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मंदिर की सीढ़ी पर कुछ देर बैठने की परंपरा का राज क्या है? एक श्लोक में छुपा है जीवन का सार

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मंदिर की सीढ़ी पर क्यों बैठते हैं? 
 
हम अक्सर जब मंदिर जाते हैं तो मंदिर की पैड़ी या सीढ़ियों पर बैठते हैं, लेकिन हम में से बहुत कम लोग जानते हैं कि इस परंपरा के पीछे कारण क्या है? 
 
आजकल लोग मंदिर की सीढ़ी पर बैठकर धर्म और राजनीति संबंधी बातें करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य से बनी है। शास्त्रों में लिखा मिलता है कि मंदिर की सीढ़ी पर बैठ कर हमें एक श्लोक का वाचन करना चाहिए।  
 
यह श्लोक इस प्रकार है -
 
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
 
इस श्लोक का अर्थ है-
अनायासेन मरणम्...अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों,, चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
 
बिना देन्येन जीवनम्...अर्थात परवशता का जीवन ना हो। मतलब कि हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है, वैसे परवश या बेबस ना हों। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके।
 
देहांते तव सानिध्यम...अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।
 
 देहि मे परमेशवरम्...हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।
 
यही प्रार्थना करें......
 
 इसलिए कहते हैं कि घर, गाड़ी बंगला, शादी, धन-दौलत शोहरत नहीं मांगना है। यह भगवान आपकी पात्रता के अनुसार खुद आपको देते हैं। दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। 
 
याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।
 
हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है, अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ। अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है।

विशेष 
जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए। उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना, हम तो दर्शन करने आए हैं।
 
भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्ण आनंद लें। आंखों में भर लें उनके स्वरूप को। दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना।
 
बाहर आने के बाद सीढ़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें। नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

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