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नई शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा के लिए कई प्रस्ताव-सांसद शंकर लालवानी

संस्कृत भारती के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के कार्यकर्त्ताओं का प्रशिक्षण वर्ग सम्पन्न

Webdunia
गुरुवार, 6 जून 2019 (07:02 IST)
इन्दौर। संस्कृत भारती मध्यक्षेत्र का 14 दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग का समापन बुधवार को सरस्वती शिशु मंदिर, साईंनाथ कॉलोनी में हुआ। इसमें मुख्य अतिथि इंदौर के सांसद शंकर लालवानी थे।
 
 
लालवानी ने कहा कि भारत के प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करने का प्रमुख माध्यम संस्कृत भाषा ही है। जिस प्रकार से एक पुष्प की विशेषता उसकी सुगंध में है। ठीक उसी प्रकार संस्कृत का महत्व संस्कार और संस्कृति के निर्माण में है। यह न केवल धर्म, अध्यात्म और कर्मकांड की भाषा है, अपितु ज्ञान-विज्ञान नीति और पारदर्शिता की भाषा भी है।
 
उन्होंने कहा कि खेद का विषय है कि भारत को अपनी भाषा संस्कृत को दूर कर दिया गया। इस वजह से हम अपना ज्ञान, अपना विज्ञान, अपना इतिहास ही भूल बैठे। यदि भारत को अपना गौरव प्राप्त करना है तो संस्कृत को फिर से जन-जन में लाना होगा। नई शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा के लिए कई प्रस्ताव किये गए हैं। मैं संस्कृत अनुरागी होने के साथ ही यहाँ ये आश्वासन देता हूं कि संस्कृत भाषा के संवर्धन ले लिए संसद में जो भी बन पड़ेगा करूंगा।
 
मुख्य वक्ता मालवा के प्रांत उपाध्यक्ष भरत बैरागी ने कहा कि हमारा लक्ष्य मात्र संस्कृत पढ़ना नहीं है, अपितु भारतीय संस्कृति की रक्षा करते हुए राष्ट्र को परम वैभव के पद पर ले जाना भी है। भारत के सर्वांगीण विकास के दो प्रारंभिक चरण हो सकते हैं- पहले चरण में देशवासी संस्कृत सिद्ध हों तथा इसी भाषा द्वारा दूसरे चरण में राष्ट्र भक्त हों। फिर हम इस देश की उन्नति की आकांक्षा कर सकते हैं।
कार्यक्रम अध्यक्षता महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय, उज्जैन कुलपति पंकज जानी ने की। उन्होंने कहा कि एक उत्तम राष्ट्र और उत्तम मानव का निर्माण करना है तो संस्कृत साहित्य का अध्ययन अवश्य करें। यह साहित्य व्यवहार सिखाने के साथ ही चरित्र निर्माण की शिक्षा भी देता है। कार्यक्रम में विशेष रूप से क्षेत्र संघटन मंत्री प्रमोद पंडित उपस्थित थे।
 
वर्ग बौद्धिक प्रमुख दिवाकर शर्मा ने वर्ग का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि 14 दिवसीय इस वर्ग में मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के 47 चयनित कार्यकर्ता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। स्वागत भाषण प्रांत साहित्य प्रमुख डॉ. हेमंत शर्मा ने दिया। संचालन कृष्णकांत शर्मा ने किया।

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