Intermittent and Traditional Fasting : फास्टिंग यानी व्रत या उपवास। हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म में व्रत रखने की खास परंपरा है, लेकिन ट्रेडिशनल यानी परंपरागत फास्टिंग को छोड़कर आजकल इंटरमिटेंट फास्टिंग का प्रचलन है। क्या होती है इंटरमिटेंट फास्टिंग और क्या होती है ट्रेडिशनल फास्टिंग? दोनों को जानने के बाद जानिए दोनों में क्या है अंतर।
इंटरमिटेंट फास्टिंग : यह कई प्रकार की होती है। पहला है कि व्यक्ति इसमें डिनर के बाद 18 घंटे तक कुछ भी नहीं खाता और पीता है। यानी सुबह का चाय और नाश्ता भी छूट जाता है। कई लोग 16\8 की फास्टिंग कहते हैं यानी 16 घंटे उपवास और 8 घंटे खानपान, वहीं महिलाओं के लिए 14 से 15 घंटे की सलाह दी जाती है ऐसे में उनके पास 10 घंटे होते हैं। कुछ लोग एक सप्ताह में 24 घंटे कुछ भी नहीं खाते पीते हैं। कुछ लोग सप्ताह में 2 दिन उपवास करते हैं।
ट्रेडिशनल फास्टिंग : यह भी कई प्रकार की होती है। जैसे एकाशना या अधोपवास यानी एक समय भोजन करना, पूर्णोपवास यानी 24 घंटे उपवास करना, निर्जला उपवास यानी जिसमें पानी नहीं पिया जाता है। फलाहार, दुग्धोपवास आदि कई प्रकार की परंपरागत फास्टिंग होती है।
इंटरमिटेंट और ट्रेडिशनल फास्टिंग में अंतर:-
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इंटरमिटेंट फास्टिंग में में कैलोरी काउंट की जाती है जबकि ट्रेडिशनल में परंपरागत डाइट फॉलो करते हैं।
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इंटरमिटेंट फास्टिंग वेट लॉस के लिए रखते हैं जबकि ट्रेडिशनल फास्टिंग का उद्देश्य धार्मिक होता है।
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इंटरमिटेंट फास्टिंग में समय का विशेष ध्यान रखते हैं जबकि ट्रेडिशनल फास्टिंग में तिथि समाप्ति का।
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इंटरमिटेंट फास्टिंग का मकसद भूखा रहना है जबकि ट्रेडिशनल फास्टिंग में भूखे रहने का कोई खास महत्व नहीं है।
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इंटरमिटेंट फास्टिंग में जो खाते हैं उसमें न्यूट्रिशन वैल्यू का ध्यान रखते हैं जबकि ट्रेडिशनल फास्टिंग में परंपरागत भोजन करते हैं।
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इंटरमिटेंट फास्टिंग के नुकसान भी है जबकि ट्रेडिशनल फास्टिंग विधिवत की जाए तो कोई नुकसान नहीं है।
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इंटरमिटेंट फास्टिंग शुरु करने के बाद लंबे समय तक लगातर फॉलो करना होता है जबकि ट्रेडिशनल फास्टिंग ओकेजनली होती हैं।