Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

विस्थापन के बाद सिर्फ शिवरात्रि की परंपराओं को ही सहेज सके हैं कश्मीरी पंडित

सुरेश डुग्गर
जम्मू। कश्मीरी पंडित विस्थापित सिर्फ शिवरात्रि की परंपराओं को नहीं भूले हैं जबकि कहने को 30 साल का अरसा बहुत लंबा होता है और अगर यह अरसा कोई विस्थापित रूप में बिताए तो उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजकर रख पाएगा। पर कश्मीरी पंडित विस्थापितों के साथ ऐसा नहीं है, जो बाकी परंपराओं को तो सहेजकर नहीं रख पाए लेकिन शिवरात्रि की परंपराओं को फिलहाल नहीं भूले हैं।
 
जम्मू स्थित कश्मीरी पंडितों की सबसे बड़ी कॉलोनी जगती और समूचे जम्मू में बसे कश्मीरी पंडितों के घर-घर में पिछले एक हफ्ते से ही पूजा की तैयारी शुरू हो चुकी है। एक सप्ताह से लोग घर की साफ-सफाई और पूजन सामग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं।
 
आतंकवाद के कारण पिछले 30 वर्षों से जम्मू समेत पूरी दुनिया में विस्थापित जीवन बिता रहे कश्मीरी पंडितों का 3 दिन तक चलने वाले सबसे बड़े पर्व महाशिवरात्रि का धार्मिक अनुष्ठान पूरी आस्था और धार्मिक उल्लास के साथ शुरू हो जाएगा। यह समुदाय के लिए धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है।
 
कश्मीरी पंडितों के संगठन पनुन कश्मीर के अधिकारियों ने बताया कि सामाजिक अलगाववाद के बावजूद कश्मीरी पंडितों ने अपनी धार्मिक परंपरा को जीवंत रखा है। अपनी जड़ जमीन से बेदखल हमारे समुदाय से बच्चों की अच्छी शिक्षा और पूजा-पाठ की परंपरा को बचाए रखा। अभी भी देश-विदेश में बसे इस समुदाय की युवा पीढ़ी भी पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ यह धार्मिक पर्व मनाती है।
 
कश्मीर घाटी में बर्फ से ढंके पहाड़ और सेब तथा अखरोट के दरख्तों के बीच मनोरम प्राकृतिक वातावरण में यह पर्व मनाने वाले कश्मीरी पंडित अब छोटे-छोटे सरकारी क्वार्टरों और जम्मू की तंग बस्तियों में धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। शिवरात्रि को कश्मीरी में 'हेरथ' कहते हैं।
 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 'हेरथ' शब्द संस्कृत शब्द 'हररात्रि' यानी 'शिवरात्रि' से निकला है। नई मान्यता के अनुसार यह फारसी शब्द 'हैरत' का अपभ्रंश है। कहते हैं कि कश्मीर घाटी में पठान शासन के दौरान कश्मीर के तत्कालीन तानाशाह पठान गवर्नर जब्बार खान ने कश्मीरी पंडितों को फरवरी में यह पर्व मनाने से मना कर दिया अलबत्ता उसने सबसे गर्म माह जून-जुलाई में मनाने की अनुमति दी।
 
खान को पता था कि इस पर्व का हिमपात के साथ जुड़ाव है। शिवरात्रि पर जो गीत गाया जाता है, उसमें भी शिव-उमा की शादी के समय सुनहले हिमाच्छादित पर्वतों की खूबसूरती का वर्णन किया जाता है इसलिए उसने जान-बूझकर इसे गर्मी के मौसम में मनाने की अनुमति दी। लेकिन गवर्नर समेत सभी लोग उस समय हैरत में पड़ गए, जब उस वर्ष जुलाई में भी भारी बर्फबारी हो गई। तभी से इस पर्व को कश्मीरी में 'हेरथ' कहते हैं।
 
पूरे घर की साफ-सफाई करके पूजास्थल पर शिव और पार्वती के 2 बड़े कलश समेत बटुक भैरव और पूरे शिव परिवार समेत करीब 10 कलशों की स्थापना की जाती है। पहले कुम्हार खासतौर पर इस पूजा के लिए मिट्टी के कलश बनाते थे लेकिन अब पीतल या अन्य धातुओं के कलश रखे जाते हैं। फूलमालाओं से सजे कलश के अंदर पानी में अखरोट रखे जाते हैं।
 
3 दिन तक 3-4 घंटे तक विधिवित पूजा होती है। तीसरे दिन कलश को प्रवाहित करने का प्रचलन है। पहले मिट्टी के कलश को झेलम में प्रवाहित किया जाता था। अब पास के जलनिकाय पर औपचारिकता की जाती है। कलश में रखे अखरोट का प्रसाद सगे-संबंधी आपस में बांटते हैं।

सम्बंधित जानकारी

जरूर पढ़ें

Gold Prices : शादी सीजन में सोने ने फिर बढ़ाई टेंशन, 84000 के करीब पहुंचा, चांदी भी चमकी

Uttar Pradesh Assembly by-election Results : UP की 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव परिणाम, हेराफेरी के आरोपों के बीच योगी सरकार पर कितना असर

PM मोदी गुयाना क्यों गए? जानिए भारत को कैसे होगा फायदा

महाराष्ट्र में पवार परिवार की पावर से बनेगी नई सरकार?

पोस्‍टमार्टम और डीप फ्रीजर में ढाई घंटे रखने के बाद भी चिता पर जिंदा हो गया शख्‍स, राजस्‍थान में कैसे हुआ ये चमत्‍कार

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम 2024 : दलीय स्थिति

LIVE: महाराष्‍ट्र में रुझानों में महायुति की सरकार

By election results 2024: यूपी उपचुनाव में भाजपा को भारी बढ़त, बंगाल में TMC का जलवा

LIVE: झारखंड में भाजपा गठबंधन बहुमत के करीब

LIVE: महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन 200 पार, शरद-उद्धव का बुरा हाल, झारखंड में ट्विस्ट

આગળનો લેખ
Show comments