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श्री राम आज भी क्यों हैं प्रासंगिक और चर्चित, असत्य के विरुद्ध युद्ध जरूरी

rama ki kahani

WD Feature Desk

, सोमवार, 22 जनवरी 2024 (13:42 IST)
Aaj bhi prasangik he shri ram : हरि अनंत हरि कथा अनंता। प्रभु श्री राम राघव हर काल और युग में प्रासंगिक और चर्चित रहे हैं और कलयुग में तो और भी प्रासंगिक और चर्चित हैं और रहेंगे। आधुनिक युग में प्राचीन काल की अपेक्षा विज्ञान और सुख-सुविधाओं का विस्तार हुआ है लेकिन व्यक्ति का नैतिक पतन भी हो चला है। रिश्ते-नाते अब औपचारिक रह गए हैं। सबकुछ स्वार्थ और धन पर आधारित है। धर्म का भी पतन हो चला है। ऐसे में प्रभु श्रीराम का नाम ही धर्म और सत्य को स्थापित करने वाला है। आधुनिक युग में प्रभु श्रीराम की प्रासंगिकता और भी ज्यादा बढ़ गई है।
1. रिश्तों में खरे श्रीराम : श्रीराम ने दुनिया के सबसे अच्‍छे पुत्र होने के साथ ही बड़े भाई भी थे। उन्होंने एक आदर्श पति की भूमिका भी निभाई, जबकि उस दौर में लोग बहुविवाह करते थे और अपने भाई को कुछ नहीं समझते थे। दशरथ हो या रावण सभी ने कई विवाह किए। बालि हो या रावण उन्होंने अपने छोटे भाई को कभी कुछ नहीं समझा। लेकिन श्रीराम ने एक उदाहण प्रस्तुत किया। उन्होंने हर रिश्ते को निभाया। आज के मानव को श्रीराम से यह सीखना चाहिए। आपस में भाईचारा, रिश्तों को सहेजने की कला और मानव कल्याण किस प्रकार किया जाता है। इसकी श्रेष्ठतम उदाहरण है श्रीराम। आज संयुक्त परिवार खंड-खंड हो रहे हैं। इसके खंड खंड होने से आने वाला भविष्य भी खंड खंड हो रहा है। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बेटे में श्रीराम के सब गुण हों। हर पत्नी चाहती है कि उसका पति श्रीराम की तरह 'आदर्शवान' और 'एक पत्नीधारी' ही हो। यही कारण है कि युग बीत जाने के बाद भी श्रीराम के आदर्शों को आज भी याद किया जाता है।
 
2. प्रजातंत्र के रक्षक : प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन को इस तरह मैनेज किया कि आज भी उनके कार्य, व्यक्तित्व और शासन को याद किया जाता है। प्रभु श्रीराम के पास अनंत शक्तियां थीं लेकिन उन्होंने उसका कभी भी दुरुपयोग नहीं किया जैसा की रावण ने किया। रावण ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया लेकिन राम ने मर्यादा और विनम्रता का। वे यह सोचकर जीए कि मैं लोगों के लिए यदि मैं गलत चला तो संपूर्ण भारत गलत राह पर चलेगा। उन्होंने हमेशा लोकतंत्र, लोकमत और प्रजा के भले के बारे में ही सोचा। आज के राजनीतिज्ञ को या शासनकर्ता को इससे सीख लेना चाहिए। श्रीराम की कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम-'प्रजातंत्र' है। रामराज्य में किसी को अकारण दंडि‍त नहीं किया जाता था और न ही लोगों के बीच पक्षपात व भेदभाव था।
3. नेतृत्व का मौका दूसरों को भी दिया : प्रभु श्रीराम अपने साथ दो लोगों की टीम लेकर चले थे। पहली उनकी पत्नी और दूसरा उनका भाई। तीनों ने मिलकर टीम वर्क किया, लेकिन नेतृत्व श्री राम के हाथ में ही दे रखा था। लेकिन प्रभु श्रीराम ने अपने साथ के सभी लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई ऐसे मौके आए जबकि नेतृत्व उन्होंने दूसरों के हाथ में दिया। श्रीराम ने रणनीति, मूल्य, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, दूसरों की बातों को ध्यान और धीरज से सुनना और पारदर्शिता को अपने सामने रखा और अपने वनवास काल में एक बहुत बड़ी टीम बनाकर सभी को नेतृत्व करने का मौका दिया। हर संस्थान को, राजनीतिक पार्टी को और देश के संगठनों को उनसे यह सीखना ही चाहिए, तभी देश चलेगा।
 
4. समस्याओं में समाधान ढूंढना : प्रभु श्रीराम के समक्ष कई बार ऐसा मुश्किल हालत पैदा हुए जबकि संपूर्ण टीम में निराशा के भाव फैल गए थे लेकिन उन्होंने धैर्य से काम लेकर समस्याओं के समाधान को ढूंढा और फिर उस पर कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने सीता हरण से लेकर, अहिराणण द्वारा खुद का हरण और लक्ष्मण के मुर्च्छित हो जाने तक कई तरह के संकटों का सामना किया लेकिन उनकी उत्साही टीम ने सभी संकटों पर विजयी पाई। संटक उसी व्यक्ति के समक्ष खड़े होते हैं जो उनका हल जानता है। सफलता का रास्ता आपके खिलाफ खड़ा किया गया विरोध और संकट ही बनाता है।
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5. त्याग की भावना : यह सर्वविदित ही है कि पिता के आदेश मात्र पर उन्होंने राजसिंहासन को त्याग करने का निर्णय ले लिया था। बहुत संकट काल में भी उन्होंने थोड़े में ही गुजारा करने की सीख दी। उन्होंने आश्रम में रहकर गुरु ज्ञान लिया। जंगल में कुटिया में रहकर कंदमूल खाए और इस दौरान भी उन्होंने आदिवासियों और वनवासियों को धनुष बाण की शिक्षा देने के साथ ही धर्म की शिक्षा भी दी। शबरी के जूठे बेरों को प्रेम से खाना, केवट निषादराज को गले लगाना,वानर, भालू, रीछ जैसी जनजातियों को प्यार-स्नेह देकर उन्हें अपना बनाना और उनके जीवन में उत्साह का संचरण करना, कोई राम से सीखे। आधुनिक युग के मनुष्‍य में त्याग की भावना नहीं है जबकि त्याग मनुष्य को श्रेष्ठ और लोकप्रिय बनाता है।
6. असत्य के विरुद्ध युद्ध जरूरी : श्रीराम की कार्यप्रणाली कलयुग में भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि आज विश्वभर में 'आतंकी' शक्तियां सिर उठा रही हैं। बढ़ती अराजकता और आतंकी शक्तियों का नाश करने के सच्चे सामर्थ्य का नाम है-श्रीराम। श्रीराम ने आसुरी शक्तियों का नाश करके धर्म की रक्षा की थी। जब प्रभु श्री राम की पत्नी सीता का रावण हरण करके ले गया तब श्रीराम के समक्ष सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया था। वह वन-वन सीता को खोजने के लिए भटके और उन्होंने अपनी बुद्धि और कौशल से आखिर यह पता लगा ही लिया की सीता कहां है। फिर उन्होंने सुग्रीव के लिए बाली का वध किया और सुग्रीव का समर्थन हासिल किया। इसी तरह उन्होंने कई राजाओं की सहायता की। श्री राम का जब रावण युद्ध हुआ तो वे कोई अयोध्या से सेना लेकर नहीं गए थे। उन्होंने वानर और रक्ष जाती के लोगों को एकत्रित किया और एक विशाल सेना का गठन कर दिया। खास बात तो यह कि न वेतन, न वर्दी, न आर्म्स और उस सेना से विजय हासिल की। कम संसाधन और कम सुविधाओं और संघर्ष के बावजूद उन्होंने पुल बनाकर लंका में प्रवेश किया और विजय हासिल की।

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