जम्मू। कश्मीर में आतंकवाद का नाश करने के इरादों से ऑपरेशन ऑलआउट के साथ-साथ स्थानीय युवकों को मुख्य धारा में लाने की खातिर केंद्र सरकार ने राज्य प्रशासन के साथ मिलकर नई आत्मसमर्पण नीति तैयार की है। इस नीति के तहत हथियार डालने वाले आतंकवादी को नया नाम दिया जाएगा। अब वे 'त्यागकर्ता' कहलाएंगे और बदले में उन्हें 6 लाख रुपयों का फिक्सड डिपॉजिट मिलेगा जिसका लॉकइन पीरियड 3 साल होगा। यही नहीं, इस नीति के तहत उन्हें रोजगार मुहैया करवाने की भी तैयारी हो रही है।
अधिकारियों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को कम करने के लिए राज्य के गृह विभाग ने आतंकवादियों के लिए आत्मसमर्पण नीति का मसौदा तैयार किया है। सरकार के एक निर्देश के बाद सरकार की नीति ने राज्य में आतंकवाद को कम करने के लिए आतंकवादी रैंकों से अधिक बचाव को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी पुरानी आत्मसमर्पण नीति को बदल दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में 250 आतंकवादी गिरफ्तार भी किए भी गए, लेकिन अन्य 200 से अधिक अभी सक्रिय हैं और उनमें से अधिकांश स्थानीय युवक हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल आतंकवादियों द्वारा 100 से अधिक युवाओं को भर्ती भी किया गया था।
अधिकारियों के बकौल, अगर यह नीति लागू होती है तो उसके अनुसार आत्मसमर्पण करने वाले आतंकवादी को 'त्यागकर्ता' कहा जाएगा। जो आत्मसमर्पण करेंगे, वे केवल मंडलायुक्तों, जिला मजिस्ट्रेटों, शीर्ष पुलिस अधिकारियों और सैन्य परिचालन इकाइयों के प्रमुखों के सामने हथियार डालेंगे। जानकारी के मुताबिक 'त्यागकर्ता' को 5 से 6 लाख का एक फिक्सड डिपॉजिट मिलेगा जिसे 3 साल के पहले भुनाया नहीं जा सकेगा।
गृह विभाग की मसौदा नीति को अगर पढ़ें तो वह कहती है- 'इसका उद्देश्य उन आतंकवादियों को एक अवसर प्रदान करना है, जो हिंसा के मार्ग पर चल रहे हैं। यह नीति विशेष रूप से आर्थिक पुनर्वास के उद्देश्य से है जिससे वे सामान्य जीवन जी सकें और समाज की प्रगति में योगदान कर सकें।' हालांकि 'त्यागकर्ता' के लिए नौकरियों का प्रबंध करना राज्य सरकार के जिम्मे डाला जाएगा जबकि नकदी की सहायता केंद्र सरकार करेगी।
इस मसौदे को कब लागू किया जाएगा, इस पर कोई अधिकारी स्पष्ट तौर पर बोलता नहीं था लेकिन सूत्र कहते थे कि इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारों पर लोकसभा चुनावों से पहले घोषित किया जा सकता है ताकि वोट बटोरने में यह घोषणा भी सहायक हो सके।