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क्वारंटाइन ने बदल दी 248 श्रमिकों की जिंदगी, बन गए कोविड स्वयं सेवक

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जिस प्रकार से देशभर के प्रवासी श्रमिक अपने ऊपर आए हुए संकट से संघर्ष कर रहे हैं,ऐसे समय में यूपी के एक जिले, मुरादाबाद में प्रवासी श्रमिकों को ठहरने के लिए 4 आश्रय घरों में शरण देना, उनकी मन: स्थिति का उत्थान करने की एक प्रेरणादायक पहल है।

जब 23 मार्च को प्रधानमंत्री जी ने देशभर में लॉकडाउन की घोषणा की थी,तब उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति से यह अपील की थी कि जो जहां पर है,वहीं पर रुक जाए।इस परिदृश्य में कई प्रवासी श्रमिक,जो अपने गांवों की ओर भाग रहे थे,वे इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थे और फंस गए।जब तक घर वापस लौटना सुरक्षित ना हो जाए,तब तक के लिए राज्य सरकार ने इन प्रवासी श्रमिकों के ठहरने के लिए आश्रय घरों की व्यवस्था की।

मुरादाबाद में,जिले के विभिन्न हिस्सों में 4 स्कूलों को आश्रय घरों में परिवर्तित किया गया है।बहुत सारे फंसे हुए श्रमिकों को इन आश्रय घरों में क्वारंटाइन में रखा गया और उनकी देखभाल की गई।इसमें दिलचस्प बात यह है कि जैसे ही उन्होंने समय रहते अपना 14 दिन का क्वारंटाइन पूरा किया,उनकी घबराहट में कमी आई,वे अधिक सजग,अधिक शिक्षित और कोविड स्वयं सेवक बन गए।

मुरादाबाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के द्वारा, इन फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष सत्रों के आयोजन की पहल की गई। आर्ट ऑफ लिविंग शिक्षक ऋतु नारंग ने इन आश्रय घरों में फंसे 248 श्रमिकों के लिए इन सत्रों का आयोजन किया। इसमें आश्रय घरों के इंचार्ज ऑफिसर डॉ प्रदीप द्विवेदी ने उनका सहयोग किया।

श्रमिकों की मन: स्थिति का उत्थान करने,तनाव को कम करने,उन्हें आराम से रहने और सत्रों में प्रतिभागी बनने के लिए योग और ध्यान कराया गया।उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग,स्वच्छता और उन्हें क्या सावधानियां बरतनी चाहिए,का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया गया।

किस प्रकार से हाथ धोने चाहिए,किस प्रकार से सुरक्षित रूप से यात्रा करनी चाहिए,उन्हें राशन और भोजन की लाइन में किस प्रकार से सुरक्षित तरीके से लगना चाहिए,जैसी बहुत मूलभूत बातों और इससे संबंधित जानकारी को उदाहरणों के साथ बहुत सरल तरीके से विस्तृत रूप में समझाया गया।

इन प्रेरणादायक प्रशिक्षण सत्रों का बहुत अच्छे से स्वागत किया गया।ये श्रमिक अधिक शांत,आत्म विश्वासी और सावधानियों को लेकर अधिक सचेत हो गए।इस महामारी में लॉक डाउन में अपने घरों से दूर रहने के बावजूद,उनकी मन: स्थिति अधिक सकारात्मक और केंद्रित हो गई। इन विशेष सत्रों ने उनकी मन: स्थिति को बेहतर बनाने और आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार होने में उनकी मदद की और साथ ही साथ उनके रुकने को अधिक सहनशील और सकारात्मक भी बनाया।

उन्हें यह भी सिखाया गया कि जब वे अपने गांव में पहुंचे,तब उन्हें किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए और धैर्य को एक सदाचार के रूप में अपनाना चाहिए।इस वर्कशॉप के अंत में उन्होंने कोविड स्वयं सेवक बनने की शपथ ली।उन्होंने यह जिम्मेदारी भी ली कि जब वे अपने गांव पहुंचेंगे,तब अपने साथी गांव वालों में भी यह सजगता उत्पन्न करेंगे।

ऋतु नारंग ने यह बताया कि ये श्रमिक यूपी के 36 जिलों और 4 अन्य राज्यों - झारखंड,बिहार,जम्मू और कश्मीर के हैं। इन वर्कशॉप्स का आयोजन क्वारंटीन के अंतिम चार दिनों में किया गया,ताकि जो उन्हें सिखाया गया है,वह उनके मन में बना रहे।उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार से इन श्रमिकों ने विभिन्न स्थानों ,विभिन्न धर्मों,जातियों और समुदायों के होने के बावजूद,उन्होंने उत्साहपूर्वक भाग लिया और उत्सुकता से सीखा।

उन्होंने उस बहुत बड़े प्रभाव के बारे में भी बताया,जो ध्यान के बाद श्रमिकों के मन पर पड़ा।श्रमिकों ने विश्राम और शांति के अपने अनुभवों के बारे में भी बताया।
 
रौशन कुमार, बिहार के एक प्रवासी श्रमिक ने बताया," मैं अपने घर वापस जा रहा था,लेकिन सरकार ने रोक लिया।हमने यहां सोशल डिस्टेंसिंग और स्वच्छता के महत्व को सीखा।ध्यान करने से मुझे बेहतर महसूस हुआ।"

ऋतु नारंग एक मां हैं और एक आर्ट ऑफ लिविंग प्रशिक्षक हैं,जो 2016 में स्वच्छ भारत एंबेसडर भी थीं।उन्होंने 30,000 से अधिक लोगों को योग और ध्यान सिखाया है।2011 से,वह आर्ट ऑफ लिविंग के नशा मुक्ति प्रयासों में बहुत अधिक संलग्न रही हैं।वह पुलिस फोर्स में काउंसलर भी रही हैं और उन्होंने तलाक के सैकड़ों मामलों में परिवारों को साथ लाने में मदद की है।
सौजन्य :आर्ट ऑफ लिविंग

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