जम्मू। जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने और विधानसभा को भंग कर दिए जाने के बाद राजनेताओं की दशा क्या है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के कई पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक अपने डूबते हुए भविष्य को संभालने के लिए अब जिला विकास परिषद के रास्ते सत्ता की भूख को मिटाने को आतुर हैं। वे अब जिला विकास परिषद के चुनावों में कूदने जा रहे हैं।
फिलहाल परिषद चुनावों की तिथियों की घोषणा नहीं हुई है, पर प्रशासन ने कुछ ही दिनों में इसकी घोषणा करने के संकेत दिए हैं। इस संकेत के साथ ही राजनीतिक दलों में नहीं बल्कि उनके नेताओं में खलबली मच गई है। यह खलबली इसलिए मची है क्योंकि सत्ताविहीन हो जाने के बाद सत्ता की उनकी भूख भीतर ही भीतर बहुत ज्यादा कुलबुला रही है।
अगर राजनीतिक पंडितों की मानें तो परिषद के चुनाव पार्टी आधारित नहीं होने हैं। ऐसे में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, अपनी पार्टी जहां तक की कश्मीर में गुपकार घोषणा से जुड़े राजनीतिक दलों ने भी अपने अपने उम्मीदवारों को आजाद उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है।
बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि करीब दर्जनभर पूर्व मंत्री और दो दर्जन से अधिक विधायक किसी भी तरह से इन चुनावों में किस्मत आजमाना चाहते हैं और इसके लिए वे अपनी अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मिन्नतें करने में जुट गए हैं। यही नहीं, कई वे पूर्व विधायक जो कई सालों से उनके दलों द्वारा साइडलाइन कर दिए जा चुके हैं, अन्यों का खेल बिगाड़ने की जुगत लड़ाने में जुटे हुए हैं।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर को एक साल पहले केंद्र शासित प्रदेश बना दिए जाने के बाद से ही राजनीतिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो चुकी हैं। राजनेताओं की कोई पूछ नहीं रह गई है। ऐसे में राजनीतिक दलों को अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है और ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा जिला विकास परिषदों की स्थापना करने तथा उनके लिए चुनाव करवाने की घोषणा ने नेताओं में नई जान फूंकी है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है।