Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

गीता का ज्ञान : करता है कोई शास्त्र विरुद्ध कार्य तो हो जाता है बर्बाद

गीता का ज्ञान : करता है कोई शास्त्र विरुद्ध कार्य तो हो जाता है बर्बाद

अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू धर्म में बहुत सारी बुराइयों का समावेश हो चला है। मनमाने तीर्थ, यज्ञ, पूजा, त्योहार आदि का प्रचलन हो चला है। लोग सोलह संस्कारों की वैदिक रीति को छोड़कर अन्य रीतियों से कर्म करने लगे हैं। लोग ईश्‍वर, भगवान, देवी-देवता को छोड़कर जीवित इंसानों, पितर, पिशाचनी, तथाकथित संत, गुरु आदि को पूजने और उनकी वंदना करने लगे हैं। संतों और अपने चहेतों के मंदिर बनाने लगे हैं। लोग अपनी अपनी जातियों में उलझकर अंधविस्वासी और वहमी हो चले हैं। आओ जानते हैं ऐसे भटके हुए लोगों के बारे में भगवान श्रीकृष्‍ण गीता में क्या कहते हैं।
 
 
1.यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌॥- (गीता अध्याय 9 श्लोक 25)
 
भावार्थ : देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा (परमेश्वर का) पूजन करने वाले भक्त मुझको (परमेश्वर को) ही प्राप्त होते हैं इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता॥
 
 
2.भूतान्प्रेत गणान्श्चादि यजन्ति तामसा जना।
तमेव शरणं गच्छ सर्व भावेन भारतः-गीता।। 17:4, 18:62
अर्थात : भूत प्रेतों की उपासना तामसी लोग करते हैं। हे भारत तुम हरेक प्रकार से ईश्वर की शरण में जाओ। ..जो सांसारिक इच्छाओं के अधिन हैं उन्होंने अपने लिए ईश्वर के अतिरिक्त झूठे उपास्य बना लिए है। वह जो मुझे जानते हैं कि मैं ही हूं, जो अजन्मा हूं, मैं ही हूं जिसकी कोई शुरुआत नहीं, और सारे जहां का मालिक हूं।
 
 
3.यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्‌॥
भावार्थ : जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही ॥16-23॥
 
 
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि॥
भावार्थ : इससे तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है। ऐसा जानकर तू शास्त्र विधि से नियत कर्म ही करने योग्य है ॥16-24॥
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

Shri Krishna 11 Oct Episode 162 : जब पहले दिन का युद्ध हार जाते हैं पांडव