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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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9 सितंबर को है वराह जयंती, जानिए 3 खास बातें

9 सितंबर को है वराह जयंती, जानिए 3 खास बातें

अनिरुद्ध जोशी

मान्यता है कि भाद्रपद यानि भादो मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान विष्णु अपने तृतीय अवतार वराह के रूप में अवतरित हुए थे। इसलिये इस माह की शुक्ल तृतीया को वराह जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस 2021 में वराह जयंती 09 सितंबर को है।
 
 
1. भगवान विष्णु के वराह नाम से 3 अवतार हुए हैं : 1. नील वराह, 2. आदि वराह और 3. श्वेत वराह।
 
2. किस वराह ने किया कौनसा कार्य : कहते हैं कि नील वराह ने जल में डूबी धरती को बाहर निकाला था और मधु और कैटभ का वध किया था। उन्होंने कठिन परिश्रम किया था इसीलिए उन्हें यज्ञ वराह भी कहा दिया। इसके बाद आदि वराह ने कश्यप-दिति के पुत्र और हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का वध करके इस धरती को बचाया था। इसके बाद भगवान श्वेत वराह का युद्ध राजा विमति से हुआ था। कहते हैं कि सबसे पहले भगवान विष्णु ने नील वराह का अवतार लिया फिर आदि वराह बनकर हिरण्याक्ष का वध किया इसके बाद श्‍वेत वराह का अवतार नृसिंह अवतार के बाद लिया था। हिरण्याक्ष को मारने के बाद ही स्वायंभूव मनु को धरती का साम्राज्य मिला था।
 
 
3. आदि वराह की कथा : एक बार दक्ष पुत्री दिति ने कामातुर होकर अपने पति मरीचिनंदन कश्यपजी से प्रणय निवेदन किया। उस वक्त कश्यप ऋषि संध्यावंदन की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह समय उचित नहीं, एक प्रहर ठहर जाओ। पति के इस प्रकार समझाने पर भी दिति नहीं मानी। फिर कश्यपजी बोले, 'तुमने अमंगल समय में कामना की इसलिए तुम्हारी कोख से दो बड़े ही अधम पुत्र जन्म लेंगे। तब उनका वध करने के लिए स्वयं जगदीश्वर को अवतार लेना होगा।
 
सृष्टि में भयानक उत्पात और अंधकार के बाद दिति के गर्भ से सर्वप्रथम 2 जुड़वां पुत्र जन्मे हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष। जन्म लेते ही दोनों पर्वत के समान दृढ़ तथा विशाल हो गए। ये दोनों ही आदि दैत्य कहलाए। बाद में सिंहिका नामक एक पुत्री का जन्म हुआ।
 
हिरण्याक्ष भयंकर दैत्य था। वह तीनों लोकों पर अपना अधिकार चाहता था। हिरण्याक्ष का दक्षिण भारत पर राज था। ब्रह्मा से युद्ध में अजेय और अमरता का वर मिलने के कारण उसका धरती पर आतंक हो चला था। हिरण्याक्ष भगवान वराहरूपी विष्णु के पीछे लग गया था और वह उनके धरती निर्माण के कार्य की खिल्ली उड़ाकर उनको युद्ध के लिए ललकारता था। विष्णु के अवतार वराह भगवान ने जब रसातल से बाहर निकलकर धरती को समुद्र के ऊपर स्थापित कर दिया, तब उनका ध्यान हिरण्याक्ष पर गया।
 
आदि वराह के साथ भी महाप्रबल वराह सेना थी। उन्होंने अपनी सेना को लेकर हिरण्याक्ष के क्षे‍त्र पर चढ़ाई कर दी और विंध्यगिरि के पाद प्रसूत जल समुद्र को पार कर उन्होंने हिरण्याक्ष के नगर को घेर लिया। संगमनेर में महासंग्राम हुआ और अंतत: हिरण्याक्ष का अंत हुआ।

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