई जगहों पर शुभ विवाह के मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते हैं यानी कि लोग अपने बेटी का विवाह इस दिन करना उचित नहीं मानते हैं। धार्मिक दृष्टि से इस दिन का अधिक महत्व होने के बाद भी मिथिलांचल और नेपाल में इस दिन विवाह आयोजन नहीं किए जाते हैं। इस दिन त्योहार तो मनाया जाता है, लेकिन माता सीता के दुखद वैवाहिक जीवन को देखते हुए इस दिन विवाह निषेध होते हैं। 
 
शास्त्रों की मानें तो भौगोलिक रूप से सीता मिथिला की बेटी कहलाई जाती है। इसलिए भी मिथिलावासी सीता के दुख और कष्टों को लेकर अतिरिक्त रूप से संवेदनशील हैं। चौदह वर्ष वनवास के बाद भी गर्भवती सीता का श्रीराम ने परित्याग कर दिया था। इस तरह राजकुमारी सीता को महारानी सीता का सुख नहीं मिला। माता सीता का आगे का सारा जीवन अपने जुड़वां बच्चों लव और कुश के साथ वन में ही बीता। इसीलिए विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं। 
 
उनके मन आशंका यह होती है कि कहीं माता जानकी की तरह ही उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन दुखमय न हो जाए, सिर्फ इतना ही नहीं, विवाह पंचमी पर की जाने वाली रामकथा का अंत राम और सीता के विवाह पर ही हो जाता है। क्योंकि दोनों के जीवन के आगे की कथा दुखों और कष्टों से भरी है और इस शुभ दिन सुखांत करके ही कथा का समापन कर दिया जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान राम और देवी सीता भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के ही अवतार हैं। दोनों ने समाज में आदर्श और मर्यादित जीवन की मिसाल कायम करने के लिए मानव अवतार लिया। अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को राम-सीता का विवाह (Lord Ram n Janaknandini Marriage) मिथिलांचल में संपन्न हुआ था।
 
 
Ram-Sita Vivah श्रीराम-सीता विवाह कथा- पुराणों में वर्णन है कि राम-सीता श्रीविष्‍णु और लक्ष्मी के अवतार हैं। राजा दशरथ के घर पैदा हुए राम और राजा जनक की पुत्री है सीता। बताया जाता है कि सीता का जन्म धरती से हुआ है। जब जनक हल चला रहे थे, तब उन्हें एक नन्हीं-सी बच्ची मिली थी। इसे ही नाम दिया गया सीता, यही जनकनंदिनी कहलाईं। मान्यता है कि एक बार बचपन में सीता ने मंदिर में रखे धनुष को बड़ी सहजता से उठा लिया। उस धनुष को तब तक परशुराम के अतिरिक्त और किसी ने उठाया नहीं था। तब राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो कोई शिव का यह धनुष उठा पाएगा, उसी से सीता का विवाह किया जाएगा।

 
उसके बाद सीता के स्वयंवर का दिन निश्चित किया गया और सभी जगह संदेश भेजे गए। उस समय भगवान राम और लक्ष्मण महर्षि वशिष्ठ के साथ दर्शक के रूप में उस स्वयंवर में पहुंचे थे। कई राजाओं ने प्रयास किए, लेकिन कोई भी उस धनुष को अपनी जगह हिला न सका, उस पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो बहुत दूर की बात थी। हताश जनक ने करुण शब्दों में अपनी पीड़ा महर्षि वशिष्ठ के सामने व्यक्त की थी 'क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है?'
 
 
तब महर्षि वशिष्ठ ने श्रीराम को इस स्वयंवर में भाग लेने का आदेश दिया। अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान श्रीराम ने धनुष उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे कि धनुष टूट गया। इस तरह उन्होंने स्वयंवर की शर्त को पूरा किया और सीता से विवाह के लिए योग्य पाए गए। भारतीय जनमानस में राम और सीता प्रेम, समर्पण, और आदर्श के परिचायक पति-पत्नी हैं। इतिहास-पुराण में श्रीराम जैसा कोई पुत्र, भाई, योद्धा और राजा नहीं हुआ। उसी तरह इतिहास में सीता-सी कोई पुत्री, पत्नी, मां, बहू नहीं हुई। इसलिए भी हमारे समाज में राम और सीता को आदर्श पति-पत्नी के रूप में स्वीकारा और पूजा जाता है। 

webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

रामचरितमानस की 2 चौपाई से जानें कि किस इंसान से नहीं करना चाहिए भूलकर भी बात