गोंडा। 'मैं मर नहीं रहा बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का उद्घोष करने वाले काकोरी कांड के आरोपी राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी ने गोंडा जिला जेल में फांसी के फंदे को हंसते-हंसते चूम लिया था।'
लाहिड़ी से पीछा छुड़ाने के लिए फांसी पर लटकाने वाली फिरंगी हुकूमत क्रांतिकारी की जुनूनभरी हुंकार को सुनकर ठिठक गई। 17 दिसंबर 1927 को भारतमाता के वीर लाल को फांसी देने के साथ ही उन्हें अहसास हो गया कि लाहिड़ी की फांसी के बाद अब रणबांकुरे उन्हें चैन से जीने नहीं देंगे।
शहीद लाहिड़ी के बलिदान को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए जेल के समीप परेड सरकार के पास टेढ़ी नदी के तट पर अंत्येष्टि स्थल की पहचान के लिए उनके रिश्तेदारों मनमथनाथ गुप्त, लालबिहारी टंडन, ईश्वरशरण और अन्य स्थानीय समाजसेवी संस्थानों के कार्यसेवकों ने लाहिड़ी को नमन कर एक बोतल जमीन में गाड़ दी थी। इस स्थल का अभी तक सही पता नहीं चल पाया है।
लाहिड़ी को देशप्रेम और निर्भीकता विरासत में मिली थी। राष्ट्रप्रेम की भावना वे बुझा नहीं पाए और मात्र 8 वर्ष की आयु में ही काशी से बंगाल अपने मामा के यहां आ गए और वहां सचिन्द्रनाथ सान्याल के संपर्क में आ गए। लाहिड़ी में फौलादी दृढ़ता, राष्ट्रभक्ति व दीवानगी के निश्चय की अडिगता को पहचानकर उन्हें क्रांतिकारियों ने अपनी टोली में शामिल कर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिवॉल्यूशन आर्मी पार्टी बनारस का प्रभारी बना दिया।
लाहिड़ी बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाए जाने लगे। उस समय क्रांतिकारियों के चल रहे आंदोलन को गति देने के लिए तात्कालिक धन की व्यवस्था करनी थी। इसके लिए उन्होंने शाहजहांपुर बैठक में अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई। इसे अंजाम देने के लिए 9 अगस्त 1925 को सायंकाल 6 बजे लखनऊ के काकोरी से छूटी 8, डाउन ट्रेन में जा रहे अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खा और ठाकुर रोशन सिंह समेत 19 अन्य क्रांतिकारियों के साथ धावा बोल दिया।
इसको लेकर फिरंगी हुकूमत ने सभी क्रांतिकारियों पर काकोरी षड्यंत्र कांड दिखाकर सशस्त्र युद्ध छेड़ने और खजाना लूटने का आरोप लगाते हुए अभियोग लगाया। इस कांड में लखनऊ की स्पेशल कोर्ट ने 6 अप्रैल 1927 को जलियांवाला बाग दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और रोशन सिंह को एकसाथ फांसी की सजा सुनाई लेकिन भारतीयों में आक्रोश के भयवश लाहिड़ी को गोंडा कारागार भेजकर 17 दिसंबर 1927 को फांसी दी।
लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल प्रांत के पावना जिले के मोहनापुर गांव में हुआ था। यह स्थान अब पूर्वी पाकिस्तान में है। उस वक्त लाहिड़ी के पिता क्षितिज मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंग भंग आंदोलन में सजा भोग रहे थे। उनकी माता का नाम बसंत कुमारी था। लाहिड़ी के 91वें बलिदान दिवस को गोंडा जिला जेल में हवन-पूजन तथा राजकीय सम्मान के साथ श्रद्धापूर्वक मनाया जाएगा। (वार्ता)