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जो कश्मीर नहीं जा सके, वे जम्मू में ही करेंगे क्षीर भवानी की पूजा

जो कश्मीर नहीं जा सके, वे जम्मू में ही करेंगे क्षीर भवानी की पूजा
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सुरेश एस डुग्गर

, मंगलवार, 7 जून 2022 (22:53 IST)
जम्मू। आतंकी हमलों के डर से जो कश्मीरी पंडित इस बार तुलमुला स्थित क्षीर भवानी के मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए नहीं जा सके, वे जम्मू में बनाए गए माता राघेन्या के मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे। क्षीर भवानी में कल बुधवार को हजारों कश्मीरी पंडित और मुस्लिम जुटेंगे।
 
जानकारी के लिए ज्येष्ठ अष्टमी पर जम्मू के भवानी नगर स्थित माता राघेन्या के मंदिर में भी क्षीर भवानी मेला लगता है। जो लोग कश्मीर नहीं जा पाते, वे यहां पर आकर हाजिरी लगाते हैं। यहां पर मेले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। पूरे मंदिर परिसर को सजाया गया है। जहां पर जलाए जाने के लिए सैकड़ों दीपों का बंदोबस्त किया गया है। पनुन कश्मीर के प्रधान वीरेन्द्र रैना ने कहा कि 1990 में जब वादी से विस्थापित होकर कश्मीरी पंडित जम्मू में आए तो उन्होंने ही भवानी नगर में माता क्षीर भवानी का मंदिर बनाया और अब हर साल यहां मेला लगता है।
 
वैसे 2 साल बाद मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला इलाके में स्थित क्षीर भवानी मंदिर में बुधवार को वार्षिक मेले का आयोजन होने जा रहा है। इसमें शामिल होने के लिए मंगलवार को कड़ी सुरक्षा में 50 बसों में कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू से रवाना हुए। जम्मू के मंडल आयुक्त रमेश कुमार ने झंडी दिखाकर श्रद्धालुओं को मेले के लिए रवाना किया।
 
हालांकि तुलमुला में लगने वाले क्षीर भवानी मेले के लिए भले ही सोन कश्मीर संस्था ने अपना कार्यक्रम रद्द किया हो, मगर सरकार ने पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ आज मंगलवार को जम्मू से कश्मीरी पंडितों को तुलमुला के लिए रवाना किया। डिवीजनल कमिश्नर (जम्मू) रोमेश कुमार स्वयं इस अवसर पर मौजूद रहे। उन्होंने क्षीर भवानी मेले की बधाई देते हुए कश्मीरी हिन्दू श्रद्धालुओं के जत्थे को हरी झंडी दिखाकर घाटी के लिए रवाना किया। यात्रा पर तकरीबन 226 कश्मीरी हिन्दू 14 बसों में रवाना हुए हैं।
 
क्षीर भवानी की कथा : क्षीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुलमुला गांव में स्थित है। यह मंदिर मां क्षीर भवानी को समर्पित है। यह मंदिर कश्मीर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता पर चार चांद लगाते हुए नजर आते हैं। यह मंदिर कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है।
 
महाराग्य देवी, रग्न्या देवी, रजनी देवी, रग्न्या भगवती इस मंदिर के अन्य प्रचलित नाम हैं। इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया था जिसे बाद में महाराजा हरिसिंह द्वारा पूरा किया गया।
 
रामजी के आदेश से हनुमानजी ने स्थापित की मूर्ति : मंदिर की एक खास बात यह है कि यहां एक षट्कोणीय झरना है जिसे यहां के मूल निवासी देवी का प्रतीक मानते हैं। मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख किंवदंती यह है कि सतयुग में भगवान श्रीराम ने अपने निर्वासन के समय इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा के स्थान के रूप में किया था। निर्वासन की अवधि समाप्त होने के बाद भगवान राम द्वारा हनुमान को एक दिन अचानक ये आदेश मिला कि वे देवी की मूर्ति को स्थापित करें। हनुमान ने प्राप्त आदेश का पालन किया और देवी की मूर्ति को इस स्थान पर स्थापित किया, तब से लेकर आज तक यह मूर्ति इसी स्थान पर है।
 
इस मंदिर के नाम से ही स्पष्ट है कि यहां 'क्षीर' अर्थात 'खीर' का एक विशेष महत्व है और इसका इस्तेमाल यहां प्रमुख प्रसाद के रूप में किया जाता है। क्षीर भवानी मंदिर के संदर्भ में एक दिलचस्प बात यह है कि यहां के स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि अगर यहां मौजूद झरने के पानी का रंग बदलकर सफ़ेद से काला हो जाए तो पूरे क्षेत्र में अप्रत्याशित विपत्ति आती है।
 
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ (मई-जून) के अवसर पर मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। यहां मई के महीने में पूर्णिमा के 8वें दिन बड़ी संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस शुभ दिन पर देवी के कुंड का पानी बदला जाता है। ज्येष्ठ अष्टमी और शुक्ल पक्ष अष्टमी इस मंदिर में मनाए जाने वाले कुछ प्रमुख त्योहार हैं।(फ़ाइल चित्र)

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