श्रीनगर। कश्मीर के बडगाम जिले में तैनात एक पुलिसकर्मी अपनी सरकारी राइफल के साथ गायब है। उसके गायब होने के पीछे पुलिस विभाग द्वारा संदेह जताया जा रहा है कि उसने पुलिस सेवा छोड़ दी है और आतंकियों के साथ जा मिला है। आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक, पिछले 7 सालों के भीतर दर्जन से अधिक पुलिसवाले आतंकियों के साथ जा मिले हैं। इनमें से कई को मार भी गिराया जा चुका है।
पुलिसकर्मी के गायब होने की जानकारी बुधवार को यहां एक पुलिस अधिकारी ने दी। पुलिस के मुताबिक बडगाम जिले में पखेरपोरा पुलिस चौकी में तैनात कॉन्स्टेबल तारिक अहमद भट मंगलवार की शाम से काम पर नहीं लौटा। पुलिस चौकी से भट की सर्विस राइफल और कुछ गोला-बारूद भी गायब हैं।
इस मामले में एक अधिकारी ने बताया कि पुलिसकर्मी का पता लगाने के प्रयास किया जा रहा है और अब तक इसे एक ‘लापता’ होने का मामला ही माना जा रहा है। भट के पुलिस सेवा छोड़ने के संदेह से भी इंकार नहीं जा सकता। अधिकारियों का कहना था कि लगता यही है कि वह आतंकियों के साथ जा मिला है। फिलहाल किसी आतंकी गुट ने उसके अपने साथ शामिल होने की पुष्टि नहीं की है। गौरतलब है कि इस महीने की शुरूआत में शोपियां में तैनात सेना के एक जवान ने नौकरी छोड़ दी थी और बाद में वह आतंकवाद से जुड़ गया था।
वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है कि कोई आतंकी हथियार लेकर भागा हो और बाद में आतंकी ग्रुप में शामिल हो गया हो बल्कि पिछले 7 सालों के आंकड़े बताते हैं कि 12 पुलिस वाले ऐसा कर चुके हैं। ऐसा कई बार हुआ है, जब जम्मू कश्मीर के पुलिसकर्मी सर्विस राइफलें लेकर भागे हैं और विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हो गए हैं।
वैसे एक कांस्टेबल नसीर अहमद पंडित 27 मार्च 2015 को पीडीपी के मंत्री अलताफ बुखारी के आवास से दो एके राइफल के साथ भाग निकला था और अप्रैल 2016 में शोपियां जिले में एक मुठभेड़ में मारा गया था।
आंकड़ों के मुताबिक पिछले 7 सालों में घाटी में 12 पुलिसकर्मी आतंकी बने हैं। रविवार को फरार हुए बड़गाम पुलिस के नावीद मुश्ताक के अलावा साल 2016 में रैनावाड़ी पुलिस स्टेशन पर तैनात एक पुलिसकर्मी एके-47 के साथ फरार होकर आतंकी बन गया था। इसके अलावा जनवरी 2017 में भी एक पुलिसकर्मी एके-47 के साथ आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिल गया था।
साल 2015 की बात करें तो रियाज अहमद और गुलाम मुहम्मद नाम के दो पुलिसकर्मी आतंकी गुट के साथ जुड़ गए थे। हालांकि बाद में एक एनकाउंटर के दौरान दोनों मारे गए थे।
साल 2015 में ही पुलवामा जिले के राकिब बशीर ने पुलिस सेवा ज्वाइन करने के एक माह बाद ही हिजबुल मुजाहिद्दीन का दामन थाम लिया था। वहीं साल 2014 में नसीर अहमद पंडित नाम के पुलिसकर्मी ने भी हिजबुल का साथ थामा लेकिन एक एनकाउंटर के दौरान वो भी मारा जा चुका है। साल 2012 में भी एक पुलिसकर्मी को आतंकी गुटों के साथ संपर्क रखने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
जम्मू कश्मीर पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि पुलिसकर्मियों के आतंकी गुटों में जाने का कारण है कि इससे आतंकियों को हथियार भी मिलते हैं और साथ ही उनकी मूवमेंट को काफी उत्साह मिलता है, जिसकी मदद से वह युवाओं को बरगलाने में कामयाब हो जाते हैं। हालांकि अब पुलिस ने कई आतंकी मॉडयूल को घाटी से खत्म कर दिया है, लेकिन अभी भी कुछ मॉड्यूल सक्रिय है। जिनसे नौजवानों की भर्ती की जा रही है।