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बिहार की नदियों में बड़े हस्तक्षेप हैं अंतरदेशीय जलमार्ग

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बिहार की नदियों में निर्मित होने वाले जलमार्गों का इन नदियों के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। कम पानी, गाद की भारी समस्या और धारा परिवर्तन से संकट में पड़ीं नदियों के लिए ये परियोजनाएं अच्छी नही होंगी। इस परियोजना में कोई जनविमर्श नहीं किया गया है और न ही पर्यावरणीय मंजूरी को भी आवश्यक समझा गया है। इसका परिणाम बिहार की इन नदियों और उसके साथ जुड़े समुदाय को आगे चुकाना पड़ेगा।
 
उक्त बातें जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण शोधकर्ता व मंथन अध्ययन केंद्र, पुणे के निदेशक पाद धर्माधिकारी ने पटना के गांधी संग्रहालय में जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय और मंथन अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'बिहार में अंतरदेशीय और राष्ट्रीय जलमार्ग विषय' पर कार्यक्रम में कही।
 
उन्होंने कहा कि बिहार जैसे राज्य में जहां विकास के नाम पर नदियों के साथ किए गए पहले के हस्तक्षेप के परिणाम अब दिख रहे हैं, गर्मियों में नदियों में पानी भी औसत से कम रहता है, गाद और धाराओं की शिफ्टिंग से नदी के जीवन पर व्यापक असर पड़ा है, वहीं उस पर आश्रित समुदाय पर भी असर पड़ता है। इन सभी निजाटोन के बजाय बिना किसी व्यापक जनविमर्श के ये परियोजनाएं बढ़ाई जा रही हैं। पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन और पर्यावरणीय मंजूरी की अनिवार्यता भी नहीं है इसलिए आवश्यक है कि व्यापक जनविमर्श हो और इसे कानूनी पर्यावरणीय मंजूरी प्रक्रिया के अंतर्गत रखा जाए जिसमें पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन और पर्यावरणीय मंजूरी अनिवार्य हो।
 
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के तहत बिहार की 7 नदियों (गंगा, कर्मनाशा, घाघरा, कोसी, गंडक, पुनपुन और सोन) को भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। इनमें से गंगा, गंडक, घाघरा और कर्मनाशा के प्रस्तावित जलमार्ग अंतरराज्यीय हैं जबकि गंडक और कोसी के जलमार्ग नेपाल तक बढ़ाए जा सकते हैं।
 
पानी और ऊर्जा से संबंधित मुद्दों पर शोध करने वाला मंथन अध्ययन केंद्र राष्ट्रीय-अंतरदेशीय जलमार्गों पर देशभर में अध्ययन कर रहा है। मंथन ने 2017 में राष्ट्रीय-अंतरदेशीय जलमार्ग स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो इन जलमार्गों से संबंधित मुद्दों की विस्तारित विवेचना प्रस्तुत करती है जिसमें जलमार्गों से जुड़े तथ्य, कानूनी प्रावधान और उसकी पर्याप्तता, जलमार्ग बनाने और उनके रखरखाव के लिए हस्तक्षेप, इन हस्तक्षेपों का सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक परिणाम शामिल हैं। इसी श्रृंखला में मंथन द्वारा बिहार के जलमार्गों संबंधी अपनी ताजा रिपोर्ट 'बिहार के राष्ट्रीय अंतरदेशीय जलमार्ग : एक विवरण' का लोकार्पण ई. विनय शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार सरूर अहमद, सामाजिक कार्यकर्ता चन्द्रबीर यादव, शत्रुघ्न झा व प्रो. प्रकाश ने संयुक्त रूप से किया।
 
मंथन ने अपनी दूसरी ताजा रिपोर्ट 'कोसी और गंडक नदी के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग : एक प्रारंभिक रिपोर्ट के शुरुआती निष्कर्ष और सिफारिशें भी लोगों के सामने रखी गई हैं। यह रिपोर्ट इन नदियों में मैदानी मुआयनों, अधिकारियों, स्थानीय जनता एवं सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकातों तथा संबंधित दस्तावेजों के विस्तृत अध्ययन पर आधारित है।
 
कार्यक्रम में विषय की जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने दी। शोध कार्य के भ्रमण के अनुभवों को एकलव्य ने रखा। चर्चा में प्रमुख रूप से पत्रकार सरूर अहमद, पुष्यमित्र, पुष्पराज, ई. विनय शर्मा, चन्द्रबीर, मणिकांत पाठक, प्रो. वीएन विश्वकर्मा, उदयन राय, विष्णु इत्यादि ने अपना अभिमत रखा। आयोजन की तैयारी में एडवोकेट मनीलाल, मनीष रंजन, उज्ज्वल कुमार, संतोष मुखिया, संजय, इन्द्रजीत व सुरेश का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. प्रकाश ने की और संचालन महेन्द्र यादव ने किया। (सप्रेस)। 

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